Saturday, July 30, 2011

हे अतिथि (कसाब) तुम कब जाओगे ?"

कल शाम से ही स्वर्ग और नरक या कहे तो जन्नत और जहन्नुम  दोनों में हडकंप मचा हुआ है कारण आप सब जानते है. वो एसा कारण तो है ही जिसके कारण हडकंप मच सके आखिर उसने २६ नवम्बर २००८ को पूरे मुंबई में हडकंप मचा दिया था. हाँ में उसी महान (अन्यथा ना ले पर पिछले दो साल से जिस तरह से उसे सर आँखों पर बिठाकर उसकी मेहमाननवाजी कर  रहे  हैं उसे देखकर अब यही लगता है) आतंकवादी ,हत्यारे कसाब की बात कर रही हू .हमारे देश में जब जमाई (बेटी का पति) घर आता है तो उसकी खूब खातिरदारी की जाती है उसे किसी तरह की कोई तकलीफ ना हो ये ध्यान रखा जाता है.कसाब को  जेल में जो सुविधाएं प्रदान की गई उन्हें देखकर लगता है वो जमाई जेसे मजे लूट रहा है .


 हम स्वर्ग- नरक पर थे वहा हडकंप मचा हुआ है क्यूंकि कसाब ने अपनी फासी की सजा के खिलाफ उच्चतम नयायालय जाने का फैसला लिया है अब साल भर वो वहा निकाल लेगा और फिर भी संतुष्टि ना मिली तो राष्ट्रपति  के पास अर्जी दे देगा....हाँ तो स्वर्ग में हडकंप इसलिए है क्यूंकि २६/११ के हमले में जो बेकुसूर मारे गए उनकी आत्माएं कराह रही है बार बार कह रही है "हमें किसी ने मौका क्यों नहीं दिया काश हमें भी मौका मिला होता कुछ पल और जीने का" .इन आत्माओं के साथ वो आत्माएं भी दुखी है जो हाल ही में हुए मुंबई हमले के कारण वहा पहुंची है.आखिर सबका एक ही दुःख है हम उस हत्यारे को सजा तक नहीं दे पा रहे जिसने इतने मासूम लोगो को अधूरी जिंदगी और अकाल मृत्यु की सौगात दी.
            
इधर नरक में हडकंप इसलिए है क्यूंकि यमराज उसका कई दिनों से इन्तेजार कर रहे है वो आएगा तो क्या गत बनाई जाए .वेसे सूत्रों से पता चला है की वो भ्रम में थे की  कसाब को वेसी ही सुविधाएं देनी है जेसी भारत में उसे दी जा रही है या उसे उसके कर्मों की सजा दी जाए.उनका ये भ्रम चिर्तागुप्त ने दूर कर दिया है ये कहकर यहाँ कर्मों के हिसाब से दंड दिया जाएगा हम भारत  की तरह व्यवहार नहीं कर सकते. हमने इन्हें अतिथि देवो भव: की सीख क्या दी ये तो सबकी मेहमान नवाजी करने लगे है....पर हम भी एसा ही करेंगे तो लोगो का हम पर से भी(से भी इसलिए क्यूंकि सर्कार से लगभग उठने लगा है) विश्वास उठने लगेगा.हमने इन्हें उपकार की भावना सिखाई,ये सिखाया की मानव मात्र की सेवा करो अब ये इतने उपकारी बन गए है की इन्हें बस एक ही मानव दिख रहा है पूरे देश में और ये बस उसी पर उपकार किए जा रहे है .पर जब वो यहाँ आएगा तो हम उससे इन रोती बिलखती आत्माओं के हर दर्द का हिसाब लेंगे.

पिछले दो साल से वो कभी कहता है  मैंने जुर्म किया, कभी कहता है नहीं किया,कभी कहता है में दोषी हू पर ,मृत्युदंड  मत दो.हर बार वो हमारे न्यायालय को बरगला रहा है और हम उसे झेल रहे है .हमारी न्याय व्यवस्था कहती है निर्दोष को दंड नहीं मिलना चाहिए पर सब जानते है वो दोषी है एसा दोषी जिसका दोष अगर क्षमा किया गया तो जाने कितने कसाब और आएँगे  और सीना ठोककर २६ नवम्बर और १३ जुलाई जेसी घटनाओं को अंजाम देंगे.पर हम चुप है जेसे काठ मार गया हो सबको.....बोलेंगे भी क्यों?हमें आदत पड़ गई है चुप रहने की.


भारत सरकार ने करोडो रूपए उसके ऊपर खर्च कर दिए कभी सुरक्षा ,कभी मानवाधिकार ,कभी मानवीयता के नाम पर . और विश्वास करिए ये पैसा नेताओं का नहीं है, ये वो पैसा है जो हम लोगो ने सरकार को टैक्स के रूप में दिया है .इसमें से कुछ पैसा वो भी होगा जो उन लोगो ने या उनके परिवार वालों ने टैक्स में दिया होगा जिनकी जाने इन आतंकी हमलों में चली गई.दिल रो उठता है ये सोचकर हमारी रुपया रुपया बचाकर देश सेवा के लिए टैक्स के रूप में दी गई राशि जान लेने वालों पर लुटाई जा रही है...

  हाँ तो नरक स्वर्ग में क्या हुआ आगे देखते है कल की घटना के बाद वहा हडकंप है क्यूंकि, यमराज पिछले  २ साल से उसके लिए इतर से भरी कढाई को आग पर रखकर बेठे है ताकि उसे उसमे डाला जा सके (आखिर वो इतर के बिना नहीं रह सकता ना) उसके लिए स्पेशल उर्दू  अखबार  का छापाखाना खुलवाया गया है ताकि उसे दोजख की आग झेलते समय आराम से पेपर पढने मिल सके. उसके घूमने के लिए विशेष रोड बनाया गया है ताकि वहा उसे उसे सख्त से सख्त सजा दी जा सके (आखिर अन्दर कमरों में रहकर बेतना उसे पागल बना सकता है)..सबको उसका बेसब्री से इन्तेजार है वहां.बस दिन रात एक ही बात है "हे कसाब तुम कब आओगे? "और मुझे तो अभी बस वो फिल्म याद आ रही है जिसमे घर के लोग अतिथि से परेशान हो जाते है. वही हाल आम भारतीय का है सबके मन में बस एक बात है " हे अतिथि (कसाब) तुम कब जाओगे ?"

कनुप्रिया गुप्ता 
सभी चित्र गूगल देवता से साभार.जिन भी लोगो ने ये कार्टून बनाये   है उनका धन्यवाद

Friday, July 29, 2011

बोया बीज बबूल का तो आम कहाँ से होए ?

संयम रख रे अब मनुज तू आपा काहे खोए
बोया बीज बबूल का तो आम कहाँ  से होए ?

प्रदुषण की मार को लेकर दिन रात क्यों तू रोता है
गन्दगी फ़ैलाने  वालों में तू सबसे पहले होता है

सरकारी कामों को लेकर दिन में आवाज़  बुलंद करे
रात में तू ही गिट्टी , रेती को चोरी  से घर में बंद करे

पैसे के लालच में घटिया लोगो को संसद में भेज दिया
अब क्यों कहता है नेताओं ने दिन रात का चैन लिया

रिश्वत का पैसा मिले तो बेबस को पूरी तरह से छील लिया
फिर क्यों कहता है भ्रष्टाचारियों ने भारत को पूरा  लील लिया

पाप की घघरी खुद ने भरी अब ईश्वर के आगे रोए
बोया बीज बबूल का तो आम कहाँ  से होए ?

भूल गया जब पिताजी को घर के बाहर की राह दिखाई थी
अब क्यों दुखी है जब बेटे ने वृद्धाश्रम की बुकिंग कराई है .

बच्चो को बुरे संस्कार देकर तूने ही उन्हें बिगाड़ा है
तू समय का नहीं मनुज,अपने  ही कर्मो का मारा है .

बेटी जेसी बहु को तूने दिन रात सताया  है
बेटी पर बीती है तो अब मन क्यों पछताया है .

तूने पाप किये है इतने की गंगा भी ना धोए
बोया बीज बबूल का तो आम कहाँ  से होए ?

Thursday, July 28, 2011

बस यही अंत :जिंदगी के दर्द

ये कहानी है ४  दोस्तों की.आदित्य ,रिया ,सुगंधा और विशाल.वैसे  नाम आप कुछ भी रख सकते है जो आपको पसंद आए क्यूंकि ये ऐसे लोग हैं जो हम लोगो में से एक है जानी पहचानी सी लगेगी आपको हर कहानी. कही कही तो शायद ऐसा लगे की कही में आपकी ही कहानी तो नहीं सुना रही  हू . चारों की परिस्थितियां अलग अलग है  पर परिणिति बस एक......दर्द .कभी कभी इंसान को उसकी परिस्थितिया इतना मजबूर कर देती है की की जिंदगी बेगानी सी लगने लगती है
मैं रुचिका शुक्ला.मैं बचपन से देखती आ रही  उन चारों को .उनको बड़ा होते, खेलते  कूदते पढ़ते देखा मैंने.काफी अच्छे से जानती हू उन्हें .स्कूल के समय मेरे घर ट्यूशन पढने आते थे चारों .एकदम खिलखिलाते मुस्कुराते बच्चे थे सब घरों की तरह उनके घरों में समस्याएं थी पर चारों बड़े जीवट थे .जिंदगी को जेसे जी भर कर जी लेना चाहते थे.पढ़ाई में होशियार ,खेल कूद में अव्वल ,सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वाले.स्कूल ख़तम हुए चारों ने अलग अलग पढाई के लिए अलग कॉलेज में दाखिला ले लिया मेरा रोज का मिलना जुलना कम हो गया पर फिर भी कभी कभी आते थे मुझसे मिलने और जब आते थे गुलजार कर देते थे मेरे घर को .कुछ अपनी सुनाते कुछ मेरी सुन जाते .
आदित्य का बचपन से ही सपना था की वो सिंगर  बने पर घर वालों की जिद के चलते इंजीनियरिंग कॉलेज में ऐडमिशन ले लिया लड़का आदित्य अच्छा था पर अपनी आशाएं अपनी इच्छाएं कभी घर वालों के आगे रख नहीं पाया ३ बहनों का एक भाई होकर उसने बेटे होने का दर्द हमेशा  झेला.बहुत प्यारी माँ थी उसकी, बहुत प्यार करती थी उसे बस एक ही कमी थी माँ का ये अति प्यार ही उसका दुश्मन था .जन्म के साथ ही उस पर सबकी उम्मीदें जम गई थी माँ उसे खुद प्यार करती पर साथ साथ ये भी कहती जाती यही तो हमारा सहारा है ,बहने हर काम के लिए पीछे पीछे भागती ,पिता हर काम में उसकी सलाह लेते पर ये अहसास कभी ख़तम नहीं होता की वो ही है  सब कुछ.और इसी अहसास ने उसे धीरे अन्दर से कमजोर करना शुरू कर दिया था वो इस बोझ से दबने लगा था की सबकी उम्मीदें उससे जुडी हुई है वो कही किसी उम्मीद पर खरा नहीं उतरा तो क्या होगा ?

विशाल बचपने से इंजिनियर बनना चाहता था उसने शहर के बहुत बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज में ऐडमिशन लिया और जमकर पढाई करने लगा. उसका एक भाई और था जो अमेरिका में नौकरी कर रहा था और उसके सब जान पहचान वाले भी यही सोचते थे की एक दिन विशाल भी अमेरिका चला जाएगा.और विशाल को भी ऐसा ही लगता था की वो दिन जल्दी ही आएगा जब वो किसी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में काम पर लग जाएगा.

रिया ने अपनी इच्छा के हिसाब से बी एस सी में ऐडमिशन लिया  और साथ ही साथ फैशन डीजाईनिंग  का कोर्स  करने लगी.उसका सपना था की वो बहुत बड़ी फैशन डीजाईनर बने.उसके पापा के पास पैसे की कमी नहीं थी घर की एक लौती लड़की थी वो और घर वाले उसे बहुत प्यार करते थे उसका हर सपना पूरा करने के लिए तैयार थे .

सुगंधा ने बी सी ए में ऐडमिशन लिया .२ बहनों और एक भाई के उसके परिवार में वो सबसे बड़ी थी. माता पिता दोनों ही उसे बेहद प्यार करते थे और इस बात का अहसास उसके दिल में भी था की उनके प्यार की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता.उसके पापा ने हमेशा  उसके साथ दोस्तों की तरह व्यवहार किया था और माँ उसकी सबसे प्यारी सहेली थी जेसे अपनी हर बात वो इन दोनों के साथ शेयर करती थी.

समय निकलता जा रहा था चारों अपनी पढाई अपनी उलझनों में उलझते रहे और धीरे धीरे उनका मेरे पास आकर लम्बे समय तक बेठना कम होता गया फिर भी बीच बीच में आते रहते थे मिलने के लिए .अब वो मुझे मिलने के साथ एक दुसरे से भी मिल लेते थे.और मुझे अपने दिल की बात भी बता जाते थे.

चारों में आदित्य की हालत सबसे ख़राब थी एक तो अपना सपना पूरा न होने का गम ऊपर से घर वालों की उम्मीदें.देखने में ऐसा लगेगा की क्या हुआ आखिर कितने ही लोग है जो अपनी इच्छाएं छोड़कर घर वालों की उम्मीदों की खातिर ही जिंदगी गुजार देते हैं.आदित्य भी यही कर रहा था पर ये उम्मीदें  उसे अन्दर से खोखला कर रही थी.हर समय बस एक बात तू ही तो है बेटा ,उसे अन्दर ही अन्दर तडपाने लगी थी.वो किसी बहन  से मस्ती मजाक करता ,छोटी मोटी नोक झोक होती तो माँ उसे कहती तू ही तो एक भाई है तू भी ऐसे करेगा तो क्या होगा इनका,घर वाले कोई भी निर्णय लेना होता तो उसे पूछते पर साथ ही साथ ये भी जोड़ देते की हमारा मन तो ऐसा करने का है पर तू बता दे आखिर तू ही तो है.ये तू ही तो है उसे अन्दर से चिडचिडा बनाने लगा था.
खेर समय तो जेसे पंख लगाकर उड़ रहा था वो किसी के रोके कहाँ रुकता है  चारों की पढाई पूरी हो गई .आदित्य  और विशाल दोनों की इंजीनियरिंग पूरी हो गई  और आदित्य ने एक कोमप्न्य में जॉब करना शुरू कर दिया. विशाल बेहतर आप्शन के लिए इन्तेजार  करने लगा .रिया के पापा ने उसके लिए एक बुटिक खुलवा दिया  और सुगंधा ने एक कंपनी में जॉब शुरू कर दिया इसी के साथ उसके मम्मी पापा  ने उसकी शादी के लिए योग्य वर की तलाश शुरू कर दी.
मुझे उनकी खबर कभी पड़ोसियों से मिल जाती थी और कभी कभी उनके फ़ोन आ जाते थे.सुगंधा और आदित्य कभी कभी ऑफिस से घर आते समय रास्ते में मेरे घर पर रुक जाते थे.
एक दिन सुगंधा मेरे घर में आई साथ में मिठाई का डब्बा और शादी का कार्ड भी लाई.आते ही बोली रुचिका मेम शादी कर रही हु आप जरूर आईयेगा .तब मैंने उसे पुछा सुगंधा तेरा तो जॉब के साथ और पढने का मन था और तू तो अभी २,३ साल और शादी नहीं करना चाहती थी फिर इतनी जल्दी शादी ? उसने कहा : हाँ मेम मन तो बहुत था मेरा पर मम्मी पापा ने लड़का पसंद किया में भी रितेश से मिली हु अच्छा लड़का है वो मुझे लगा में उसके साथ खुश रहूंगी इसलिए शादी  कर रही हु.मैंने पुछा कहा है शादी और क्या करता है रितेश? वेसे तो वो लोग अलीगढ के रहने वाले है मेम पर रितेश दिल्ली में एक कंपनी में मेनेजर है इस्लिएशदि के बाद मुझे वही रहना होगा.फिर तेरे इस जॉब का क्या होगा ?अभी तो छोड़ दूंगी मेम फिर दिल्ली जाकर वापस से कोई दूसरा जॉब देख लुंगी. मैंने कोई जवाब नहीं दिया बस सहमती में सर हिला दिया .सुगंधा ने मेरे पास आकार कहा मदम आप विशाल से मिली ? मैंने न में सर हिलाकर कहा नहीं क्यों क्या हुआ? अरे कुछ नहीं मैडम वो कोई कंपनी ज्वाइन ही नहीं कर रहा की और अच्छा ऑफर आएगा.एक कंपनी  ज्वाइन की थी वहा ६,७ महिना बड़ी मुश्किल से काम किया और फिर ये कहकर छोड़ दिया की ग्रोथ के चांस नहीं है पता नहीं क्या सोचकर बेठा है मन में.
खेर जाने दीजिए आप शादी में जरूर आईयेगा ,मम्मी ने स्पेशल कहा था मुझे की रुचिका मैडम को घर जाकर बोलना और उनसे कहना की शादी में जरूर आए.
शादी में विशाल ,रिया और आदित्य तीनो  आए थे .आदित्य कुछ अनमना  सा लगा  तो विशाल कुछ चिडचिडा सा.रिया खूब खुश दिखाई दे रही थी मुझसे बोली आपको जल्दी ही शादी में बुलाऊंगी  मैडम . एक लड़का है जिसे में प्यार करती हु घर वाले भी तैयार है.में उसकी बात से खुश हुई और उसे बधाई दी.
इस सब के बाद एक दिन पता चला की आदित्य की तबियत ज्यादा ख़राब है सोचा मिलकर आ जाऊ.उसके घर गई तो देखा कोहराम मचा हुआ है.उसकी माँ जोर जोर से रो रही है ये ही तो एक सहारा है हमारा ये क्या हो गया इसे ?आदित्य मुझसे लिपट कर खूब रोया और बस हिचकियों के साथ यही बोलता रहा बस में ही तो हु मैडम इन सब का सहारा पर कोई मुझे क्यों नहीं समझता ,बस में ही तो हु और इतना कहकर वो अचानक से जोर जोर से हसने लगा.में क्या करती उसे थोडा समझाकर  चली आई . पड़ोसियों से पता चला की पिछले कुछ दिनों से इन लोगो के घर से लड़ाई झगडे की आवाजें आती थी .जाने किस बात के चलते आदित्य ने ड्रग्स लेना शुरू कर दिया था और जब घर वालों को पता चला तो रोज झगडे होने लगे.आए दिन माँ के रोने की आवाज़ आती थी एक तू ही तो है.सही भी तो कहती थी बिचारी एक अकेला लड़का है अब में उन पड़ोसियों को क्या समझाती की "बस तू ही तो है"इसी बात ने उसे इस हालत में ला खड़ा किया है.वो उम्मीदों को पूरा करने की दौड़ में खुद से पीछे रह गया है...
इस बात को कुछ ही दिन हुए थे एक दिन सुबह सोकर उठी और अखबार हाथ में लिया तो एक खबर पढ़कर जेसे चक्कर आ गया "अच्छा जॉब न मिलने के दबाव में लड़के ने आत्महत्या की"और साथ में चाप फोटो चौकाने वाला था वो विशाल था हमारा विशाल ,मैं वही जमीन पर बेथ गई कुछ समझ नहीं आया बस आँखों के आगे वाही प्यारा बच्चा विशाल घूमने लगा.जाने कितनी ही देर एसी ही बेसुध बेठी रही.
फिर शाम को उसके घर गई वह देखा तो रिया पहले से ही थी उसी ने बताया मैडम ये अच्छे जॉब का इन्तेजार करता रहा ,सारे लोग इसके भाई से इसकी तुलना करते रहे जेसे भाई को पहली बार में अमेरिका से जॉब ऑफर आया वेसे ही इसे भी मिलेगा पर नहीं मिला  बीच में रिसेशन आ गया बिचारे की उम्मीदें टूट गई.कई दिनों से उदास सा रहता था पर सोचा नहीं था ये सब कर लेगा.कल रात नींद की दवाई खाकर आत्महत्या  कर ली इसने.हमरा विशाल ऐसा कैसे कर सकता है मैडम ये हिम्मत केसे हार गया ? मैं खुद भी रोटी रही और उसे भी भी चुप करवाती रही...पर मौत के आगे हम दोनों ही बेबस थे मन ये बात मानने को तैयार ही नहीं था की विशाल अब कभी वापस नहीं आएगा.
भारी मन से उसके घर से वापस आई मै.विशाल की तेरहवी के दिन फिर उसके घर जाना हुआ वह सुगंधा भी आई थी आखिर उसका बचपन का दोस्त था विशाल.बहुत जोर जोर से रो रही उसके आंसू देखे नहीं जा रहे थे.जाने क्यों असा लगा जेसे विशाल के जाने के गम के साथ ही और भी किसी बात के आंसू बहा रही हो .जेसे अपने कामों का रोना ही विशाल की मौत के गम मे मिला दिया हो उसने.
वह से अनमने मन और रोती आँखों के साथ लौटी उस दिन, विशाल की फोटो पर चढ़ा  हार बार बार आँखों के सामने घूम जाता था और मन बस यही कह  रहा था विशाल तुमने ये क्या किया क्यों हिम्मत हार गए?
अगले  दिन बाद सुगंधा घर आई अभी भी उसकी आँखें सूजी हुई थी बेतकर बातें कर ही रहे थे की विशाल की बात पर वो फिर रो पड़ी मैंने प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरा और पुछा सुगंधा तुम ठीक हो न मत रोओ बेटा जाने वाला तो चला गया.वो बोली मैडम मैं कल आदित्य से मिली थी उसे जल्दी ही पागलखाने में शिफ्ट करने वाले हैं.ये सब क्या हो गया मैडम ?सब कुछ तो कितना अच्छा था फिर ये सब क्यों? मैं क्या जवाब देती बस यही कहा पाई सब किस्मत का खेल है दोनों को उम्मीदें ले डूबी....पर उसकी तो जेसे सिसकियाँ रुक ही नहीं रही थी बार बार बोल रही थी हमारे साथ ही ऐसा क्यों हुआ?

उसने कहा मैडम आपको पता है रिया जिसे प्यार करती है वो सिर्फ उसके पैसे से प्यार करता है पर वो प्यार मे अंधी होकर किसी की  बात सुनने ही तैयार नहीं है.सुनकर मुझे झटका लगा मैंने कहा मुझे तो कुछ ही दिन पहले मिली थी उसने कुछ बताया नहीं .हाँ मैडम क्यूंकि वो उस लड़के पर आँख बंद करके भरोसा कर रही है ,मैंने उसे समझाया हो सकता है ये तुम्हारी ग़लतफ़हमी हो शायद रिया सही हो.सुगंधा बोली अब मे लोगो को पहचानने मे गलती नहीं कर सकती मैडम मेरे साथ जो हो रहा है वो सब झेलकर मुझे लोगो का बहुत अनुभव हो गया है....रितेश की मम्मी छोटी छोटी बातों के लिए परेशान करती हैं, बार बार ताने देती है. रितेश कुछ नहीं कहते पर बस ये कहते है में तेरे साथ हु तू सुन ले पर मे उनकी मांगों से उनके तानों से तंग आ गई हु.क्या काम का ऐसा पति जो सही का साथ न दे सके.मैंने सुगंधा को समझाया घर परिवार मे ये सब चलता है तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा.
उस दिन सुगंधा चली गई और में इस सोच मे पद गई की अच्छा खासे हस्ते खेलते ये बच्चे कैसे समय के आगे हार मान रहे है....और मन ही मन बस ये प्राथना करने लगी सुगंधा और रिया दोनों के साथ कुछ भी बुरा न हो.

इन सभी बातों को कई दिन गुजर गए में भी अपने  टयुशन  पढ़ाने के काम मे लग गई एक दिन बच्चो को पढ़ाकर घर के बहार गेट  पर खडी थी की पड़ोस  वाली शर्मा आंटी  नेकहा "रुचिका थांके या एक चोरी पढवा आती थी नी सुगंधा  ?"मैंने कहा हाँ आती थी काकी जी पर अब तो वनको मांडो वी गया ने  वा दिल्ली मे है   .शर्मा आंटी  बोली अबार ई बने खड़ा ताका छोरा छोरी कई रिया था के वा हॉस्पिटल मे भरती है.  .पर वा  तो दिल्ली मे थी हाँ या  हॉस्पिटल मे कसरे आई गी ?शरमा आंटी बोली मने पुच्यो थो अना ती पर हगर भागी गया कई वातायो ई कोनी.  मैंने जल्दी से हॉस्पिटल का पता लिया और रिक्शा  पकड़कर हॉस्पिटल के लिए निकल गई.
वहा जाकर देखा तो सुगंधा के शरीर पर कई जगह पट्टियाँ बंधी हुई थी.एक हाथ थोडा  जला हुआ था जान खतरे मे नहीं थी पर हालत अच्छी नहीं थी.मैंने  उससे पूछा ये सब क्या हुआ सुगंधा?कुछ नहीं मैडम असे ही घर परिवार मे ये सब होता रहता है कहकर उसने आँखें बंद कर ली उसकी माँ ने बताया की इसकी सास ने किया ये सब और जमी सा आए थे कल यहाँ बोलकर गए है में तेरे साथ हु तू बस किसी को बताना मत ये किसने किया .बोल देना घर के काम मे हो गया.


मैंने उनसे पूछा रिया आकर गई तो वो सुगंधा बोली मैंने कहा था न मैडम वो लड़का अच्छा नहीं है उसने रिया को धोखा दिया उसे बीच राह मे अकेला चोरकर उसका फायदा उठाकर भाग गया रिया तब से घर से बहार तक नहीं निकली है १ महिना हो गया है अपने कमरे मे बंद कर लिया है उसने खुद को.


ये सब सुनकर मुझे समझ नहीं आ रहा था क्या बोलू....मेरे फूल से खिले हुए ४ विद्यार्थी केसे  जिंदगी के खेल मे हार गए....एक दूसरों की उम्मीदों  की बलि चढ़ गया तो दूसरा खुद की उम्मीदों की दौड़ मे रेस से बाहर हो गया तीसरी ने धोखा खाया और ये चौथी अपने रिश्तों से परेशान हो गई है  हो गई है और  अपने भीरु पति से प्यार करने का दर्द झेल रही है.जिसने हिम्मत हारी  वो दुनिया से चला गया पर जो जिन्दा है वो भी तो जिंदगी के दर्द झेल रहे है इस सब के लिए जिम्मेदार कौन है ये मैं नहीं सोचना चाहती पर जिंदगी इनके साथ इतनी बेरहम है ऐसा नहीं असा लगता है जिंदगी सबके साथ बेरहम होती है हम में से सब ने कभी न कभी इनमे से कोई दर्द झेला होगा...पर सबकी कहानियों का अंत एक जेसा नहीं होता कुछ जिंदगियां बस तबाह हो जाती है और उन्हें जीने वाले जीते है बस  मौत से बदतर जिंदगी के दर्द...............................


Monday, July 25, 2011

हम दोनों

पिछली कविता लिखी तो किसी ने कहा की कविता बहुत अच्छी है पर ३ बार पूरी पढ़ी तब पूरा  अर्थ समझ आया तब लगा की सामान विषय सामान्य शब्दों में लिखाण चाहिए  इसीलिए ये कविता थोड़े सरल शब्दों  और गूढ़ अर्थ के साथ लिखने  की कोशिश की....





ख्वाबों के राजा  और रानी हम दोनों
बहते हुए दरिया का पानी हम दोनों
खुद ही खुद में जेसे  उलझे रहते हैं
बिखरी बिखरी एक कहानी हम दोनों

प्रीत नगर कि प्रेम गली के पंछी  हैं
वर्षा कि बूंदें सुहानी हम दोनों
चाँद ढले तक बेबस जागे  रहते हैं
 यादों कि बस्ती कि निशानी हम दोनों

चलते जाते हैं अनजानी रूहों जेसे
दिल में लेकर कसक बेगानी  हम दोनों (दूसरों का दर्द दिल में लेकर घूमते हैं )
कितना भी बरसे प्यासे ही रहते हैं
चंदा चकोर कि अमर कहानी हम दोनों

अनुभव बढ़ते चमक कही गुम होती है
ढलती हुई कोई जवानी हम दोनों
सिसक सिसक कर आँहें भरते रहते हैं
माँ कि कोई चिट्ठी पुरानी हम दोनों

मद्धम मद्धम कानों में घुलते रहते हैं
सुरों कि महफ़िल मस्तानी हम दोनों
सुख हो चाहे दुःख हो बह ही जातें हैं
एक दूजे कि आँखों का पानी हम दोनों


कनुप्रिया

Wednesday, July 20, 2011

कौन हो तुम ?

This poem is dedicated to my husband.

बहुत पहले कभी लिखी थी ये कविता पर आज ब्लॉग पर डाल रही हु..

कई बार  प्यार उतना ही निस्वार्थ होता है जितना ओंस  कि बूंदों का पत्तियों पर गिरना बस हम समझा नहीं पाते


कौन हो तुम ?
अलसाई सी सुबह में कोमल छुवन के अहसास से हो
अनजाने चेहरों में एक अटूट  विश्वास से हो...

गडगडाते  बादलों में सुरक्षा के अहसास के जेसे ,
काँटों भरी दुनिया में स्वर्ग के पारिजात के जेसे

बद्दुआओन  कि भीड़ में इश्वर के आशीर्वाद से तुम
लम्बे समय के मौन में आँखों के संवाद से तुम...

लड़कपन कि उम्र में कनखियों  के प्यार तुम ,
हर मोड़ कि हार के बाद आशाओं के विस्तार तुम.

सूनी आँखों से बोलने वाले मेरे मन कि बात हो तुम
मेरे निष्पाप प्यार हो या प्रेम निस्वार्थ हो  तुम

झुलसती  गर्मी में बरसाती फुहार से तुम
पथराए नैनों में उम्मीदों कि लहर से तुम

मेरे अंतर्मन  के अहसास हो या जन्मों कि अधूरी प्यास हो?
मेरे दिल कि सूनी गुफा में गंगाजल का झरना हो तुम या बेरागी के मन में मचलता वीतराग हो तुम ?

अनंत  आकाश  में उड़ते पंछी हो तुम या या मेरे जन्मों का प्रेम अनुराग हो तुम ?
कही दूर से आती शंख ध्वनि हो तुम ?या मेरे मन के कोने में बैठी पाषाण प्रतिमा का मानवीय संवाद हो तुम?

हर बार खोजती हु मगर हाथ नहीं आते ,
दिन रात का साथ है पर साथ नहीं आते
कोई ख्वाब हो या ख्वाबों  कि हकीक़त हो तुम ?
जो भी हो मेरे लिए सबसे खूबसूरत हो तुम?
मेरे लिए पल  पल कि जरुरत हो तुम..........



नारी ही नारी कि दुश्मन

जब से नई कविता  "अब तो मन कि बात सुनो नारी का संताप सुनो" लिखी है दिल में बार बार एक ही बात उठ रही है .क्यों सुनाए हम अपना संताप ?क्यों और किसे  ? और आज मेरे एक पाठक ने उस कविता पर एक टिपण्णी कि "कनु नारी ही नारी कि दुश्मन है" पढ़कर लगा सच है .वेसे ये सच हर नारी जानती है और मानती भी है पर शायद हमे अपने दुखों का कारन पुरुषों को बताने कि आदत सी हो गई है में ये नहीं कहती कि पुरुष अत्याचार नहीं करते . नारी पर हो रहे अत्याचारों में सबसे बड़ा हाथ पुरुषों का ही है परन्तु नारी भी नारी पर अत्याचार करने में पीछे नहीं हटती .
कल शाम को एक घटना हुई मै बस में ऑफिस से घर वापस जा रही थी मुझे बस में सीट मिल गई और मै बैठ गई कुछ ही देर बाद एक महिला बस में चढ़ी मेरी नजर काफी देर तक उन पर नहीं पड़ी थोड़ी देर बाद उनने मुझसे पूछा आप कहा उतरेंगी ?मैंने कहा ऐरोली ,तभी मेरी नजर उनपर पड़ी मुझे लगा वो गर्भवती है मैंने उनसे कहा आप बैठ जाइये जैसे ही में सीट से उठी एक महिला वहा बैठ गई और जब मैंने उनसे कहा मैंने ये सीट उनके लिए ख़ाली कि है तो उसने एसे अनदेखा कर दिया जैसे सुना ही ना हो तभी एक वृद्ध अंकल उठे और उस गर्भवती महिला से बेठने को कहा .वेसे मुंबई में एसी हृदयहीनता देखने नहीं मिलती लोग आपस में मिल जुलकर सफ़र करते है यहाँ के लोगो कि सहयोग भावना कि में कायल हु पर कल जाने क्यों असा हुआ .उस बस में कई महिलाएं थी ,कई जवान पुरुष थे जो उस महिला को स्थान दे सकते थे पर उन अंकल को सीट से उठाना पड़ा .कई बार देखा महिला सीट पर बेठे वृद्धों को भी महिलाएं उठा देती है ये कहकर कि ये महिला सीट है आखिर कोमल हृदय कि मानी  जाने वाली महिलाओं  के दिल एसे कठोर क्यों हो जाते है समझ नहीं आता.इसीलिए ये विचार आया कि हम अपना संताप क्यों सुनाए?और किसे सुनाए?जब संताप का कारन भी हम निवारण भी हम और भोगी भी हम ही है.
इस बात का एक पहलु देखा जाए तो लगता है हर नारी दुखी है पर दूसरा पहलु यह भी है कि कई बार नारी  को दुखी करने वाली भी नारी है.

सास दुखी है क्यूंकि बहु ने आकर बेटे के जीवन में स्थान ले लिया ,बहु दुखी है क्यूंकि सास अपना अधिकार ना छोड़ने  के चक्कर में बहु बेटे के बीच गलतफहमियां पैदा करती है ,बहिन दुखी है क्यूंकि भाई अब ज्यादा ध्यान नहीं देता,दुःख  सिर्फ यहाँ ही नहीं है अजन्मी बेटी को दुःख है कि वो जन्म नहीं ले पाई,जो जनम गई उसे दुःख है कि उसे प्यार नहीं मिला, जिसे प्यार मिला वो दुखी है कि भाई जितनी स्वतंत्रता नहीं दी गई .जिन्हें स्वतंत्रता दी गई वो ससुराल जाकर दुखी है कि बहु बेटी में अंतर किया जा रहा है , दहेज़ माँगा  जा रहा है,जिनके साथ ये सब नहीं हुआ वो दुखी है कि कार्यालय में पुरुषों के सामान अधिकार नहीं दिए  गए,जो इस सब से बच गई वो आरक्षण का मुद्दा उठा उठा कर दुखी है...ऐसा लगता है हर नारी दुखी है.कई नारियां तो इनमे से कई समस्याओं को लेकर दुखी है .

पर इस सब कि जड़ में देखा जाए दिखाई देगा कि जड़ में पुरषों के साथ नारी भी है .बेटी नहीं जन्मी क्यूंकि माँ ने नहीं चाहा,दादी ने नहीं चाहा (पिता भी इसमें शामिल है )पर माँ कम से कम विरोध तो कर सकती थी ,जो जनम गई उसे प्यार नहीं मिला क्यूंकि माँ और दादी ने नहीं दिया, पिता ने भी ना दिया हो संभव है पर बेटियां  घर में रहती है बचपन का प्यार उन्हें माँ, दादी  से ज्यादा मिलता है,वेसे भी लोग कहते  है बेटियां पिता को ज्यादा प्यारी होती है  (मेरा अनुभव ऐसा नहीं मुझे माँ पिता दोनों का प्यार मिला और अभी तक इस उधेड़बुन में हु कि में माँ को ज्यादा प्यार करती हु या पापा को ).आगे बढें तो बेटा बेटी में फर्क भी माँ या दादी ही ज्यादा करती है हां बड़े निर्णयों के मामले में पिता का अधिकार ज्यादा होता है पर कम से कम घर कि महिलाएं साथ तो दे सकती है पर हर बेटी को ये नसीब नहीं होता.
ये सच है कि हर नारी अत्याचार कि शिकार नहीं होती पर ये भी सच है कि जो शिकार होती है उन अत्याचारों  में ज्यादातर नारी का हाथ होता है.घरेलु हिंसा,दहेज़ प्रथा,बहु को परेशान करना,बहु बेटी में भेद करना ये सब नारी ही करती है .या पुरुष करते है तो भी इन सब कि जड़ में कही ना कही नारी होती है.
.मुझे लगता है पुरुष प्रधान समाज पुरुष प्रधान इसलिए बना क्यूंकि नारी कि जडें खोदने में कही ना कही नारी का भी हाथ रहा है ,समाज पुरुष प्रधान बना क्यूंकि हमने इउन्हे हम पर राज करने कि अनुमति दी.यहाँ तक कि अगर पुरुषों के मन में नारी के लिए सम्मान नहीं है  बराबरी कि भावना नहीं है  तो कही ना  कही, कभी ना कभी किसी नारी ने उसके मन ये भावना भरी है ये जरुरी नहीं है कि असा ही हो पर माँ अगर बेटे को बचपन से नारी का सम्मान करने के  संस्कार दे ,बेहें और भाई के साथ सामान व्यवहारकरें और जब उसकी शादी हो तो बहु को अपना दुश्मन ना माने तो अत्याचारों कि मात्र कम हो सकती है.

मुख्य मुद्दा ये है कि हम पुरुषों को अपना दर्द सुना भी लेंगे तो उससे पहले जरुरी है कि नारी ही नारी को समझे उसे अपनाए, उसका साथ दे.अपने लिए दी गए आरक्षण का दुरूपयोग करना बंद करें, अगर एक नारी के साथ गलत हो रहा है उसका साथ दे और एक दुसरे कि टांग खीचने कि बजाए हाथ मिलाकर साथ ,साथ आगे आने कि कोशिश करें, और अपने खिलाफ हो रहे अत्याच्रों का सब मिलकर विरोध करें (और ये ना कर सके तो जो नारी विरोध कर रही है कम से कम उसपर अनर्गल टिपण्णी करना बंद करें ) तो नारी कि स्थिति में जल्दी सुधार होगा.और हमें बार बार में दुखी हु मैं दुखी कहकर रोना नहीं रोना पड़ेगा......

Tuesday, July 19, 2011

अब तो मन कि बात सुनो नारी का संताप सुनो....

कष्टों से भरा हुआ बेचारी  का इतिहास सुनो
सुन सको तो सुनो  नारी का संताप सुनो

लक्ष्मण  ने उर्मिला को छोड़ा भात्र प्रेम के लिए कभी
उतरा  भी ना था हाथों  से, मेहंदी का रंग अभी
क्या गलती थी उसकी उसने प्रेम कि रीत निभाई थी
पर रघुवंशियों को उस पर तनिक दया ना आई थी
पति वियोग में गवां दी उसने जवानी सारी
रावन था अत्याचारी तो उर्मिला भी थी अत्याचारों की मारी....
सुकुमारी उर्मिला के, मन की करुण पुकार सुनो
सुन सको तो सुनो  नारी का संताप सुनो...

चली पति के साथ वन में तब सुकुमारी सीता भी थी
जनक के घर जन्मी  राजकुमारी पुष्प बेल सी प्रीता ही थी
रावण कि वाटिका में रहकर भी किया पत्नी धर्म का पालन
एक धोबी के कहने भर पर छोड़ना पड़ा घर आँगन
मर्यादा पुरुषोत्तम कि पत्नी होने का दाम चुकाया था
सारा जीवन सीता माँ ने वन में ही तो बिताया था

निर्जन में  ,अकेलेपन में गूंजती सीता कि चीत्कार सुनो
सुन सको तो सुनो  नारी का संताप सुनो...

द्रौपदी  ने अपने मन को पांच  पतियों में बाटा था
अपने को सही कहने वाला सारा समाज तब कहाँ था ?
माँ ने अनजाने में कह दिया पांचो भाई बाँट लो
पत्नी को पांचो ने बांटा ये कैसा  हिस्सा - बांटा  था ?
पांच पति मिलकर भी तब ना उसकी लाज बचा पाए
थे दुर्बुद्धि या मुर्ख जो  पत्नी का दाव लगा आए

अपनी अस्मिता के लिए रोती पांचाली के मन कि बात सुनो
सुन सको तो सुनो  नारी का संताप सुनो...

सदियों बाद आज भी नारी कि अपनी तकलीफे ,अपने गम है
पंख कतरने वाले बहुत है, आकाश देने वाले कम है
कभी जेसिका बनकर आई और दुनिया से चली गई
नारी जाने कितने रूपों में इस दुनिया में छली गई
कभी लक्ष्मी,कभी गीता कभी नारी रीटा है
नाम अलग है, रूप अलग है सबका दर्द एक सरीखा है

बार बार इसके हिस्से में आती समय कि मार सुनो
सुन सको तो सुनो  नारी का संताप सुनो...

कभी दहेज़ का दानव लीले कभी भ्रूण हत्या खा जाए
नारी ही नारी के लिए षड्यंत्रों के जाल बिछाये
कभी बलात्कार से कुंठित,कभी छेड़खानी से चिंतित
कभी गृह षड्यंत्रों कि मारी,चैन नहीं है इसको किंचित

पुरुष अहम् कि आग में जलती,नारी कि स्वप्न झंकार सुनो
सुन सको तो सुनो  नारी का संताप सुनो...

आधुनिकता  के नाम पर, आज भी होता शोषण है
अतिविश्वास में ही टूटता विश्वास का दर्पण है
त्रेतायुग,सतयुग या कलयुग सबकी यही कहानी है
संसार सुखी बनाने वाली नारी कि आँखों में पानी है
कभी धर्म ,कभी मर्यादा,कभी इज्जत के नाम उसके सपने टूटे है
कष्ट समय में सबसे पहले अपने ही नारी से रूठे है

जीने का अधिकार दो उसको अब तो मन कि बात सुनो
सुन सको तो सुनो  नारी का संताप सुनो...

Sunday, July 17, 2011

so finally a great news for me.एक अच्छी खबर


कल जब में मुंबई से दूर अपनी भागमभाग कि जिंदगी से अलग शिर्डी साईं बाबा के दर्शन कर रही थी तभी मेरे सेल पर एक  मेसेज  आया.कनु प्रभात खबर  ने तुम्हारी कविता " पापा तुम घर क्यों ना लौटे" को अपने सम्पादकीय पृष्ट में प्रकाशित किया है  बहुत बहुत बधाई.मुझे थोड़ी देर तो समझ नहीं आया कि आखिर ये केसे हुआ क्यूंकि मैंने तो अपनी कविता कही प्रकाशन के लिए नहीं भेजी थी पर फिर समझ आया "प्रभार खबर" कि सम्पादकीय टीम ने मेरी कविता को मेरे ब्लॉग पर से लिया है...जानकार ख़ुशी हुई...सभी पाठकों को धन्यवाद् कि उनने इस कविता  को इतना पसंद किया और प्रभात खबर टीम को भी धन्यवाद् कि उनने मेरी कविता को प्रकाशित किया....
समाचार पत्र कि लिंक.
http://epaper.prabhatkhabar.com/epapermain.aspx?queryed=9&eddate=7%2f17%२फ़२०११
मेरे ब्लॉग में इस पोएम का लिंक
http://meriparwaz.blogspot.com/2011/07/blog-post_13.html.

Hindi news paper prabhat khabar printed my poem Papa "Tum ghar kyu na Loute " (a poem for mumbai bomb blast) in Editorial section.thnx to all my readers.
link of newspaper
http://epaper.prabhatkhabar.com/epapermain.aspx?queryed=9&eddate=7%2f17%2f2011.
link of this post papa Tum ghar kyu na loute in  my Blog
http://meriparwaz.blogspot.com/2011/07/blog-post_13.html.

कनुप्रिया गुप्ता

Friday, July 15, 2011

खोए हुए रंग

(अभी तक बस कविताओं और छोटे मोटे लेखों  कि दुनियां में ही खोई रही पहली बार एक कहानी लिखने कि कोशिश कि है आप सभी के सुझाव आमंत्रित है ,कृपया प्रतिक्रिया अवश्य दें ताकि सुधार किया जा सके )
वो हमेशा से खिड़की के उसी कोने पर बैठती आ रही थी,रोज शाम को एक नियत समय पर वहा बैठ जाती थी और कागज पर जाने क्या उकेरा करती थी,मैंने कई बार कोशिश की पर देख नहीं पाया की आखिर वो क्या करती थी,मुझे तमन्ना थी ये जानने की आखिर वो क्या करती है वहा बैठकर ?कुछ लिखती है?चित्र बनाती है?पढाई करती है या और कुछ ? पर कभी  देख नहीं पाया की आखिर वो क्या करती थी.मेरा उससे बस मुस्कराहट का रिश्ता था वो अपनी खिड़की में बेठी कभी नजर उठाती तो मुझे मुस्कुराता देख बदले में एक मुस्कराहट दे देती इससे ज्यादा  मै उसके विषय में कुछ  नहीं जानता था और कभी कोशिश भी नहीं की जानने की...बस इसी मुस्कराहट  कि डोर थी हमारे बीच ....

एक दिन शाम को दफ्तर से वापस आया तो देखा उस फ्लैट के बाहर कनाते (टेन्ट)  तानी हुई है .अपनी व्यस्त दिनचर्या में बस एक नजर डाली और निकल गया घर पर चाय कि प्याली के साथ सुधा ने बताया  कि वो सामने वाली लड़की कि शादी है ३ दिन बाद इसीलिए ये सब हो रहा है .कल ये लोग होटल चले जाएँगे वही से शादी है . पत्नी बोलती रही देखो ना आजकल  शहरों में शादियाँ भी केसी होती है होटल में सब व्यवस्था कर दी वही से बेटी विदा कर देंगे ना मेहमानों का आना जाना ना धूम धडाका सब जेसे औपचारिकता रह गई है...
सुधा मेरी पत्नी है और मैं प्रभाकर यहाँ मुंबई में एक बहुराष्ट्रीय  कंपनी में सेल्स मेनेजेर हूँ .२ साल पहले राजस्थान  के अपने शहर जयपुर से ब्याहकर अपने साथ लाया सुधा को तब सो वो दोस्त ,हमराही, संगिनी सब कुछ है.हाँ तो सुधा ने ही मुझे बताया था उस दिन कि उस लड़की का नाम प्रेरणा था और हर शाम अपनी खिड़की में बैठी वो चित्र बनाया करती थी .मेरे ऑफिस जाने के बाद कभी कभी घर भी आया करती थी ,सुधा थोड़े से भर्राए स्वर में बोली ये थी तो यहाँ अनजान शहर में कम से कम एक मुस्कराहटों का ही रिश्ता था, प्रेरणा को कही से पता चल गया था कि हम  राजस्थान के रहने वाले है तो सुधा के पास राजस्थानी रंग बिरंगी लहंगे मंगवाने आ गई थी.

सुधा आगे बोलती चली जा रही थी "उसे रंग बिरंगा लहंगा चाहिए थे अपने शादी के संगीत कार्यक्रम के लिए तो मेरे पास आ गई थी पता करने कि राजस्थान से ऐसा लहंगा केसे मंगवाए या मुंबई में असा लहंगा पसंद करने में मैं उसकी मदद कर सकती हु क्या " रंग बड़े पसंद है इस लड़की को मैंने ही मदद कि है उसकी लहंगा ज्वेलरी सब पसंद करवाने में "सुधा बड़े गर्व से बोली...
उसकी बातों को बीच में ही टोकते हुए मैंने कहा श्रीमतीजी बस भी करिए आज कुछ खाने को  नहीं देंगी क्या?और सुधा अपने सर पर चपत लगाते हुए बोली अरे हाँ भूख  लगी होगी ना तुम्हे ? बातों में मैं भूल ही गई थी अभी लाती हूँ  ....

सुधा ने उसका लहंगा पसंद करवाया था इसलिए हम लोगो को भी शादी का निमंत्रण आया और सुधा के जिद करने पर हम दोनों रिसेपशन में गए और गिफ्ट देकर खाना खाकर आ गए बाकि हम ना परिवार को ठीक ढंग से जानते थे ना रिश्तेदारों को ,तो ज्यादा निकटता वाला व्यवहार ना तो उनकी तरफ से किया गया ना ही अपेक्षित था.
इसी तरह दिन निकल गए में भी अपने काम में मशरूफ हो गया और धीरे धीरे उस खिड़की को देखने कि आदत भी चली गई ...बीच बीच में सुधा बताती रहती थी कि आज प्रेरणा अपनी माँ के घर घर आई थी तो उसे खिड़की के पास खड़े देखा था पर ना मैंने ज्यादा जानने कि उत्सुकता दिखाई ना सुधा ने ज्यादा बताने की....

 एक दिन ऑफिस से आया तो देखा वो उसी खिड़की पर बैठी है उदास ना जाने आकाश में क्या निहार रही थी आँखें मिली तो उसने मुझे ऐसी  ख़ाली नज़रों से देखा जेसे सब कुछ ख़तम हो गया हो...उसकी वो नजर जानलेवा थी ना जाने क्या था उस नजर में,दुःख मातम,दर्द या और खालीपन में समझ नहीं पाया पर उस नजर ने मुझे अन्दर तक झिंझोड़ दिया.
एक बार को मन हुआ सुधा को बुलाकर पूछु की ये ऐसे क्यों बैठी है पर हिम्मत ना हुई कही सुधा गलत ना समझे मुझे इतने में ही सुधा खुद ही आ गई जाने कहा गुम थी वो हाथ में चाय के प्याले लिए खडी थी पर किसी उधेड़बुन में थी. मैंने उसे हिलाकर पुचा क्या हुआ सुधा इतनी उदास क्यों हो?
उसे तो जेसे कोई सुनने  वाला ही चाहिए था आँखों में आंसू आ गए भर्राए गले से वो बोली प्रभाकर आपको पता है वो हमारे सामने वाली लड़की  थी ना प्रेरणा याद है ना आपको ?मैंने कहा हाँ याद है उसकी शादी में गए थे हम .हां वही. पिछले महीने  उसके पति का एक रोड एक्सीडेंट में देहांत हो गया मुझे तो आज ही सुबह पता चला जबपड़ोस  वाली आंटी ने बताया और फिर प्रेरणा को खिड़की में बेठे देखा .
इस खबर ने मुझे भोचक्का कर दिया शायद  इसलिए नहीं की मौत की खबर थी शायद इसलिए की मुझे अब उसकी आँखों का सूनापन समझ आया ,दिल भर आया नई नवेली दुल्हन ही तो थी वो ठीक से एक साल भी नहीं हुआ था  उसकी शादी को और दुनिया उजड गई उसकी.
सुधा ने बात आगे बढाई रंगों से कितना प्यार था इस लड़की को कितने चाव से रंग बिरंगे लहंगे साड़ियाँ , शाल  ना जाने क्या क्या ख़रीदा था शादी के लिए .दिन भर चित्र बनती थी सारी दुनिया को रंगीन कर देना चाहती थी ये ,और आज प्रकृति का क्रूर मजाक देखो इसके सारे रंग चले गए .इसके माता पिता इसे यहाँ ले आए है ताकि कुछ समय बाद इसकी दूसरी शादी करवाई जा सके आखिर उम्र ही क्या है अभी इसकी ,पूरी जिंदगी एसे निकलना बहुत मुश्किल है प्रभाकर पर ये लड़की मानती ही नहीं कहती है आलोक (प्रेरणा का पति) की  यादों के साथ ही बचा हुआ जीवन गुजार देगी.

मैंने  कहा वो तो आज नहीं कल मान ही जाएगी आजकल विधवा पुनर्विवाह बड़ी बात नहीं है ,इसके बाद सुधा ने जो कहा वो सुनकर में फिर  भोचक्का हो गया "प्रभाकर तुम नहीं समझोगे एक औरत के लिए अपने पति को भूलना आसान नहीं ,आदमी की जिंदगी में पत्नी उसके जीवन का हिस्सा होती है उसकी अर्धांगिनी होती है पर पत्नी का तो पूरा जीवन ही पति और परिवार में सिमट जाता है पति जब ऑफिस से घर आता है तो आराम के मूड में होता है पर पत्नी चाहे ऑफिस में रहे या घर में उसे बस पति और परिवार याद रहता है .पत्नी के जाने पर पति को आघात लगता है पर समाज उससे उसके रंग नहीं छीनता पर पति के जाते ही सबसे पहले पत्नी के जीवन के रंग नोचकर उससे अलग कर दी जाते है ,उसका सिंदूर उसकी हरी चूड़ियाँ ,रंगीन कपडे सब उससे छीन लिए जाते है.
पत्नी के जाने पर पति   बस साथी खोता है पत्नी तो अपना जीवन अपने रंग सब खो देती है "शौक से हलके रंग पहनना ,हल्का मेकअप  करना अलग बात है पर जब जबरजस्ती ये रंग छीन लिए जाए तो तकलीफ दुगुनी हो जाती है" खेर जाने दो शायद तुम नहीं समझ पाओगे ....

उसकी बातें सुनते ही मै जेसे फ्लेश  बेक मै चला गया मेरे पिताजी का देहांत भी तभी हो गया था जब मै पांचवी कक्षा  में था. माँ ने  नौकरी करके  हम दो भाइयों को पाला ,पढाया लिखाया  अपने पैरों पर खड़ा किया,पुनर्विवाह की उनने सोची नहीं क्यूंकि उनके हिसाब हम बच्चे ही उनके जीने की आशा थे अब,उन पर किसी ने ज्यादा  जोर भी नहीं डाला पुनर्विवाह के लिए क्यूंकि स्कूल जाते बच्चे थे उनके पास .में बचपन से आज तक यही सोचता रहा की माँ ने हमारे लिए त्याग किया बिना साथी के पूरी जिंदगी गुजारने का निर्णय लिया ,अपना पति खोकर भी हमें माँ बाप दोनों का प्यार दिया पर इस बात पर मेरी कभी नजर ही नहीं गई की माँ ने सिर्फ अपना पति,साथी हमसफ़र नहीं खोया बल्कि अपनी जिंदगी के सारे शोख रंग भी खो दिए ,अपनी हरी चूड़ियाँ लाल सिन्दूर ही नहीं खोया बल्कि वो सारे रंग  भी खो दिए जिनसे उनकी जिंदगी गुलजार थी...अपनी खिलखिलाहट वाली हसी खो दी क्यूंकि समाज क्या कहेगा लोग क्या कहेंगे...मै इसी उधेड़बुन में था की जेसे सुधा कि आवाज़ से मेरी तन्द्रा भंग हुई क्या हुआ प्रभाकर कहाँ खो गए ?

मै उससे बस इतना ही कह पाया सुधा तुम जाना एक बार उससे मिलने उससे समझाना कि अपनी जिंदगी के रंगों को ना खोने दे ...
और हाँ तैयार हो जाओ बाज़ार चलते है माँ के लिए कुछ रंगीन साड़ियाँ लेंगे. "पर माजी तो रंगीन कपडे नहीं पहनती" सुधा ने विस्मय से कहा औरे मैंने जवाब दिया हम जिद करेंगे तो जरूर पहनेंगी. "और समाज का क्या"?सुधा बोली.समाज का कुछ नहीं ,समाज हमसे है हम समाज  से नहीं .समाज को कोई हक नहीं किसी के जीवन के रंग छीन लेने का.मैंने दृढ़ निश्चय के साथ जवाब दिया .सुधा मुस्कुरा दी जेसे मेरे इस निर्णय में वो मेरे साथ हो.
और में मन ही मन बस यही सोचता रहा "मैं तुम्हे तुम्हारा साथी नहीं लौटा सकता माँ पर, मैं तुम्हारी जिंदगी के रंग जरूर लौटाउंगा "

Wednesday, July 13, 2011

पापा तुम घर क्यों न लौटे?

मुंबई में धमाके ,कितनी ही जानें बस एसे चली गई जेसे हवा हो,किसी ने बेटा किसी ने पति किसी ने माँ,किसी ने पिता खो दिया . उनके दर्द को हम लोग शायद नहीं समझ सकते पर मैंने एक छोटी सी कोशिश की है समझने की ,कि जब सुबह घर से काम के लिए निकले किसी के पापा घर नहीं लौटते होंगे तो क्या भावनाएं हो सकती है....

पापा तुम घर क्यों न लौटे?
मैंने तो सोचा था आज जब आओगे तो मेरे लिए मीठी टॉफी लाओगे
ना लाओगे तो में जिद करके तुम्हारे ऊपर झूम जाऊंगी
पर में इन्तेजार ही करती रह गई तुम नहीं आए
अब कौन मुझे टॉफी  लाकर देगा?

देखो ना तुम्हारे जाने से मैं अकेली हो गई
बताओ ना पापा तुम घर क्यों ना लौटे?

सब कहते है तुम चले गए
पर कहा चले गए  पापा तुम?
सुबह तो कहकर गए थे कि जल्दी आऊंगा
तुम्हे बाहर घुमाने ले जाऊंगा
पर अब तो इतनी देर हो गई कल से आज तक नहीं आए .
अब में किसके कंधे पर बैठकर बाहर जाउंगी?
जब आओगे तो खूब रूठकर बेठुंगी तुमसे

बताओ ना पापा तुम घर क्यों ना लौटे?

माँ कल तक कितनी सुन्दर दिखती थी
लाल चूड़ियों ,हरी साडी ,और लाल बिंदी में
पर आज जाने क्यों सारे रंगों से अचानक दूर हो गई
पापा जब वापस आओगे तो माँ को कहना कि एसे रंगों से दूर ना रहे
उनपर रंग बड़े अच्छे लगते है

तुम्हारे ना आने से देखो माँ के सारे रंग चले गए
बताओ ना पापा तुम घर क्यों ना लौटे?

कल शाम से ही दादी रो रही है
इतनी जोर से रोती है कि सारा मोहल्ला इकठ्ठा हो गया है
मै कब से चुप करने कि कोशिश कर रही हु पर वो चुप ही नहीं होती
पापा तुम ही कहते थे ना शोर मत करो पड़ोसियों को तकलीफ होती है
पर जाने क्यों आज दादी ये बात भूल गई है
पापा जब आओगे तब दादी को जरूर समझाना
वो रोती हुई अच्छी नहीं लगती मुझे

देखो ना तुम्हारे जाने से दादी कि आँखों में कितने आंसू है
बताओ ना पापा तुम घर क्यों ना लौटे?

कल से दादा कितने बदहवास से है
जाने कहाँ कहाँ फ़ोन लगाते है
बार बार छाता उठाकर जाने कहा जाते है
देखो ना उन्हें तो पानी में जाना बिलकुल पसंद नहीं
आज उनने मम्मी से बरसात में कुछ गरमा  गरम बनाने के लिए भी नहीं कहा
कल से कुछ नहीं खाया उनने
उनकी तबियत बिगड़  जाएगी .....
जब आओगे तो उन्हें प्यार से खिलाना और मीठी सी  डांट भी लगाना

सुनो ना आपके जाने से देखो उनके मुह से निवाला नहीं उतरता
बताओ ना पापा तुम घर क्यों ना लौटे?

देखो ना कल से सब बस न्यूज़ चैनल देख रहे है,कोई मुझे कार्टून नहीं देखने देता
हमारे प्यारे घर में भीड़ इकट्ठी हो गई है
सब रोते है ,कितने गंदे लगते है सब रोते हुए
मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा
सब क्यों बार बार मेरे सर पर हाथ फेर रहे है
जेसे में बिचारी हूँ
माँ को भी सब एसे ही देख रहे है

देखो ना आपके जाने से सबके चेहरे से मुस्कान चली गई
बताओ ना पापा तुम घर क्यों ना लौटे?

जल्दी आ जाओ ना पापा
मैं आपको बिलकुल तंग नहीं करुँगी
गुडिया , टॉफी कुछ नहीं मांगूंगी
आपसे रिमोट भी नहीं लूंगी,आपके कंधे पर भी नहीं चढूँगी
आ जाओ ना पापा

देखो ना आपके जाने से कुछ भी अच्छा नहीं लगता
बताओ ना पापा तुम घर क्यों ना लौटे?

Tuesday, July 12, 2011

एक बार फिर से अजनबी हो जाए चलो


हर बार नए ढंग  से मिलने के लिए
एक बार फिर से अजनबी हो जाए चलो

तुम मुझे अपने दिल के कोने में हर बार जगह देना
और मैं तुम्हारी यादों में जुदाई का दौर सह लूंगी
सारी उम्मीदों को ताक पर रखकर
बस मोहब्बत रखे दरमियाँ और फ़ना हो जाए चलो

एक बार फिर से अजनबी हो जाए चलो

तुम हर बार मुझे नए अंदाज़ में देखना
जैसे पहली बार सफ़र में मिले हो हम दोनों
में तुम्हारी हर नजर का नयापन महसूस करुँगी
सफ़र की थकान मिटाने के लिए
गैर बन जाए और कुछ दिन जुदा हो जाए चलो

एक बार फिर से अजनबी हो जाए चलो

एक बार फिर चलेंगे अकेले जिंदगी की राहों पर
तुम कहीं मिल जाओ तो बस अजनबी मुस्कान दे देना
 मै ठीक वेसे ही मुस्कुरा दूंगी जेसे मुस्कुराई थी पहली मुलाकात पर
इसी तरह अपनी ठहरी हुई जिंदगी में,प्रवाह ले आए चलो

एक बार फिर से अजनबी हो जाए चलो

भूल जाए एक बार की हम हमसफ़र है
न हक जताए न हकीकत का सामना करें
जितनी मंजिले साथ चले वो भुला दे कुछ दिन
सब खताएं माफ़ करके बेखता हो जाए चलो

एक बार फिर से अजनबी हो जाए चलो........

चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी

आज बहुत दिनों के बाद एक हलकी फुलकी सी कविता लिखी है उम्मीद है पाठकों का पसंद आएगी


सपनों को आँखों में लाती जेसे एक पहेली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी

सो गए है तारें सारे ,सो गई है पुरवाई  भी
सोने को तैयार है बैठी गाँव की अमराई भी
मुझको यूं न छोड़  अकेला ,न कर यूं अठखेली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी....

सूरज दिन का काम ख़तम कर  बादलों में जा सोया है
चंदा भी चांदनी के संग  रास रंग में खोया है
मुझको अपने पास बुलाए मेरी चादर मैली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी...

सभी  परिंदे शाखाओं पर दीन दुनिया से दूर हुए
यादों के झुरमुट भी अब तो थककर जैसे चूर हुए
सारे अपने चले गए है में रह गई अकेली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी...

Saturday, July 9, 2011

भगवान को तो बक्श दो....


बहुत छोटी सी थी में तब से देखती आ रही हू दादी,नानी अपनी छोटी से थेली में थोडा अनाज (जिसे हमारे मालवा में मुट्ठी कहा जाता था. पर वो कहने को ही मुट्ठी हुआ करता था वास्तविकता में वो 400-500 gram अनाज था ),५-७  अगरबत्ती ,एक नारियल ,एक दीपक  और भी कुछ छोटा मोटा सामान लेकर मंदिर जाया करती थी और हम बच्चे भी उनके साथ हो लिया करते थे ,उस समय पूजा और प्रार्थना हमारे दिल में हो न हो मुक्य बात तो ये होती थी की चटक (नारियल की गिरी) खाने मिलती थी.नानाजी के गाँव के कोने में एक मंदिर  हुआ करता था वहा जाना तो मन को खूब भाता था क्यूंकि, वहां के पंडितजी गर्मी के दिनों में ठन्डे पानी के मटके में शक्कर डालकर रखते थे तो हमे भी वो मीठा पानी पीने का बड़ा चाव रहता था .उसके बाद कितनी ही कोशिश की पानी में शक्कर डालकर वेसे पानी पिया जाए पर कभी वो स्वाद न आया जो उस पानी में आता था.

खैर इस सब के साथ एक बात और होती थी वो थी की नानी अपने अपने पल्लू में बंधा सवा रुपया,५ रुपया,१० रुपया कुछ न कुछ जरूर भगवन को चढाती थी हम तब भी नानी से पुछा करते थे की ये सब भगवन को क्यों चढाते है पर जवाब एक ही होता था की भगवन खुश होता है .पर एक बार हम अड़ ही गए की नानी जो भगवान हमें देता है हम उसे पैसा क्यों चढाते है बताओ ना?उस दिन नानी से बड़े प्यार से समझाया की बेटा ये पैसा इसलिए चढ़ाया जाता है ताकि मंदिर की पूजा आरती का खर्चा निकल सके,साफ़ सफाई हो सके और जो पंडितजी भगवान् की सेवा करते है उनका घर खर्चा चल सके ये तर्क हमें भी सही प्रतीत हुआ....

समय बदला हम बड़े हो गए धीरे धीरे देखा की लोग इतना पैसा चढाते है की वो पूजा आरती के खर्चे से तो लाखो गुना ज्यादा है अब मम्मी का नंबर आया बताने का तो मम्मी ने बताया बेटा ये पैसा भगवान् को धन्यवाद् स्वरुप चढाते है अब हमे भी शौक चढ़ा हम भी हर छोटी मोटी बात में भगवान् को रिश्वत का लालच देने लगे "भगवान् ये काम कर देना २१ रुपैये का प्रसाद चढ़ाउंगी ".जैसे जैसे उम्र बढती गई ये रिश्वत भी बढती गई २१ से ५१ ,फिर १०१,१५१  और भी ये राशि बड़ी होती गई और बढती गई हमारी मांगे .......

पर कल रात  गजब हो गया जैसे ही एक मन्नत मन ही मन बुदबुदाकर हम सोए तो भगवान् ही हमारे सपने में आ गए  और बोले "शर्म नहीं आती हमें रिश्वत देती हो " हम घिघियाकर बोले अरे नहीं भगवान वो तो धन्यवाद् स्वरुप राशी है
भगवान ने कहा "अरे वाह हमारी बिल्ली हामी से म्याऊ ?"हमसे ही मांगते हो हम जैसे तेसे तो जुगाड़ तुगाड करके तुम्हारी मांग पूरी करते है और तुम फिर वो हमें ही लौटा देते हो "और फिर आ खड़े होते हो हाथ में कटोरा लेकर"हम क्या हमेशा यही करते रहेंगे कुछ तो शर्म करो भगवान् को बक्शीश देते हो इसीलिए तुम्हारे काम अटक जाते है "तुम्हे खर्च करना है तो ये सारा पैसा मानव कल्याण में खर्च करो,भूखे को खाना खिलाओ,प्यासे को पानी पिलाओ पर तुम हो की सबकी झोली भरने वाले की झोली में पैसा डालते हो....

अब तो हमे काटो तो खून नहीं शर्म के मारे आँखें जमीन में गड़ गई अपने किये पर पछतावा होने लगा ,बड़ी जोर जोर से रोकर विलाप करने लगे भगवान् हमें माफ़ कर दो अब ऐसी गलती नहीं होगी ,अब कभी एसी गलती ना होगी ,आप जैसा कहंगे वेसा करेंगे हम बस हमारा काम मत अटकाना ,तभी अचानक नींद खुल गई देखा तो सामने पतिदेव खड़े मुस्कुरा रहे थे और अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ वो बोले इसीलिए कहता हू  भगवान्  को तो बक्शीश मत दो कम से कम उन्हें तो बक्श दो और हम बस इतना ही कह पाए हांजी अब नहीं देंगे भगवन को बक्शीश .............

Thursday, July 7, 2011

अभिशाप (देश स्वतंत्र पर नारी मन ?)

सपनो  की  किरचो  (टुकडो ) से  उलझती  वो ,
जब  भी  सोचती  है  की  ये  विरासत  उसी  के  भाग्य  में क्यों ?
तब  अंतस (अंतर्मन ) का  ताप  जेसे  ज्वर   बनकर  उभर  आता  है
द्वन्द  ही  अब  उसका  भाग्य  है  शायद
ये  चुभन  जो  शरीर  में  नहीं  दिल  में  है
क्यों  करती  है  उसे  लहूलुहान  पल  –प्रतिपल ?.


एक  पड़ाव  से  दूसरा  पड़ाव  ,बदले  पेड़  और  बदली  छाव
पर  ये  आतंरिक  पीड़ा  नहीं  बदली , बस  बदलते  रहे  द्वन्द  के  भाव .
कंभी -कभी   सोचती  है  किसकी  विरासत  ढो रही  है  वो ?
क्या  वो  भी  अभिशप्त  है  भटकने  के  लिए ?
बाहरी  भटकाव  से  तो  फिर भी  बचाव  है
पर  आतंरिक  भटकाव  उसे  घुटन  और  पीड़ा  के  सिवा  क्या  दे  रहा  है ?

फिर सोचती है
शायद  वो  ढो  रही  है  विरासत  हर  उस  स्त्री  की
जिसने  भोगा  है  दर्द  , सही  है  पीड़ा  ,और  बाहरी  ख़ुशी  के  बाद  भी  आतंरिक  कष्ट .

न  जाने  केसा  कर्ज  है  उस  पर  की  जेसे  जेसे  भोगती  है
ये  बढ़ता  ही  जाता  है  महाजन  के  सूद  की  तरह .
पर  दोष  भी  किसे  दे  वो ?  जब  उसका  अपना  मन  ही  दोषी  है
जो  उसे  हर  बात  को  अनंत  गहरे  तक  सोचने  पर  करता  है  मजबूर .

उसे  समस्या  है  अपने  विद्रोही  होने  से
और  इस  बात  से  भी  की  ये  विद्रोह  पूर्ण  मुखर  क्यों  नहीं  है ?
उसे  समस्या  है  अपनी  संवेदनशीलता  से
पर  समस्या  ये  भी  की  ये  संवेदनशीलता  चरम  तक  क्यों  नहीं  जाती ?
उसे  समस्या  है  की  क्यों  वो  अपनी  तकलीफ  बयां  करती  है
पर  समस्या  ये  भी  है  की  जब  भी  मुखर  होती  है  तो , कही  से  समझदारी  आकर  उसके  होठ  क्यों  सिल  देती  है ?

उसे  जितनी  समस्या  दुसरो  से  है  उससे  कही  ज्यादा  वो  खुद  से  नाराज  है
मध्य -मार्गो  पर  चलते  चलते  वो  थकन  महसूस  करती  है
या  तो  पूर्ण  विद्रोह  या  पूर्ण  बंधन  चाहती  है  वो
पर  अपने  मन  को  दोनों  में  से  किसी  एक  के  लिए  राजी  नहीं  कर  पाती …..

वो  मन  से  अभिशप्त  है  और  ये  अभिशाप ,
शायद  उसे  मृत्युपर्यंत  भोगना  है  .
पल  पल  खुद  से  द्वन्द  करते  हुए
उसे  कर्ज  उतारना  है  न  जाने  कितनी  स्त्रियों  का  जो  उसी  की  तरह  भोगती  रही  पीड़ा
और  अतृप्त  ही  चली  गई  इस  दुनिया  से

उन  अनजानी  रूहों  की  ये  अभिशप्त  विरासत
अपने  भाग्य  मैं  लिखवाकर  ली  है  वो
और  चिर  निंद्रा  मैं  जाने  तक  ये  विरासत  उसे  संभालनी  ही  होगी

Tuesday, July 5, 2011

ये ख़ामोशी.......

ये ख़ामोशी.......
ख़ामोशी मुझे हमेशा से तडपाती रही है चाहे वो आतंरिक हो या बाहरी मुझे अन्दर तक झिंझोड़ देती है...पर तुम ख़ामोशी के पुजारी हो शायद या मजबूर हो खामोश रहने के लिए में नहीं जानती सच क्या है. पर मेरा सच यही है की  ख़ामोशी चुभती है मुझे.शायद इसीलिए जब तुम बातें नहीं करते कुछ नहीं बोलते तो खुद से बातें करती हूँ ,अकेले ही, हर काम करते हुए कभी कपड़ो को तह करते हुइ , कभी खाना बनाते हुए ,कभी यूही सड़क पर चलते हुए बस खुद ही प्रश्न करती हु खुद ही उत्तर देती हूँ,जेसे ऐसे बातें करते हुस निकल आउंगी किसी बहुत बड़ी दुविधा से बाहर या फिर जीत जाउंगी अपने अकेलेपन से या शायद कभी उतना भी नहीं सोचती बस बातें करती जाती हूँ.
आवाजे  अच्छी लगती है मुझे पर शोर नहीं,आवाजों और शोर के बीच की इसी महीन रेखा के इस पार रहना अच्छा लगता है मुझे .
कई बार कई लोगो ने देखा है मुझे एसे खुद से बातें करते मेरे होंठो  को बुदबुदाते ,मेरे सर को हिलते हुए ,हर बार लोग अलग थे कभी इंदौर में अनु ,कभी भोपाल में पल्लू  और हर बार एक यही सवाल ये क्या तू अकेली अकेली क्या बोल रही है?क्या समझाती उन्हें की में खोल देना चाहती हु अपना मन, पर खोल नहीं पाती किसी के सामने कोशिश करती हूँ पर मेरे विचार हवा की मानिंद इतनी तेजी से आते है की शब्द साथ नहीं दे पाते या शायद कई बार सुनने  वाले का धेर्य साथ नहीं देता जेसे तुम खो बैठते हो अपना धेर्य  मुझे बोलते देखकर ......
ख़ामोशी जैसी भी हो मुझे तकलीफ देती है मुंबई जैसे शहर में आकर ये अकेलेपन का दर्द बड़ा तकलीफ देता है. जानती हु तुम भी इसके डसे हुए हो शायद हमारे जैसे बहुत लोग होंगे  इस शहर में या हम ही अनोखे है जो भीड़ में तनहा है .मशीनी जिंदगी है ,जहा अपनी परछाई भी अपने साथ चल रही है इसका भी आभास नहीं होता .शाम को ऑफिस से घर जाते समय ये अहसास ही नहीं आता मन में की घर जा रहे है..क्यूंकि  वहा ये ख़ामोशी इन्तेजार करती मिलती है..जेसे फन फेलाएँ बेठी हो मेरे लिए ...ये शायद अन्दर का खालीपन है जो मन के झरने को बल खाकर बहने नहीं देता बस कभी कभी थोडा सा रिसाव  होता है...अब तो लगता है पानी सड़ने लगेगा कुछ समय  बाद जब मुझे ये ख़ामोशी पूरी तरह अपने में समां लेगी....
अजीब सा सच है मेरे बहुत करीबी लोगो में से भी कुछ ही लोग जानते है की में बहुत बोलती हू पर कितने लोगों ने मुझे सुना है ये वही जानते है. तुम भी शायद उनमे से एक हो पर पूरी तरह से नहीं . ये शायद मेरी बदकिस्मती है की मेरी ख़ामोशी को तुम्हारी आवाज नहीं मिली ....सिर्फ एक अजीब से सी चादर मिली ख़ामोशी की .......

जब अकेली होती हूँ किसी सड़क पर या घर पर,तब  जाने क्या ताने बाने बुनती रहती हू . नहीं नहीं ये कोई छल प्रपंच नहीं होता, कोई षड़यंत्र नहीं होता बस कुछ यादें ,कुछ बातें ,कुछ भावनाएं,कुछ नफरतें,कुछ मोह्हबतें कुछ मिला जुला सा होता है जिसे शायद दिल से व्यक्त करना चाहती हू पर कर नहीं पाती कभी सामाजिक मर्यादाएं आड़े आ जाती है ,कभी समय निकल जाता है बस एसे ही और ये बातें रह जाती है दिल में कहीं और फिर रह रह कर मेरे सामने आती है अकेलेपन में इसीलिए मुझे डर लगता है ख़ामोशी से  .....

सच कहते हो तुम इतना सोचूंगी तो पागल हो जाउंगी पर ये भी उतना ही सच है अगर ये खुद से बातें न होती तो अब तक पागल हो जाती है में....या शायद दम तोड़ देती इसी ख़ामोशी के साथ....मीठी आवाजें भली लगती है मुझे चाहे वो चिडिया की आवाज हो या पानी की बूंदों की या तुम्हारी मुस्कुराहटों की इन्ही आवाजों में जिंदगी समेट लेना चाहती थी में हमेशा से ही पर ये ख़ामोशी जेसे छोडती ही नहीं अब मुझे ...बस बढती जाती है दिन ब दिन ...........बस एक तुम्हारी हसी की आवाज है जो दूर कर देती है इस ख़ामोशी को कभी कभी मुझसे इसीलिए जब तुम हँसते हो सोचती हु एसे ही हँसते रहा करो अच्छा लगता है .......

Monday, July 4, 2011

प्रसिद्द होने के नुस्खे :बदनाम हो गए तो भी नाम तो मिला

बदनाम हो गए तो भी नाम तो मिला
गुस्ताखियों का मेरी इनाम तो मिला

प्रसिद्धि किसे अच्छी नहीं लगती .हर कोई चाहता है की नाम हो पैसा हो शोहरत हो पर अब इसके मायने बदल गए है .अब कोई कितना ही कह ले ये रास्ता सही है ये गलत. प्रसिद्धि तो प्रसिद्धि है केसे  भी मिले बस मिलना चाहिए .
क्या आप भी फेमस होना चाहते है यहाँ आइये हम आपको बताएँगे की प्रसिद्धि पाने के लिए क्या क्या कारगर तरीके है
१) किसी बड़ी हस्ती के लिए अपशब्द बोल दीजिए
२) अर्धनग्न होकर घूमिये और इसी तरह की बयानबाजी करिए
३) डाकू बन जाइये और फिर आम जिंदगी में वापस आ जाइये
और चौथा और बड़ा कारगार तरीका किसी का खून कर दीजिए उसकी लाश के टुकड़े करिए सबूत के अभाव में अदालत से बरी हो जाइये और फिर हो जाइये प्रसिद्द.
अच्छे उपाय है ना?आप सोच रहे होंगे ये क्या बात हुई ये तो बरगलाने वाली बात हुई पर लगता है बरगलाए हुए लोगो की ही पूछ बढ़ने वाली है अब .जो लोग दिन रात एक करते है उन्हें कोई जानता नहीं पर कुछ लोग अपनी उल जलूल हरकतों और कई बार वहशियाना हरकतों से प्रसिद्धि पा जाते है .


हम तो सोच रहे है ऐसा एक इंस्टिट्यूट खोल ले और वहां  इसी तरह से प्रसिद्धि पाने वाले लोगो को अध्यापक  रख ले.इसके २ फायदे होंगे एक तो शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा (अब सीखना सिखाना तो होना ही चाहिए ना आखिर उन लोगो को भी हक है की वो दुसरे लोगो को बताएं की प्रसिद्धि के क्या क्या फंडे हो सकते है) दुसरे देश में प्रसिद्धों की संख्या बढ़ जाएगी (आखिर हर देशवासी को हक है की वो प्रसिद्ध हो).हाँ तो अपने इस इंस्टिट्यूट का नाम हम रखेंगे "बिगडो बिगाड़ो प्रसिद्धि पाओ" अच्छा नाम है ना?

सोच रहे है इस इंस्टिट्यूट का विज्ञापन कुछ इस तरह का बनवाएँगे "बहुत  हो गया इमानदारी की बातें करना, भ्रष्टाचार के विरुद्ध बोलना ,मेहनत कर कर के कमर तोडना .अगर जीना चाहते है तो जाग जाइये , अगर प्रसिद्द होना चाहते है तो बदनाम हो जाइये हम सिखाएँगे आपको गुर बदनाम होने के . तो देर मत करिए लिमिटेड सीट "ध्यान रहे अपने साथ लेकर आए १)छोटे छोटे कपडे २) पश्चिम की आधुनिकता का अन्धानुकरण करने की सोच ३) गाली गलोच वाली भाषा ४)कीचड़ उछालने की क्षमता (चरित्रों पर) ५) बेशर्म बातों का भण्डार .
नोट :१ )अगर आप ज्यादा प्रसिद्ध होना चाहते है तो १,२ खून करके आइये .
        २) खुनी ,हत्यारों ,एम एम एस कांड अभियुक्त,डाकू,चोर, उचक्के ,बेशरम लोग ,सभी बदनाम लोग जो प्रसिद्द होना चाहते है सबका स्वागत है कोई संकोच ना करे .
         ३) अगर अभी तक आप अच्छे इंसान है पर बदनाम होकर प्रसिद्द होना चाहते है तो आपका भी स्वागत है .

आइडिया अच्छा है ना मुझे लगता है चलेगा भी खूब !आखिर कब तक  लोग इमानदारी ,सम्मान की २ रोटी खाएंगे? उन्हें भी प्रसिद्धि के लड्डू  चाहिए और फिर ऐसे  लोगो के पीछे तो मीडिया भी भागता है. सारे टी वी  चैनल पीछे लग जाएगे ,अख़बारों में बड़ी बड़ी तसवीरें छपेगी,हो सकता है कोई फिल्मकार अपनी आनेवाली फिल्म का प्रस्ताव भी दे दे .

सुबह एक मित्र का फ़ोन आया वो बोला चलो यार किसी को बेरहमी से मार दे हम भी प्रसिद्द हो जाएँगे हमें  लेकर भी कोई फिल्म बनाएगा हमारे भी मजे हो जाएँगे .नीरज ग्रोवर हत्याकांड का फेसला  आने के बाद होने वाली घटनाओं को देखकर तो यही लगता है की प्रसिद्द होने के लिए १ जान और ३ साल का समय बस यही तो चाहिए (कितना शर्मनाक है की आजकल ख़ूनी  प्रेस कांफ्रेंस करता है ,भीड़ इकट्ठी करता है और कहता है न्यायालय  ने मुझे दोषी माना है ,पर अब मेरी सजा पूरी हो गई है और में अपनी आगे की जिंदगी के बारे में सोचूंगी. जिंसकी जान गई उसका कुछ नहीं? ).बेरहमी से एक आदमी का क़त्ल ,उसके टुकड़े किए ,चाक़ू ख़रीदा ,लाश ठिकाने लगाई ऊपर से तुर्रा ये की में मजबूर थी. भाई एसी भी क्या मजबूरी? हमे भी पता चले हम भी अपनने इंस्टिट्यूट के लोगो को बताएँगे की जब न्यायालय में केस चले तो ये मजबूरी बताई जा सकती है......

हम भी सोच रहे क्यों झंझट में पड़े जिंदगी भर जान देकर कमाएँगे तो भी इतना नहीं जुटा पाएँगे  ना पैसा ना प्रसिद्धि ,बेहतर है कुछ ऐसा  कर ले की पैसा भी मिले प्रसिद्धि भी (आखिर ये लोग चाहते भी तो यही है की सब बिगड़ जाए ताकि चोर चोर मोसेरे भाई दिखाई दे .) ऐसा ही चलता रहा तो जल्दी ही युवा ऐसे रस्ते अपनाने से बाज नहीं आएँगे (वेसे भी बिगड़ने के कम रस्ते नहीं है उनके पास).शर्म की बात है एक आदमी जान से गया और उसे मारने वाली  एक अभिनेत्री  आज भी प्रेस कांफ्रेंस करके अभिनय जालबिछा रही है .और सोचने की बात है की लोग उसे प्रसिद्द करने के लिए बड़े बड़े काम के ऑफर दे रहे है.....

खेर में शायद मुद्दे से भटक गई .हम भी तंग आ गए है  इस ९ से ६ की नौकरी से अब थोडा प्रसिद्द होने का मन करता है अब हम खुद तो असा कुछ कर नहीं सकते तोइंस्टिट्यूट खोलने की ठानी है
तो जो भी लोग प्रसिद्धि पाना चाहते कृपया अवश्य संपर्क करें .और अगर ज्यादा प्रसिद्धि पाना चाहते है तो अपने साथ १ अच्छा मर्डर प्लान भी ले आए और कोई बेबस इंसान भी लेते हुए आए ताकि आप उसे मारकर प्रसिद्धि पा सके .....हम इन्तेजार करेंगे......


Friday, July 1, 2011

खूबसूरती आँखों में है तो खता भी खूबसूरत है


खूबसूरती  आँखों में है तो खता भी खूबसूरत है
अपनेपन से दी हुई दुआ भी खूबसूरत है
अपनी आँखों पर प्रेम का चश्मा चढ़ा के देख
खुदा की दी हुई हर वजह ही खूबसूरत  है

खूबसूरती हर शय में है बस देखने वाले की आँखों  में खूबसूरती का अहसास होना चाहिए ,मै जानती हू १०० में ९० प्रतिशत लोग चेहरे की सुन्दरता पर जाते है पर  नजर में ख़ूबसूरती की पहचान ही बचे हुए १० प्रतिशत लोगो को दूसरों से अलग करती है .हर इंसान के लिए खूबसूरती के अपने मायने अलग होते है इंसान का चेहरा उसका साथ एक समय के बाद छोड़  देता है  पर मन की खूबसूरती  हमेशा उसके साथ रहती है और उसके जाने के बाद वो लोगो के दिलों मे उसे एक अलग जगह देती है.
एक बार एक लड़की  से  किसी ने पूछा की उसे दुनिया मे सबसे खूबसूरत ३ चीजें क्या लगती है?उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया -मेरी बिल्ली,मेरी मेरी डॉल और मेरी दादी .पूछने वाले ने बड़े आश्चर्य से पुछा की डॉल पसंद है ये तो समझ मे आता है पर दादी और बिल्ली क्यों?उसने जवाब दिया :मेरी माँ बचपन मे ही मुझे छोड़कर चली गई थी तब से मेरी दादी ने ही मुझे प्यार किया ,वो मुझे हमेशा से मुझे अपने पास सुलाती थी,मुझे मनपसंद खाना बनाकर खिलाती थी , मुझे अच्छी अच्छी कहानियां सुनाती थी उनके झुर्री भरे चेहरे में ही मुझे दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत नजर आती थी.और बिल्ली मुझे इसलिए पसंद है की दादी के जाने के बाद ये मेरी साथी बन गई .और डॉल इसलिए की वो मेरी सबसे अच्छी सहेली थी वो नई गुडिया नहीं थी पुरानी सी गुडिया थी पर मुझे सबसे ज्यादा प्यारी थी में अपनी हर बात उससे करती थी.वो आज भी संभलकर रखी है मैंने मेरे लिए खूबसूरती इन्ही  सब मे है .लोगो को देखने मे शायद ये सब खूबसूरत ना लगे पर आप मेरी आँखों से देखेंगे तो यही खूबसूरत है.....
यही है खूबसूरती किसी परिभाषा से परे किसी अभिव्यंजना से हटकर,किसी तुलना से अलग दिल के कोने मे अपनी जगह बनाती है.जो लोग चेहरे,कपड़ो और रहन सहन मे सुन्दरता ढूंढते है वो कभी ना कभी ओंधे मुह गिरते है और तब उन्हें सहारा देने  कोई मन का सुन्दर इंसान ही आता है .चेहरे मोहरे  कपड़ों और भड़कीले साज श्रृंगार के आधार पर किसी की तुलना करना और किसी को कम आंककर उसे नीचा दिखने की कोशिश करना उसका दिल दुखाना उतना ही बड़ा पाप है जितना भगवन का अपमान करने पर लगता है.
बहुत सालों पहले आई एक हिंदी फिल्म थोडा सा रूमानी हो जाए याद आ रही है मुझे , सुन्दरता की अनोखी परिभाषा है उस फिल्म मे.किस तरह प्यार और मन की सुन्दरता शारीरिक सुन्दरता से कई बढ़कर है जब तक इस बात का अहसास नहीं तब तक सब बंजर है धरती भी मन भी. पर जेसे ही इस बात का अहसास होता है धरती भी हरी भरी हो जाती है और मन भी खिल उठता है.  आतंरिक सुन्दरता ही है जो इंसान के चेहरे पर तेज लाती है .
अगर आप भी सिर्फ चेहरे और दिखने वाली सुन्दरता के कायल  है तो संभल जाइये क्यूंकि नकली सुन्दरता से धोका खाकर कहीं आपको भी पछताना ना पड़े.......