दिसंबर की वो ठंडक सारे शहर को जमाए दे रही थी पर वो आधी रात तक अपने होस्टल की छत पर खड़ी कंपकपाते होंठो ठिठुरते हाथो में फोन लिए उससे बात करती , एक स्वेटर पहने या शाल ओढे वो कहती सुनती रहती और सोचती प्रेम की ऊष्मा सच में गजब की होती हैतरफ एक तरफ जहा पेड़ पोधे भी ठण्ड के मारे ऐसे सिकुड़ जाते जेसे सर्दियों का ये मौसम सबमे कुमुदिनी के गुण बाँट रहा हो ,वहीँ दूसरी तरफ वो कुमुदिनी की तरह खिल उठती .....
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
कभी कभी प्यार सिर्फ इसलिए नहीं होता की दिल को कोई अच्छा लगे या देखकर, सुनकर कोई आपको भा जाए ,कभी कभी प्यार इसलिए भी होता है क्यूंकि आपको उसकी जरुरत होती है ,आसपास का सन्नाटा आपको निगल ने ले ये दर आपको खाए जाता है . कभी कभी प्यार इसलिए भी नहीं होता की आप पर प्यार का जादू चढ़ा होता है ,वो इसलिए होता है अगर वो न हो तो ज़िन्दगी गजब की बेमानी सी लगने लगे ...
उन दोनों का प्यार भी कुछ ऐसे ही जन्मा था ...जैसे धरती हर बार अम्बर से प्यार करने पर सोचती होगी की अम्बर से मिलन संभव नहीं ,क्षितिज मिथ्या है , पर प्रेम तो प्रेम है हर बार सब जानते समझते वो अम्बर से दिल लगा बैठती होगी ये सोचकर की ये आसरा तो है की कोई है उसे प्रेम करता है कोई है जिसे वो प्रेम करती है कोई है आते ही उसके होंठ मुस्कुरा देते है। कोई जिससे वो मन की सारी बातें कह देती है उसकी सारी बातें सुन लेती है जिसे दिल की गहराई से प्यार किया जाए फिर चाहे वो मिले न मिले . हालाँकि बदलते ज़माने में इस तरह का प्रेम कम ही होता है पर लड़की को भी हुआ और लड़के को भी ऐसे ही प्रेम ने गिरफ्त में लिया ....(शायद )
प्यार ने उनकी ज़िन्दगी में बड़े आराम से दस्तक दी , दोनों अपने अपने घर से दूर नए शहरों में ज़िन्दगी के साथ आँख मिचोली खेलने आए थे ,कभी जिंदगी उन्हें हराती कभी वो जिंदगी को मात देते कुछ सीख भी लेते और कुछ भी देते ज़िन्दगी को , इस सारी उथल पुथल में दोनों के पास बस एक चीज की कमी थी किसी ऐसे इंसान की जिसे वो हार जीत की नए तजुर्बे की बातें सुना सके जिसके साथ हस सके रो सके .....
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निशा अपने शहर लखनऊ से दूर पहली बार जॉब के लिए दिल्ली आई थी वैसे ये शहर उसके लिए नया नहीं था वो पहले भी प्रोफेशनल ट्रेनिंग के लिए 3 महीने इस शहर से रूबरू हुई थी पर तब उसके साथ उसकी खास दोस्त वैशाली थी ...दोनों बचपन की सहेलियां थी साथ साथ पढाई की थी साथ ही ट्रेनिंग करने दिल्ली आई और तब दोनों को एक दुसरे का खूब सहारा था । वैसे देखा जाए तो दोनों का स्वभाव काफी अलग था , वैशाली जहाँ खुले विचारों वाली थी वो खुले माहोल में पली बढ़ी भी थी ,फेशनेबल कपडे ,चमक दमक ,घूमना फिरना , डिस्को ,पार्टियों पर खर्चा करना उसकी ज़िन्दगी का हिस्सा था वही निशा तेज तर्रार तो थी पर स्वभाव से थी पैसे खर्च करने और उड़ाने के बीच का अंतर बनाए रखती थी , थी पर उन्ही लोगो से ज्यादा बातें करती जो उसके मन को अच्छे लगते , कुल मिलाकर वो आधुनिक थी पर अपनी बनाई कुछ सीमाओं में बंधी रहना पसंद करती थी ....पर दोनों में एक बात कामन थी दोनों एक दुसरे का ख्याल रखती थी गहरा अपनापन था दोनों के बीच ...सालों से चली आ रही दोस्ती को वो ज़िन्दगी भर की दोस्ती मानती थी .....
पर इस बार जब निशा दिल्ली आई तो उधेड़बुन में थी सारे दोस्त ज़िन्दगी के साथ चहलकदमी करने अलग अलग शहरों में चले गए और उसे इस शहर ने वापस बुला लिया ...किस्मत का खेल था की उसका कोई भी दोस्त दिल्ली नहीं आया जॉब के लिए और वो अचानक से अकेली सी हो गई वैसे होस्टल वही था जहा वो पहले भी रह चुकी थी पर दोस्तों परिवार सबका एक साथ छूट जाना उसके लिए एक सदमे की तरह था । हर दोस्तों से बात होती, घर बात होती पर सब कुछ जेसे हाल चाल पूछने पर सिमट गया था अचानक आया खालीपन उसे तकलीफ दे रहा था ...
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ऐसे ही दिन तो निकल रहे थे पर अच्छे निकल रहे थे ये अजीब है शायद . एक दिन वो बालकनी में खड़ी थी तभी उसके मोबाईल पर एक कॉल आया सामने वाला किसी अर्पिता को पूछ रहा था उसने रांग नंबर कहकर बात ख़त्म कर दी . थोड़ी देर बाद फिर कॉल आया और एक लड़के ने आवाज़ में कहा " मैं अंशुल बोल रहा हु अर्पिता मेरी दोस्त है शायद उसने नुम्बर बदल लिया है और सर्विस प्रोवाईडर ने नुम्बर आपको अलोट कर दिया है आप मेरी कुछ हेल्प कर सके तो ....
निशा ने बीच में ही बात काटते हुए कहा " देखिए ये सब तो में नहीं जानती पर ये नंबर अब मेरा है हां कभी अर्पिता का आया तो में नंबर लेकर रख लुंगी ताकि और लोगो को परेशानी न हो " और ये कहकर उसने कॉल कट कर दिया ।
थोड़ी देर में उसने फ़ोन देखा तो उसी नंबर से मैसेज आया था - "सॉरी में आपको परेशान नहीं करना चाहता था " थोड़ी देर के लिए तो निशा को लगा कोई दोस्त होगा जो मजाक कर रहा है क्यूंकि उसके दोस्त कई बार ऐसे मजाक करते रहते थे ,नए नए नंबर से फ़ोन करना या नए नंबर से मैसेज करना और पूछना कैसी है क्या कर रही है और एसे ही तंग करना ..उसके लगभग सभी दोस्त कई कई बार असे मजाक कर चुके थे .निशा ने मैसेज किया " इट्स ओके " और सोचा कोई दोस्त होगा तो ठीक है नहीं तो भी सॉरी बोल रहा है जवाब देना तो बनता है .
वैसे भी अनजाने लोगो से बात करना उनके मेसेजेस का जवाब देना उसके लिए बड़ी बात नहीं थी ,"कम्युनिकेशन मेनेजर"थी वो मल्टीनेशनल कंपनी में और दिन भर ऐसे मेसेज का जवाब देना उसके प्रोफेशनल एथिक्स का हिस्सा था और इस आदत ने अब निजी जिंदगी में भी जगह बना ली थी ...उसने इंतज़ार किया पर किसी दोस्त का फोन नहीं आया तब उसे सच में लगा की किसी अंशुल ने उससे माफ़ी मांगी है .
इस बात पर ज्यादा न देते हुए वो काम में लग गई और जल्दी ही इस बात को भूल भी गई और फिर से काम और अकेलेपन ने उसे घेर लिया कभी कभी वो अकेले में सोचती काश ! उसे भी किसी से प्यार हो जाता पर ये बात जैसे उसके दिमाग आती वैसे ही थोड़ी देर में चली भी जाती क्यूंकि जैसे प्रेम की इच्छा वो रखती थी वैसा प्रेम होना बड़ा कठिन है . आधुनिक दुनिया में होने के बाद भी वो प्यार का रूप पसंद करती थी अपने आस पास की लड़कियों की तरह वो ऐसा लड़का नहीं चाहती थी जो उसे घुमाए फिराए शोपिंग कराए या फिल्म दिखाए वो तो सच्चा प्यार चाहती थी ज़िन्दगी में . वैसे प्रेम को लेकर उसकी धारणाएं अलग सी थी उसे लगता की जरुरी नहीं प्रेम एक ही बार हो ,वो मानती की तब तक बार बार होता है जब तक आपके हिस्से का प्यार आपको मिल न जाए ,पर दूसरी तरफ वो ये भी मानती थी की सच्चा प्यार नहीं मिलता . उसे लगता था प्रेम का मतलब सिर्फ पाना नहीं कभी कभी खोना भी प्रेम है वही दूसरी तरह वो मानती की प्यार को ऐसे ही नहीं जाने देना चाहिए पूरी कोशिश करनी ही चाहिए ....ऐसी जाने विरोधाभासी परिभाषाएं उसने प्रेम के लिए गढ़ रखी थी ...
कभी वो मानती उसे प्यार हो ही नहीं सकता और कभी इंतज़ार करती प्यार के आ जाने का ...ऐसा लगता मानो उसे प्रेमी से ज्यादा प्रेम का इंतज़ार था और उससे भी ज्यादा का इंतज़ार कर रही थी ,महसूस करना चाहती थी प्यार के हर पहलु को ....अजीब सी थी वो गुलाब के फूलों से ज्यादा काँटों की चुभन महसूस करना चाहती थी शायद ........
अगली किश्त जल्दी ही ..........(जिसमे अंशुल से मिलेंगे ,और जानेगे कैसे होगा ये शर्तों वाला प्यार और क्या होगी वो शर्त )
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