ये कहानी है ४ दोस्तों की.आदित्य ,रिया ,सुगंधा और विशाल.वैसे नाम आप कुछ भी रख सकते है जो आपको पसंद आए क्यूंकि ये ऐसे लोग हैं जो हम लोगो में से एक है जानी पहचानी सी लगेगी आपको हर कहानी. कही कही तो शायद ऐसा लगे की कही में आपकी ही कहानी तो नहीं सुना रही हू . चारों की परिस्थितियां अलग अलग है पर परिणिति बस एक......दर्द .कभी कभी इंसान को उसकी परिस्थितिया इतना मजबूर कर देती है की की जिंदगी बेगानी सी लगने लगती है
मैं रुचिका शुक्ला.मैं बचपन से देखती आ रही उन चारों को .उनको बड़ा होते, खेलते कूदते पढ़ते देखा मैंने.काफी अच्छे से जानती हू उन्हें .स्कूल के समय मेरे घर ट्यूशन पढने आते थे चारों .एकदम खिलखिलाते मुस्कुराते बच्चे थे सब घरों की तरह उनके घरों में समस्याएं थी पर चारों बड़े जीवट थे .जिंदगी को जेसे जी भर कर जी लेना चाहते थे.पढ़ाई में होशियार ,खेल कूद में अव्वल ,सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वाले.स्कूल ख़तम हुए चारों ने अलग अलग पढाई के लिए अलग कॉलेज में दाखिला ले लिया मेरा रोज का मिलना जुलना कम हो गया पर फिर भी कभी कभी आते थे मुझसे मिलने और जब आते थे गुलजार कर देते थे मेरे घर को .कुछ अपनी सुनाते कुछ मेरी सुन जाते .आदित्य का बचपन से ही सपना था की वो सिंगर बने पर घर वालों की जिद के चलते इंजीनियरिंग कॉलेज में ऐडमिशन ले लिया लड़का आदित्य अच्छा था पर अपनी आशाएं अपनी इच्छाएं कभी घर वालों के आगे रख नहीं पाया ३ बहनों का एक भाई होकर उसने बेटे होने का दर्द हमेशा झेला.बहुत प्यारी माँ थी उसकी, बहुत प्यार करती थी उसे बस एक ही कमी थी माँ का ये अति प्यार ही उसका दुश्मन था .जन्म के साथ ही उस पर सबकी उम्मीदें जम गई थी माँ उसे खुद प्यार करती पर साथ साथ ये भी कहती जाती यही तो हमारा सहारा है ,बहने हर काम के लिए पीछे पीछे भागती ,पिता हर काम में उसकी सलाह लेते पर ये अहसास कभी ख़तम नहीं होता की वो ही है सब कुछ.और इसी अहसास ने उसे धीरे अन्दर से कमजोर करना शुरू कर दिया था वो इस बोझ से दबने लगा था की सबकी उम्मीदें उससे जुडी हुई है वो कही किसी उम्मीद पर खरा नहीं उतरा तो क्या होगा ?
विशाल बचपने से इंजिनियर बनना चाहता था उसने शहर के बहुत बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज में ऐडमिशन लिया और जमकर पढाई करने लगा. उसका एक भाई और था जो अमेरिका में नौकरी कर रहा था और उसके सब जान पहचान वाले भी यही सोचते थे की एक दिन विशाल भी अमेरिका चला जाएगा.और विशाल को भी ऐसा ही लगता था की वो दिन जल्दी ही आएगा जब वो किसी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में काम पर लग जाएगा.
रिया ने अपनी इच्छा के हिसाब से बी एस सी में ऐडमिशन लिया और साथ ही साथ फैशन डीजाईनिंग का कोर्स करने लगी.उसका सपना था की वो बहुत बड़ी फैशन डीजाईनर बने.उसके पापा के पास पैसे की कमी नहीं थी घर की एक लौती लड़की थी वो और घर वाले उसे बहुत प्यार करते थे उसका हर सपना पूरा करने के लिए तैयार थे .
सुगंधा ने बी सी ए में ऐडमिशन लिया .२ बहनों और एक भाई के उसके परिवार में वो सबसे बड़ी थी. माता पिता दोनों ही उसे बेहद प्यार करते थे और इस बात का अहसास उसके दिल में भी था की उनके प्यार की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता.उसके पापा ने हमेशा उसके साथ दोस्तों की तरह व्यवहार किया था और माँ उसकी सबसे प्यारी सहेली थी जेसे अपनी हर बात वो इन दोनों के साथ शेयर करती थी.
समय निकलता जा रहा था चारों अपनी पढाई अपनी उलझनों में उलझते रहे और धीरे धीरे उनका मेरे पास आकर लम्बे समय तक बेठना कम होता गया फिर भी बीच बीच में आते रहते थे मिलने के लिए .अब वो मुझे मिलने के साथ एक दुसरे से भी मिल लेते थे.और मुझे अपने दिल की बात भी बता जाते थे.
चारों में आदित्य की हालत सबसे ख़राब थी एक तो अपना सपना पूरा न होने का गम ऊपर से घर वालों की उम्मीदें.देखने में ऐसा लगेगा की क्या हुआ आखिर कितने ही लोग है जो अपनी इच्छाएं छोड़कर घर वालों की उम्मीदों की खातिर ही जिंदगी गुजार देते हैं.आदित्य भी यही कर रहा था पर ये उम्मीदें उसे अन्दर से खोखला कर रही थी.हर समय बस एक बात तू ही तो है बेटा ,उसे अन्दर ही अन्दर तडपाने लगी थी.वो किसी बहन से मस्ती मजाक करता ,छोटी मोटी नोक झोक होती तो माँ उसे कहती तू ही तो एक भाई है तू भी ऐसे करेगा तो क्या होगा इनका,घर वाले कोई भी निर्णय लेना होता तो उसे पूछते पर साथ ही साथ ये भी जोड़ देते की हमारा मन तो ऐसा करने का है पर तू बता दे आखिर तू ही तो है.ये तू ही तो है उसे अन्दर से चिडचिडा बनाने लगा था.
खेर समय तो जेसे पंख लगाकर उड़ रहा था वो किसी के रोके कहाँ रुकता है चारों की पढाई पूरी हो गई .आदित्य और विशाल दोनों की इंजीनियरिंग पूरी हो गई और आदित्य ने एक कोमप्न्य में जॉब करना शुरू कर दिया. विशाल बेहतर आप्शन के लिए इन्तेजार करने लगा .रिया के पापा ने उसके लिए एक बुटिक खुलवा दिया और सुगंधा ने एक कंपनी में जॉब शुरू कर दिया इसी के साथ उसके मम्मी पापा ने उसकी शादी के लिए योग्य वर की तलाश शुरू कर दी.
मुझे उनकी खबर कभी पड़ोसियों से मिल जाती थी और कभी कभी उनके फ़ोन आ जाते थे.सुगंधा और आदित्य कभी कभी ऑफिस से घर आते समय रास्ते में मेरे घर पर रुक जाते थे.
एक दिन सुगंधा मेरे घर में आई साथ में मिठाई का डब्बा और शादी का कार्ड भी लाई.आते ही बोली रुचिका मेम शादी कर रही हु आप जरूर आईयेगा .तब मैंने उसे पुछा सुगंधा तेरा तो जॉब के साथ और पढने का मन था और तू तो अभी २,३ साल और शादी नहीं करना चाहती थी फिर इतनी जल्दी शादी ? उसने कहा : हाँ मेम मन तो बहुत था मेरा पर मम्मी पापा ने लड़का पसंद किया में भी रितेश से मिली हु अच्छा लड़का है वो मुझे लगा में उसके साथ खुश रहूंगी इसलिए शादी कर रही हु.मैंने पुछा कहा है शादी और क्या करता है रितेश? वेसे तो वो लोग अलीगढ के रहने वाले है मेम पर रितेश दिल्ली में एक कंपनी में मेनेजर है इस्लिएशदि के बाद मुझे वही रहना होगा.फिर तेरे इस जॉब का क्या होगा ?अभी तो छोड़ दूंगी मेम फिर दिल्ली जाकर वापस से कोई दूसरा जॉब देख लुंगी. मैंने कोई जवाब नहीं दिया बस सहमती में सर हिला दिया .सुगंधा ने मेरे पास आकार कहा मदम आप विशाल से मिली ? मैंने न में सर हिलाकर कहा नहीं क्यों क्या हुआ? अरे कुछ नहीं मैडम वो कोई कंपनी ज्वाइन ही नहीं कर रहा की और अच्छा ऑफर आएगा.एक कंपनी ज्वाइन की थी वहा ६,७ महिना बड़ी मुश्किल से काम किया और फिर ये कहकर छोड़ दिया की ग्रोथ के चांस नहीं है पता नहीं क्या सोचकर बेठा है मन में.
खेर जाने दीजिए आप शादी में जरूर आईयेगा ,मम्मी ने स्पेशल कहा था मुझे की रुचिका मैडम को घर जाकर बोलना और उनसे कहना की शादी में जरूर आए.
शादी में विशाल ,रिया और आदित्य तीनो आए थे .आदित्य कुछ अनमना सा लगा तो विशाल कुछ चिडचिडा सा.रिया खूब खुश दिखाई दे रही थी मुझसे बोली आपको जल्दी ही शादी में बुलाऊंगी मैडम . एक लड़का है जिसे में प्यार करती हु घर वाले भी तैयार है.में उसकी बात से खुश हुई और उसे बधाई दी.
इस सब के बाद एक दिन पता चला की आदित्य की तबियत ज्यादा ख़राब है सोचा मिलकर आ जाऊ.उसके घर गई तो देखा कोहराम मचा हुआ है.उसकी माँ जोर जोर से रो रही है ये ही तो एक सहारा है हमारा ये क्या हो गया इसे ?आदित्य मुझसे लिपट कर खूब रोया और बस हिचकियों के साथ यही बोलता रहा बस में ही तो हु मैडम इन सब का सहारा पर कोई मुझे क्यों नहीं समझता ,बस में ही तो हु और इतना कहकर वो अचानक से जोर जोर से हसने लगा.में क्या करती उसे थोडा समझाकर चली आई . पड़ोसियों से पता चला की पिछले कुछ दिनों से इन लोगो के घर से लड़ाई झगडे की आवाजें आती थी .जाने किस बात के चलते आदित्य ने ड्रग्स लेना शुरू कर दिया था और जब घर वालों को पता चला तो रोज झगडे होने लगे.आए दिन माँ के रोने की आवाज़ आती थी एक तू ही तो है.सही भी तो कहती थी बिचारी एक अकेला लड़का है अब में उन पड़ोसियों को क्या समझाती की "बस तू ही तो है"इसी बात ने उसे इस हालत में ला खड़ा किया है.वो उम्मीदों को पूरा करने की दौड़ में खुद से पीछे रह गया है...
इस बात को कुछ ही दिन हुए थे एक दिन सुबह सोकर उठी और अखबार हाथ में लिया तो एक खबर पढ़कर जेसे चक्कर आ गया "अच्छा जॉब न मिलने के दबाव में लड़के ने आत्महत्या की"और साथ में चाप फोटो चौकाने वाला था वो विशाल था हमारा विशाल ,मैं वही जमीन पर बेथ गई कुछ समझ नहीं आया बस आँखों के आगे वाही प्यारा बच्चा विशाल घूमने लगा.जाने कितनी ही देर एसी ही बेसुध बेठी रही.
फिर शाम को उसके घर गई वह देखा तो रिया पहले से ही थी उसी ने बताया मैडम ये अच्छे जॉब का इन्तेजार करता रहा ,सारे लोग इसके भाई से इसकी तुलना करते रहे जेसे भाई को पहली बार में अमेरिका से जॉब ऑफर आया वेसे ही इसे भी मिलेगा पर नहीं मिला बीच में रिसेशन आ गया बिचारे की उम्मीदें टूट गई.कई दिनों से उदास सा रहता था पर सोचा नहीं था ये सब कर लेगा.कल रात नींद की दवाई खाकर आत्महत्या कर ली इसने.हमरा विशाल ऐसा कैसे कर सकता है मैडम ये हिम्मत केसे हार गया ? मैं खुद भी रोटी रही और उसे भी भी चुप करवाती रही...पर मौत के आगे हम दोनों ही बेबस थे मन ये बात मानने को तैयार ही नहीं था की विशाल अब कभी वापस नहीं आएगा.
भारी मन से उसके घर से वापस आई मै.विशाल की तेरहवी के दिन फिर उसके घर जाना हुआ वह सुगंधा भी आई थी आखिर उसका बचपन का दोस्त था विशाल.बहुत जोर जोर से रो रही उसके आंसू देखे नहीं जा रहे थे.जाने क्यों असा लगा जेसे विशाल के जाने के गम के साथ ही और भी किसी बात के आंसू बहा रही हो .जेसे अपने कामों का रोना ही विशाल की मौत के गम मे मिला दिया हो उसने.
वह से अनमने मन और रोती आँखों के साथ लौटी उस दिन, विशाल की फोटो पर चढ़ा हार बार बार आँखों के सामने घूम जाता था और मन बस यही कह रहा था विशाल तुमने ये क्या किया क्यों हिम्मत हार गए?
अगले दिन बाद सुगंधा घर आई अभी भी उसकी आँखें सूजी हुई थी बेतकर बातें कर ही रहे थे की विशाल की बात पर वो फिर रो पड़ी मैंने प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरा और पुछा सुगंधा तुम ठीक हो न मत रोओ बेटा जाने वाला तो चला गया.वो बोली मैडम मैं कल आदित्य से मिली थी उसे जल्दी ही पागलखाने में शिफ्ट करने वाले हैं.ये सब क्या हो गया मैडम ?सब कुछ तो कितना अच्छा था फिर ये सब क्यों? मैं क्या जवाब देती बस यही कहा पाई सब किस्मत का खेल है दोनों को उम्मीदें ले डूबी....पर उसकी तो जेसे सिसकियाँ रुक ही नहीं रही थी बार बार बोल रही थी हमारे साथ ही ऐसा क्यों हुआ?
उसने कहा मैडम आपको पता है रिया जिसे प्यार करती है वो सिर्फ उसके पैसे से प्यार करता है पर वो प्यार मे अंधी होकर किसी की बात सुनने ही तैयार नहीं है.सुनकर मुझे झटका लगा मैंने कहा मुझे तो कुछ ही दिन पहले मिली थी उसने कुछ बताया नहीं .हाँ मैडम क्यूंकि वो उस लड़के पर आँख बंद करके भरोसा कर रही है ,मैंने उसे समझाया हो सकता है ये तुम्हारी ग़लतफ़हमी हो शायद रिया सही हो.सुगंधा बोली अब मे लोगो को पहचानने मे गलती नहीं कर सकती मैडम मेरे साथ जो हो रहा है वो सब झेलकर मुझे लोगो का बहुत अनुभव हो गया है....रितेश की मम्मी छोटी छोटी बातों के लिए परेशान करती हैं, बार बार ताने देती है. रितेश कुछ नहीं कहते पर बस ये कहते है में तेरे साथ हु तू सुन ले पर मे उनकी मांगों से उनके तानों से तंग आ गई हु.क्या काम का ऐसा पति जो सही का साथ न दे सके.मैंने सुगंधा को समझाया घर परिवार मे ये सब चलता है तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा.
उस दिन सुगंधा चली गई और में इस सोच मे पद गई की अच्छा खासे हस्ते खेलते ये बच्चे कैसे समय के आगे हार मान रहे है....और मन ही मन बस ये प्राथना करने लगी सुगंधा और रिया दोनों के साथ कुछ भी बुरा न हो.
इन सभी बातों को कई दिन गुजर गए में भी अपने टयुशन पढ़ाने के काम मे लग गई एक दिन बच्चो को पढ़ाकर घर के बहार गेट पर खडी थी की पड़ोस वाली शर्मा आंटी नेकहा "रुचिका थांके या एक चोरी पढवा आती थी नी सुगंधा ?"मैंने कहा हाँ आती थी काकी जी पर अब तो वनको मांडो वी गया ने वा दिल्ली मे है .शर्मा आंटी बोली अबार ई बने खड़ा ताका छोरा छोरी कई रिया था के वा हॉस्पिटल मे भरती है. .पर वा तो दिल्ली मे थी हाँ या हॉस्पिटल मे कसरे आई गी ?शरमा आंटी बोली मने पुच्यो थो अना ती पर हगर भागी गया कई वातायो ई कोनी. मैंने जल्दी से हॉस्पिटल का पता लिया और रिक्शा पकड़कर हॉस्पिटल के लिए निकल गई.
वहा जाकर देखा तो सुगंधा के शरीर पर कई जगह पट्टियाँ बंधी हुई थी.एक हाथ थोडा जला हुआ था जान खतरे मे नहीं थी पर हालत अच्छी नहीं थी.मैंने उससे पूछा ये सब क्या हुआ सुगंधा?कुछ नहीं मैडम असे ही घर परिवार मे ये सब होता रहता है कहकर उसने आँखें बंद कर ली उसकी माँ ने बताया की इसकी सास ने किया ये सब और जमी सा आए थे कल यहाँ बोलकर गए है में तेरे साथ हु तू बस किसी को बताना मत ये किसने किया .बोल देना घर के काम मे हो गया.
मैंने उनसे पूछा रिया आकर गई तो वो सुगंधा बोली मैंने कहा था न मैडम वो लड़का अच्छा नहीं है उसने रिया को धोखा दिया उसे बीच राह मे अकेला चोरकर उसका फायदा उठाकर भाग गया रिया तब से घर से बहार तक नहीं निकली है १ महिना हो गया है अपने कमरे मे बंद कर लिया है उसने खुद को.
ये सब सुनकर मुझे समझ नहीं आ रहा था क्या बोलू....मेरे फूल से खिले हुए ४ विद्यार्थी केसे जिंदगी के खेल मे हार गए....एक दूसरों की उम्मीदों की बलि चढ़ गया तो दूसरा खुद की उम्मीदों की दौड़ मे रेस से बाहर हो गया तीसरी ने धोखा खाया और ये चौथी अपने रिश्तों से परेशान हो गई है हो गई है और अपने भीरु पति से प्यार करने का दर्द झेल रही है.जिसने हिम्मत हारी वो दुनिया से चला गया पर जो जिन्दा है वो भी तो जिंदगी के दर्द झेल रहे है इस सब के लिए जिम्मेदार कौन है ये मैं नहीं सोचना चाहती पर जिंदगी इनके साथ इतनी बेरहम है ऐसा नहीं असा लगता है जिंदगी सबके साथ बेरहम होती है हम में से सब ने कभी न कभी इनमे से कोई दर्द झेला होगा...पर सबकी कहानियों का अंत एक जेसा नहीं होता कुछ जिंदगियां बस तबाह हो जाती है और उन्हें जीने वाले जीते है बस मौत से बदतर जिंदगी के दर्द...............................
6 comments:
न जाने कितनी ऐसी ही कहानियाँ अपेक्षाओं के दबाव में निर्मित होती रहती हैं, स्वतन्त्र चिन्तन न जाने कब आयेगा।
कनु जी
जिन्दगी है , तो समस्याएं भी हैं . कभी- कभी लोग बड़ी अपेक्षाएं पाल लेते हैं और ऐसी परिस्थितियाँ उसी वजह से निर्मित होती हैं .
पूर्वाग्रहों से ग्रसित सोच के दुस्परिणाम भी होते हैं - लेखन अच्छा लगा
kanu ji ye vastvikta hai aur dukhad bhi .
हाँ शालिनी जी ये जीवन की सच्चाई है .एसी सच्चाई जिसे हम नकारते रहते है.
पर एसे कई लोग हमारे आस पास ही है जो इस सब से जूझ रहे है....
This is an excellent post.
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