Friday, April 20, 2012

आज रह रह कर तुम फिर याद आते हो ..........

मेरी इक अजीब सी आदत है इक माला साथ लिए चलती हू (शब्दों की ) और जगह जगह उसके मोती बिखेर देती हू फिर उसी रस्ते पर पलटकर जाती हू और उन मोतियों को इकठ्ठा करके इक जगह रख देती हू .अजीब है न पर अच्छा लगता है इन मोतियों को बिखेर बिखेर कर समेत लेना. लगता है जेसे कुछ सहेज लिया हो अपने पास हमेशा के लिए .... अब ये मोती पक्के है या नहीं  ,असली है या नकली है ये तो सारे पढने वाले ज्यादा बेहतर जानते है पर एसे ही कुछ जगह बिखरे शब्द इकट्ठे करके आप सबकी नज़र कर रही हूँ....

१.
सारी दुनिया को मोह्हबत सिखाने वाले
क्यों अपने ही प्यार से नज़रें छुपा के चलता है
ना भूल महफ़िलों में प्यार पर गाने वाले
कोई घर पर भी तेरा  इंतज़ार करता है

बिन बुलाये मेरे साथ ना आओ देखो
मेरी मुस्कान अपनी मंजिल ना बनाओ  देखो
बड़ी मुश्किल से संभाला है अपने दिल को
जो भूला है उसे याद ना दिलाओ देखो....


साहिल किनारे खड़े रहकर ना लहरों को गिनो
कश्ती को समुन्दर में उतारो तो मज़ा आ जाए
नाम, रुतबा ये अलग किस्म की चीज़ें है
ज़रा इज्जत भी कमा लो तो मज़ा आ जाए

४.
याद के गाँव में मुस्कुराते हो
आज रह रह कर तुम फिर याद आते हो ..........

विछोह  की तपती गर्मी में
पावस सी ठंडक लाते हो
आज रह रह कर तुम फिर याद आते हो ..........

तेरा जाना मेरा रहना
 मेरा जाना तेरा रहना
सब बात पुरानी लगती है
तुम नासूर नहीं हो खुशबू हो
मीठा अहसास दिलाते हो
आज रह रह कर तुम फिर याद आते हो ..........

बस आज इतना ही फिर मिलेंगे......
 
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Tuesday, April 17, 2012

वो एसी पागल लड़की थी....

ए चितेरे मेरा चित्र बनाओगे क्या ? एसा चित्र जो सच में मेरा हो मेरा दर्पण...बोलो बना सकोगे एसा चित्र ? एसा चित्र जिसमे इक रेगिस्तान हो जिसके बीचोबीच समुन्दर हो रेगिस्तान भी फेला हुआ और समुन्दर भी अथाह .इस समन्दर के बीच इक पनडुब्बी में रखे इक संदूक में बंद "मै'....बार बार बाहर निकलने की कोशिश करती हुई ..प्यास से तडपती हुई एकदम निस्तेज पर इस आस मै तड़पती की समुद्र के उस पार कोई मेरा इंतज़ार कर रहा है ...ये जानते हुए भी की संदूक से बाहर आकर मै पनडुब्बी से निकाल भी गई तो अथाह समद्र मेरी प्यास ना बुझा सकेगा ...पर शायद इंतज़ार करने वाले की उम्मीद मुझे पार लगा दे...ये जानते हुए भी की आग सी गर्मी से तपता रेगिस्तान मुझे जिन्दा ना रहने देगा पर फिर भी ना जाने किस उम्मीद से बंधी मै बाहर आना चाहती हू बस इक बार इंतज़ार करने वाले उस चहरे को देखना चाहती हू....बोलो बनाओगे मेरा एसा चित्र ?
एसे चित्रकार का बड़ा इंतज़ार है उसे ...

वो लड़की है ही एसी एकदम पागल ,दीवानी सी .जाने क्या क्या सोचती है  ...दुनिया में जीने की हजारों वजहों को छोड़कर जाने कहाँ  से मरने के नए नए बहाने खोज लाती है जेसे आज ही पीएचडी करेगी इस सब्जेक्ट में ...जितनी शिद्दत उसमे अलग सी जिंदगी जीने की है उससे कई ज्यादा शिद्दत अलग सी मौत मरने की है ..खामोश मौत से उसे बड़ा डर लगता है ....वो चाहती है उसके चाहने वाले सारे लोग उसकी मौत तक जिन्दा रहे और  वो रात को अपनी पसंद के समोसे खाए और सो जाए फिर कभी ना उठे ...

जिसे वो प्यार करती है वो जब सुबह उसे आवाज़  देकर उठाए तो वो जगे ही ना ...और तब उसे अहसास हो की वो लड़की उसे छोड़कर एसे अचानक से चली गई ...उसके जाने के लिए कोई भी तैयार ना हो ,उसके लिए किसी ने ना सोचा हो की वो एसे चली जाएगी ,उसके जाने के बाद कोई ना कहे की उम्र हो गई थी,बीमार थी अच्छा हुआ भगवान ने उठा लिया...बस सारे  ये कहें अरे कल रात को तो हँस हँस कर समोसे ख़ा  रही थी,कोई कहे कितना पीछे पड़ पड़कर बातें कर रही थी मैंने ही ध्यान नहीं दिया काश उसकी बातें सुन लेता...कोई कहे कल ही तो कह रही थी इस सन्डे बाजार जाएगी , कोई कहे थोड़े दिन पहले ही तो कह रही थी मुझे डांस सीखना है  और बस लोग एसी ही बातें करे और वो चली जाए....कब ? कैसे ? क्यों ? ये सारी वजहें बाद में लोग खोजते रहे वो बस चली जाए .......

एसी मौत किस्मत वालों को मिलती है  और एसी लड़कियां भी शायद...हाँ पर ये बात अलग है की एसी लड़कियां जिन्हें मिलती है उनकी किस्मत जितनी अच्छी होती उतनी ही खराब भी बिचारे इनके प्रेम से परेशान हो जाते हैं ,जिंदगी से भी प्यार और मौत से भी प्यार ...अलग ही किस्म है इन लड़कियों की ..सबको मिलती नहीं और जिन्हें मिल जाए उनमे से ज्यादतर से संभलती भी नहीं  ....

अब इक कविता....जिसे कविता मान लेना या ना मान लेना पढने वालो पर है...पर ये जेसे इक इच्छा सी होती है एसी लड़कियों की ....

मेरी मौत तुमसे पहले होगी
ये अब बहस का मुद्दा ही नहीं
क्यूंकि वो खुदा भी
मुझे प्यार करता है
तुमसे ज्यादा या कम ?
ये तुम दोनों आपस में समझ लेना
मैं बस इक बात मांगती हू
बोलो दोगे ना ?
जब मैं इस दुनिया से जाऊ
मुझे कफ़न की जगह
मेरे खवाबों से सज़ा देना
बाकि सारी रस्मे तो
ये दुनिया निभा देगी
तुम्हारे मन से जुदा करे या ना करे
ये तुम और दुनिया समझ लेना
बस मेरे शब्दों को कभी
अपने से अलग मत करना
उन्हें अपने दिल में सभाल लेना....

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Tuesday, April 10, 2012

टूटकर प्यार करना सबका नसीब नहीं

वो  खुशनसीब है  की तुम्हे इस कदर टूटकर प्यार करती है  ....तुम कर पाओ या ना कर  पाओ,करते हो या नहीं करते हो ये उसके  लिए मायने रखता है पर उसकी  मोहब्बत को कम नहीं करता...तुम्हारी बातों पर रोना वो हमेशा से अपने कमज़ोर दिल की मजबूरी मानती रही है और उसका दिल दुखाना (अनजाने में ही या जानबूझकर पता नहीं ) तुम हमेशा से अपना हक मानते रहे हो न तुम बदलते हो न वो बदलती है .
तुम हर बार या हर रोज वही सब करते हो जो उसे रुला दे और वो हर दिन बूँद बूँद रीतने के बाद फिर आंसू बहाने के लिए बूँदें इकट्ठी कर लेती है ,न तुम समझते हो न वो समझती है .
लोग कहते है तुम दोनों साथ में मुस्कुराते हुए बड़े प्यारे लगते हो पर वो चाँद जानता है आधी ,उदास रातें जानती है और शायद तुम दोनों भी की तुम दोनों साथ में रोते हुए कुनमुनाते हुए ज्यादा प्यारे लगते हो एकदम पवित्र निर्दोष से ...पर सच ये भी है की साथ की उन मुस्कुराहटों के लिए तुम भी तरसते हो वो भी तरसती है ...
प्यार का तुमने अलग ही फलसफा खोजा है साथ रहो तो लड़ते हो और दूर रहो याद करते हो पर सब जानते हुए भी न तुम सुधरते हो न वो सुधरती है ...शायद ये भी प्यार ही है ........

तुम बस दिल तक जा सके दर्द को छु नहीं पाए 
आंसुओं  की ये दौलत  खुदा ने बस मुझे दी है

मुझे टूट कर चाहना तेरे हिस्से में नहीं है
ये पाकीज़ा नेमत खुदा ने बस मुझे दी है

तुम मोहब्बत तो कर बेठे मगर लोगो से डरते हो
सारी दुनिया से  बगावत खुदा ने बस मुझे दी है

किसी की नफरत भी संभालो ये हुनर तुमको नहीं मिला
बेरुखी सहने की नजाकत खुदा ने बस मुझे दी है

मेरी रूह में उतरे तो तुम्हे डर है भीग जाने का
ये डूब जाने की हिम्मत खुदा ने बस मुझे दी है

मोहब्बत में मुसीबत हो तुम नसीबो का खेल मानोगे 
नसीब से लड़ जाने की ताकत खुदा ने बस मुझे दी है

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Tuesday, April 3, 2012

मेरी आत्मा को मत बेचना.....कविता और कवि

ए मेरे जन्मदाता कवि
मुझे यूँ अकेले भटकने के लिए ना छोड़ो
इस मशीनी दुनिया में मैं रास्ता  भूल जाउंगी

तुमने मुझे अपनी घोर बेचैनियों को  पालकर
मोह और निर्मोही जीवन के बीच संघर्ष करके
अस्तित्व को दिन प्रतिदिन की चुनौती देकर
बड़ा दर्द उठाकर जन्म दिया

अब इस तरह मुझे इन निर्मोही वाहकारों
की कुछ वाह वाह के लिए नीलाम ना करो
कुछ पन्नो में मुझे समेट कर जिल्द की बेडी में जकड़कर
अपनी कला का अपने दर्द का अपमान ना करो

याद है तुम्हे तुम घोर विचार जंगलों में
कही बहुत अन्दर बैठी उस मासूम लड़की
के बालों में उलझे  शब्द खोज लाए थे
और उन्हें पिरोकर मेरे लिए माला बनाई थी
तब से आज तक वो लड़की अपने बाल नहीं बांधती
बस तुम्हारा इंतज़ार करती है ...

विचारों के उस जंगल का हर कतरा
हर लहर,नदियाँ ,पहाड़ ,बादल सब
तुम्हारे उनके करीब जाने के अनंत इंतज़ार में हैं
पर तुम चमक दमक में खो गए हो कहीं
वो गहरा दर्द वो  शापित रात्रियाँ ,
वो अनसुलझी  पहेलियाँ सब तुम्हे पुकारती हैं
पर तुम प्रसिद्धि के शोर में
नेपथ्य से आती वो आवाजें सुन नहीं पाते

हे दर्द के कवि,प्रेम के पुजारी
मुझे इस मशीनों  के पुजारियों को मत सौपो
मेरे शब्द दे दो मेरा रूप देदो पर
बस मेरी आत्मा को मत बेचना  कभी....
ना अपनी आत्मा को .....
सुन रहे हो ना....

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