Wednesday, June 25, 2014

हत्यारे...एक जैसे हत्यारे ....

बात ये नहीं की तुमने उसे कहाँ कैसे मारा
बात ये भी नहीं की मार देने के बाद
तुम्हें कितना अहसास हुआ की तुमने मार दिया ...

मार दिया एक बच्ची को माँ के पेट में
मार दिया उसे किसी पेड़ से लटकाकर
मार दिया उसे काल कोठरी में बंद करके
या मार दिया उसके अरमानो को


फर्क नहीं पड़ता की क्यों  मारा
फर्क नहीं पड़ता की मंशा क्या थी
पर जिस दिन तुमने उसे ये जानकर मारा
 की वो लड़की थी
तुम चाहे कितने ही ढोंग रचा लो
तुम्हारी नियत खराब ही है

तुमने अगर उसके अरमानों को मारा
बिना अपनी किसी मजबूरी के
सिर्फ इसलिए की वो लड़की जात है
उसे हक नहीं बराबरी से जीने  का
हसने मुस्कुराने ,सपने पूरे करने का
तो तुम भी गुनाहगार हो
क्यूंकि तुमने उसे जीते जी मार दिया

तुम सब ....हाँ सब बराबर के गुनाहगार हो
चाहे तुम माँ बाप हो अजन्मी बच्ची के
तुमने लड़की को रेप करके लटकाया फांसी  पर
या उसे जला दिया दहेज की आग  में
या मार दिया उसे जीते जी
सबके हाथ खून में रंगे हैं
तुम सब हत्यारे हो एक जैसे हत्यारे .....

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

Wednesday, April 23, 2014

बस कह ही नहीं पाता हूँ मुझको तुमसे कितना प्यार है

एक ऐसी कविता जिसे कोई पुरूष लिखता तो बेहतर लिखता ज्यादा शिद्दत से लिखता...पर मैंने लिखी...लोग कहते हैं नारी का मन पढ़ा नहीं जा सकता..पर सच ये है कि पुरूष का मन ज्यादा गहरा है...उसमें भी प्रेम हैं संवेदनाए है...पुरूषो की ओर से ये एक कविता हर नारी के लिए....

क्या कहूँ ओ प्रियतमा 
तुम क्या मेरे जीवन में हो
शब्द ही नहीं मिलते उसे
जो प्रेम के बंधन में हो.

तुम अहसास हो हर साँस का
जीने का तुम आधार हो
आस की डोरी हो तुम
मेरे लिए संसार हो.

कह नहीं पाता मैं तुमसे
प्रेम के वो शब्द भी
उलझा हुआ भवसागर में
रहता हूँ में स्तब्ध भी.

जानता हूँ मेरी अनदेखी से
तुमको
रात दिन होती घृणा
पर सच कहूँ सबके लिए ही
ये कर्म का रस्ता चुना.
.
हाँ पुरूषो ने जन्मों जनम तक
नारियों के मन छले
पर कुछ दियों की उद्धन्डता का
दंड़ सबको क्यू मिले.
.
तुमने आँखों के सामने
देखाबच्चों को बढ़ते हुए
रोटियों के फेर में मैंने
वो सारे पल खो दिए

तुम माँ हो बहन होपत्नी हो
 प्रेम की छावं हो
मेरे लिए तुम दुपहरी में
शांति का गाँव हो

तुम घर में रही तो 
तुमनेघर को प्रेम का बल दिया
बाहर गई तो हर हाल में
मुझको अपना संबल दिया

तुम्हारे आँसुओं की हर धार
मेरे हृदय पर वार है
बस कह ही नहीं पाता हूँ
मुझको तुमसे कितना प्यार है

मैं वक़्त ना दे पाऊं
इस बात का ग़म है हमें
पर प्रेम है इस बात का
वचन देता हूँ तुम्हें

तुमने मेरे जीवन को सींचा
प्यार की फुहार से
मैं ज़रा पगला हूँ
कह पाता नहीं हूँ प्यार से

जब कभी लड़ता हूँ
सारी रात न सोता हूँ मैं
तुम मुँह ढांककर रोती हो
और मन ही मन रोता हूँ मैं
 
तुम्हारी तरह मेरा दर्द
चेहरे पर दिखता नहीं
पर ना समझना ये कि
मेरा दिल कभी दुखता नहीं

मनाना आता नहीं पर
दिल से मानता हूँ मैं तुम्हें
गर कभी तकलीफ में हो
साथ पाओगी मुझे....

कनुप्रिया गुप्ता....आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

Tuesday, April 1, 2014

अधूरी चिट्ठियाँ :परवाज़

फ़ोन की लम्बी लम्बी  बातें कभी वो सुकून नहीं दे  सकती जो चिट्ठी के चंद शब्द देते हैं .तुम्हे कभी लिखने का शौक नहीं था और पढने का भी नहीं तो मेरी न जाने कितनी चिट्ठियां मन की मन में रह गई न उन्हें कागज़ मिले न स्याही .तुम्हारे छोटे छोटे मेसेज भी मैं कितनी बार पढ़ती थी तुमने सोचा भी न होगा ,ये लिखते  टाइम तुमने ये सोचा होगा ,ये गाना अपने मन में गुनगुनाया होगा शायद  परिचित सी मुस्कराहट तुम्हारे होठों पर होगी जब वो सब यादें आती है तो बड़ा सुकून सा मिलता है ..और एक ही कसक रह जाती है काश तुमने कुछ चिट्ठियां भी लिखी होती मुझे तो ये सूरज जो कभी कभी अकेले डूब जाता है,ये चाँद जो रात में हमें मुस्कुराते न देखकर उदास हो जाता है तुम्हारे पास होने पर भी जब तुम्हारी यादें आ कर मेरे सरहाने बेठ जाती हैं इन सबको आसरा मिल जाता ..ये अकेलापन भी इतना अकेला न महसूस करता ....अब तो सोचती हु तुमने न लिखी तो में कुछ चिट्ठियां लिख लू  पर जिस तरह  तुम खो रहे हो दुनिया की भीड़ में तुम्हारे दिल का सही सही पता भी खोने लगा है  तुम तक पहुँच भी  गई गई तो जानती हु  तुम पढोगे नहीं .....पर फिर भी मेरी विरासत रहेगी किसी प्यार करने वाले के लिए ..

तुम्हे चिट्ठियां लिखने की तमन्ना होती है कई बार
पर तुम्हारे दिल की तरह तुम्हारे घर  का पता भी
पिछली  राहों पर छोड़ दिया कहीं भटकता सा
अब बस कुछ छोटी छोटी यादों की चिड़िया हैं
जो अकेले  में कंधे पर आ बैठती  है
उनके साथ तुम्हारा नाम आ जाता है होठों पर
और कुछ देर उन चिड़ियों के साथ खेलकर
तुम्हारा नाम भी फुर्र हो जाता है
अगली बार फिर मिलने का वादा करके......
पर सब जानते है कुछ चिट्ठियां कभी लिखी नहीं जाती
कुछ नाम कभी ढाले नहीं जाते शब्दों में 
कुछ लोग बस याद बनने के लिए ही आते है जिंदगी में
और कुछ वादें अधूरे ही रहे तो अच्छा है.....



आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

परिक्रमा शब्दों की :परवाज़

कई दिनों से कुछ लिखा ही नहीं जिसे यहाँ औसत किया ये कुछ  टुकड़े है कविताओं के  बस जो फेसबुक पर बिखरे थे समेत लाई हूँ …
1. नज़दिकियां बढ़ी तो पता चला आसमां भी तंगदिल होता है...
   कितने छोटे थे वो लोग जो सर पर साये की तरह थे 


2. मैं तेरे नाम को हज़ार जगह लिखती हूँ,
पर जो खो गया है लौटकर वापस नहीं आता....
तेरे नाम को हर जगह से मिटाती हूँ, 

पर जो बस गया है वो जाते नहीं जाता

3. ठहरे तो भी दिक्कत जाए तो भी ग़म हो,
तुम दिल के लिए जैसे सावन की तरह हो गए
आबो हवा की तरह अंदाज़ बदलने लगे,
तुम हर बार एक नए मौसम की तरह हो गए

की रश्क भी कैसे करें तेरे आशिकमिजाज़ से
हर चेहरे का अक्स लिए बैठे हो दर्पण की तरह हो गए....
रोक ले कैसे तुम्हें पल्लू से बांधकर ?
हर शीश की शोभा हो तुम चंदन की तरह हो गए...


4. बरसों से तेरे नाम का कलमा नहीं पढ़ा
तू खुद को खुदा मानकर कब तक इतराएगा
जा नाम को तेरे अपने नाम से जुदा किया
तू अपनी खुदाई को अब कैसे बचाएगा
 
  


5.  नींद न आए तो शिकवा करें किससे
कहीं दूर समंदर में सारे ख्वाब गर्क हैं
ये धूप के शहर हैं यहां कैसे मिले कोई
और अब नमी के शहर की नीयत में फर्क है...


6. तू मुल्कों मुल्कों में ढ़ूंढ़ उसे आवारा होकर बादल सा
वो इश्क तुझी में तन्हा था ,बन बैठा था पागल सा
तेरे रस्ते तेरी मंज़िल,सूना रस्ता सूनी मंज़िल
तेरा सब बस इक तेरा था वो रह गया यायावर सा.....

 
 आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

Monday, January 20, 2014

इतिहास में स्त्री की झूठी भूमिका

 हमें नहीं चाहिए इतिहास की उन किताबों में नाम
जिनमें त्याग की देवी बनाकर स्त्री-गुण गाए जाए
त्याग हमारा स्त्रिय गुण है जो उभरकर आ ही जाता है
पर इसे बंधन बनाकर हम पर थोपने का प्रपंच बंद करो......

नहीं चाहिए तुम्हारी झूठी अहमतुष्टि के लिए अपनी आत्मा से प्रतिपल धिक्कार....
तुम अपने आहत अहम के साथ जी सकते हो पर हम बिखरी आत्मा के साथ नही....
तुम अगर नर हो तो हमारे जीवन में नारायण का किरदार निभाना बंद करो....

ये सारे घटनाक्रम जो कल इतिहास में लिखे जाने हैं
लिखे जाएंगे तुन्हारे अनुयायियों द्वारा, तुम्हारे गुणगान के लिए
हमेशा की तरह किसी द्रोपदी को महाभारत का कारण सिद्ध करते हुए...
या किसी सीता पर किए गए अविश्वास को धर्म का चोगा पहनाते हुए...

तुमहारे इतिहास के पदानुक्रम में हमें ऊपर या नीचे
कहीं कोई स्थान नहीं चाहिए
हम अपने हिस्से के पन्ने स्वयं लिख लेंगे .....
हो सकता है उन्हें धर्मग्रंथ का मान न मिले
पर तुम्हारे इतिहास में मानखंड़न से बेहतर है
अपनी क्षणिकाओं में सम्मान के साथ लिखा जाना.....
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी