Friday, October 18, 2013

हत्यारे हो जाने से विधर्मी कहलाने में भले ......


तुम लाशों के ढेरों पर तिलक लगाकर खुश होगे
या खून की नदियों को अज़ान सुनाकर खुश होगे
तुम धर्म के रंगों से मरघट में होली खेलोगे
या बच्चो के सर से माँ का आँचल चुराकर बहलोगे


तुम संगीत की ध्वनि में करूणा का रस भर दोगे
या बचपन के कन्धों पर बारूद की बोरी धर दोगे
तुम सावन की बूंदों  में जहर की धारा  घोलोगे
जब बोलोगे तब बस नफरत की बोली बोलोगे

तुम धर्म की ठेकेदारी में जीवन को कमतर समझोगे
प्रेम और अपनेपन  के बंधन को कमतर समझोगे
तुम आत्मप्रशंसा में सारी दुनिया में परचम फैला दोगे
जो खून बहा है रास्तों में उसका  जवाब कहाँ दोगे ?

हम धर्म की नहीं ,ठेकेदारों के अंधत्व की निंदा करते हैं
आस्था के ,अपनत्व के हत्यारों की निंदा करते हैं
गर यही धर्म है यही नीति तो हम हाथ छुड़ाकर लो चले
हत्यारे हो जाने  से विधर्मी कहलाने में भले ......

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Wednesday, August 14, 2013

आजकल नेताजी क्या कम नवाब है

अपना पसीना उनकी नज़रों में ख़राब है
आजकल नेताजी क्या कम नवाब है

उनके इत्र भी हमारी भूख पर भारी पड़े
खुशबुओं के दौर में रोटी का ख्वाब है

रेशमी शालू ,गुलाबी शाम के वो कद्रदान
आमजन की बेबसी का क्या जवाब है

मशहूर हो जाने को वो रोंदे हमारी लाश को
लाश हो जाना ही बस अपना सबाब है

रोशनाई ,जश्न उनकी जिंदगी का फलसफा
गरीबों की जिंदगी काँटों की किताब है 


 

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Tuesday, August 13, 2013

खोखला इतिहास लेकर क्या करूँ


भूख है और उम्र है ,दोनों ही खत्म होती नहीं
प्रसादों जेसे बड़े आवास लेकर क्या करू

उम्र भर की सेवा का मोल दिया न प्रेम से
सम्पूर्ण समर्पण के बदले ,परिहास लेकर क्या करू

बूँद बूँद के लिए तरसे हुए अंतस यहाँ
कागजों के कुएं और तालाब लेकर क्या करूँ

मैं चुनुँगा और को, राज करेगा दूजा कोई
अपने वोट पर ज्यादा विश्वास लेकर क्या करूँ


आएगा कल को कोई, मारेगा  भरे बाज़ार में
आतंकियों के शहर में साँस की आस लेकर क्या करूँ

जो आदमी आदमी  के खून में अंतर करे
मैं तुम्हारा खोखला इतिहास लेकर क्या करूँ

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Friday, July 5, 2013

क्यों खंड खंड है उत्तराखंड



parwaz blog:kyo khand khand hai uttarakhand




लाशों के ढेरों के बीच 
मानवता कराह रही 
बिगड़े हालातों के  बीच 
भूख हिलोरे मार रही 
बिना दस्तक के आ गया 
सारी वादी में प्रचुर विध्वंस 
किससे करें सवाल 
क्यों खंड खंड है उत्तराखंड 


क्यों बांधों ने सीना चीरा 
क्यों नदियों का रस्ता मोड़ा 
क्यों पत्थर में छेद कर दिया 
मिटटी में बारूद भर दिया 
क्यों रक्षक भक्षक बन बैठे 
क्यों अनजाने शासक बन बैठे 
सब तरफ है हाहाकार 
ये मानवता पर कैसा दंश 
किससे करें सवाल 
क्यों खंड खंड है उत्तराखंड 

क्यों माओं का आँचल सूना है 
पीड़ित घर का हर कोना है 
क्यों ये विषम आपदा आई 
क्यों शासक लेते जम्हाई 
क्यों हमने कोई पाठ न पढ़ा 
क्यों लोहे गिट्टी रेत  को चुना 
देव दर्शन को गए लोग 
और उजड़ गए वंश के वंश 
किससे करें सवाल 
क्यों खंड खंड है उत्तराखंड 

(Note:ये रक्षक शब्द सेनिको के लिए  नहीं है )
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बुरी और अच्छी लड़कियां

वो सारी लड़कियां हाँ वो सब की सब 
जेसी हैं वेसी थी नहीं 
वो बनाई गई वैसी ,गढ़ा गया उन्हें 
धीरे धीरे  जैसे जहर दिया जाता है ठीक वैसे ही 

उनमे से कई को दिया गया 
पढने लिखने का अधुरा सा हक 
दूध के आधे ग्लास की तरह 
जिसमे बची हुई आधी जगह 
में ठूस ठूस कर भरा था 
एक अहसान का भाव 
और इस तरह उन्हें सिखाया गया 
की कैसे भेद भाव किया जाता है 
ताकि वो अपनी अगली पीढ़ी को सिखा सके 
ठीक उसी तरह जैसे उन्हें सिखाया गया 

उन्हें बचपन से इस्तेमाल किया गया 
चाची ,बुआ ,मामियों की बातें 
चुपके से सुन लेने के लिए 
बनाया गया उन्हें छोटे छोटे 
षडयंत्रो का हिस्सा 
ताकि वो बड़ी होकर 
बेझिझक होकर रच सके एसे ही छोटे मोटे षडयंत्र 
और उलझ जाए ताउम्र इस सब षडयंत्रो में 

उन्हें सिखाई गई चुगलियाँ 
बताई गई उनकी बेबसी 
दिया गया एक परमेश्वर 
जिसे पति कहा गया 
और दी  गई संस्कारों की एक पोटली 
जिसमे पत्नी धरम, बहु धर्म 
स्त्री धर्म ,माँ धर्म न जाने कितने ग्रन्थ 
बांधे  गए और लाद  दी गई ये पोटली 
ताकि तो धर्म निभाते निभाते हो जाए भीरु 
और दे सके ये सब अपनी बेटियों को 

उन्हें कई बार दी गई शस्त्र शिक्षा 
पर वो दी गई सिर्फ आत्मरक्षा के लिए 
नहीं दी गई शत्रु संहार की शिक्षा 
ताकि वो अपने आप को समझ बैठे 
किसी की पूँजी या खजाना 
और बस इस पूँजी रक्षा को ही अपने जीवन का 
एकमात्र उद्देश्य समझ बैठे .......

पहले बनाया गया उन्हें अजीब सा 
और फिर बनाए गए उनपर चुटकुले
लिखे गए उनके लिए नए शब्द 
जैसे चुगलखोर, गृह राजनीतिज्ञ 
लड़ाया गया उन्हें एक दुसरे से 
ताकि वो खिचती रहे इक दुसरे की टांग 
बताया गया उन्हें की घर पर राज कर लिया 
तो दुनिया पर राज समझो 
अपने पति और बेटे को बस में किया 
तो सब कुछ पा  लिया 
और बस वो इन्ही संघर्षों में चुक गई 
और उनने चुका  दी अपनी बेटी और बहु की जिंदगी भी
इसी खीचतान में ............... 

उनमे से कुछ ने किया विरोध 
कुछ ने नहीं किया जिनने नहीं किया 
वो खुश है , सुगढ़,है अच्छी बहु बेटियां है 
जिनने विरोध किया वो चरित्रहीन ,असभ्य ,बेशरम कहलाई 
क्यूंकि उनने चुगलियों की जगह चुनौतियां अपनाई 
उनने ग्लास के दूध पर ध्यान दिया उसके वजन पर नहीं 
उन्होंने अपनी पारंपरिक छवियाँ तोड़ दी 
और परंपरा तोड़ने वालियां वो सब हो गई 
बुरी औरतें ...क्यूंकि वो वेसी अच्छी नहीं बनना 
चाहती  जेसी उन्हें सब बना देना चाहते थे ...
अब वो किसी की प्यारी नहीं पर खुद से प्यार करती है… 
क्यूंकि वो बुरी औरतें है अच्छी नहीं ,,,,,,,,,,,,,,,


Tuesday, May 21, 2013

अब हम सब कुछ हैं बस अब हम प्रेमी नहीं रहे...

 तुम और हम दो ध्रुवो की तरह
दोनों पर ज़िन्दगी टिकी हुई
नहीं हम नदी के दो किनारे नहीं
जो साथ न  होकर भी साथ ही हो

हम तो विज्ञान की पूरी किताब है
न्यूटन के क्रिया प्रतिकिया के सिद्धांत की तरह
जितनी तेज़ी से क्रिया होती है उतनी ही तेजी से प्रतिक्रिया
एक दम नपे तुले
कितने प्रेम में कितनी मुस्कराहट मिलनी है
कितने गुस्से में कितनी सहनशीलता
सब निर्धारित है
कुछ भी अचानक नहीं
कुछ भी अनिर्धारित नहीं

हम सारा भूगोल है
नदियों तालाबों की तरह अपना स्थान बदलते हुए
पर पहचान  नहीं बदलते
ग्रहों की तरह घूमते हुए अपनी कक्षा में
ये  जानते हुए की मिलना या दूर होना दोनों तबाही ला सकते है
हम न मिलते हैं न दूर होते हैं
एक दुसरे से बंधे हुए बस बंधे हुए ....

हम है इतिहास की झलकियाँ
कभी पुरातात्विक मूर्तियों की तरह मनमोहक
कभी जीवाश्मों की तरह गर्त में दबे हुए
हम हैं कुछ और खोजने निकले ,
कुछ और खोज लेने वाले नाविकों की तरह
प्रेम की तलाश में निकले
और प्रेम की तलाश में भटके हुए

हम धार्मिक ग्रन्थ हो गए
और हमारा प्रेम ईश्वरीय आदर्श
हम नैतिक शास्त्र की पाठशाला हो गए
जो मन ही मन निर्धारित करती रही
प्रेम केसा होना चाहिए
क्या सही है क्या गलत
क्या मर्यादा है क्या अमर्यादित
क्या दूसरों को सुखी करेगा
इन सब में उलझ कर रह गया
एक मात्र बंधन ,एकमात्र प्रेम
अब हम सब कुछ हैं
हवा ,नदी ग्रन्थ , ध्रुव ,पंछी ,मूर्ति सब कुछ
बस अब हम  प्रेमी नहीं रहे ..............

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Wednesday, May 15, 2013

साथ नहीं छोडूंगी मैं तन्हाई में

कैरी की चटनी के जैसा खट्टा मीठा जीवन है
खरबूजे के पन्ने की तरह स्वाद बदलता मौसम है

तुम शक्कर जैसे मीठे , मैं नमक सी खारी हूँ
तुम रूककर थमकर चलते मैं बहने की तैयारी हूँ

तुम आते रहना ख्वाबों में, मैं सारा जहाँ भुला दूंगी
तुम जब गुस्सा कर लोगे मैं भोलापन बिखरा दूंगी


तुम हाथो में रखना एक छड़ी मुसीबतें भगाने को
और मैं बचपना साथ रखूंगी ढेर मुसीबत लाने को


तुम थक जाना शाम ढले तक आवारा बादल जैसे
मैं रख लुंगी छुपाकर तुम्हे आँखों के काजल जैसे

जब संघर्षों में आँख तुम्हारी हो जाए पथराई सी
मैं चल दूंगी संग तुम्हारे मदमाती पुरवाई सी

तुम पल में तोला,पल में माशा ढेरो रंग बदल लेना
मेरी ऊँगली से बने चित्रों में थोड़े से रंग भर देना


तुम बौरा जाना कभी कभी तकलीफों की परछाई से
मैं निकाल लुंगी तुमको बाहर अँधेरे की गहराई से

जीवन की आपाधापी में चैन नहीं अमराई में
पर निश्चय ही साथ नहीं छोडूंगी मैं तन्हाई में
 


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Wednesday, April 24, 2013

भूख बस एक आवाज़ सुनती है रोटी की आवाज़

वो पकड़ता है वो  रुपैये भीचकर मुट्ठी में
सोचता है दे मारू मुनीम के मुह पर अभी 
कर दू हड़ताल और मांगू  अपने हिस्से के पूरे पैसे 
फिर याद आता है ठंडा पड़ा चूल्हा ,
रोटी और नमक का भाव 
घर में भूखे  बैठे  बीमार माँ बाप 
और तभी उसकी क्रांति के लाल और काले झंडे 
बदल जाते है शांति  के सफ़ेद कबूतरों में 
और वो भींच लेता है उन रुपयों को हाथों में जोर से 


वो सोचती है अभी गाली  दू कहु "दे मेरे हिस्से के सारे पैसे "
फिर याद आता है घर पर रोता दुधमुहा बच्चा 
और याद आता है वो खाना जो इस पैसे से खरीदा जाएगा 
तभी उसकी सूखी छातियों में दूध उतरेगा 
बच्चे को पिलाने के लिए , जिन्दा रखने के लिए 
और फिर सारा हिसाब किताब किनारे रख 
वो चल पड़ती है पैसे लेकर लाला के पास 

वो मुनीम भी सोचता है की इन्हें इनका हक मिलना चाहिए 
पर वो जानता  है वो भी नौकर है किसी  का 
और ये भी जानता  है की वो भी अपने हक के लिए नहीं लड़ पाया 
क्यूंकि किताबों में लिखी कई सारी  बातें 
असल जिंदगी में फेल हो गई 
मुन्नी के स्कूल की फीस देना बाकि है अभी 
और हर बार ऐसी  ही कोई न कोई बात रोक लेती है 
उसे भी विद्रोही हो जाने से 

वो  सब कभी न कभी सोचते है विद्रोही हो जाने के बारे में 
पर वो सब कभी न कभी मजबूर होते हैं 
वो सब जानते हैं सही क्या है ,क्रांति क्या है 
पर वो सब जानते हैं चूल्हों की धधकती आग 
किसी लाल सलाम से लाल नहीं होती 
वो सब जानते हैं क्रांति खून मांगती है 
पर ये भी जानते हैं की भूख ये सब नहीं समझती 

भूख बस एक आवाज़ सुनती है रोटी की आवाज़ 
क्रांति की आवाज़ भूखे पेट नहीं सुनाई  देती 
उनके लिए पसीना देना आसान है ,शायद खून  देना भी 
पर मुट्ठी में भींचे हुए पैसे देना नहीं .............


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Monday, April 22, 2013

क्या तुम सुनते हो

ये कविता शुरू किसी अन्य  भाव से हुई थी ख़तम दुसरे भाव पर हुई . कोई फेरबदल न करते हुए इसे पोस्ट कर रही हूँ आशा है दोनों भाव पाठको तक पहुंचेंगे


तुम नर्तन के अनन्य भक्त से 
मुझको जीवन नाच नचाए 
जितना ज्यादा गहरा उतरु 
उतना फंदा कसता जाए 

तुम वैभव के स्वामी हो 
मैं अंधियारे का बंधक सा 
तुम कनक कंचन के रखवाले 
मैं अकिंचन बंजर मरघट सा 

तुममे सारा जगत समाया 
मुझमे एक रोटी की भूख 
तुम प्रसादों में रहने वाले 
मुझे टूटी छत का भी दुःख 

तुम रखो कर्मो का लेखा 
मैं कर्मसागर मैं उलझ गया हूँ 
तुम मन ही मन  मुस्काते 
मैं  नैनों से बरस गया हूँ 

तुम अनंत सारी दुनिया में 
मैं  पत्थर पूज पूज कुम्हलाया 
जब आत्मा में बसे बेठे हो 
तो इतना रास क्यों रचाया 

तुम भी मुझसे बात करो न 
इतना क्यों इतराते हो 
जब मेरे मन में रहते हो 
तो मंदिर क्यों बुलवाते हो 

मुझे क्यों दी खुद्दारी इतनी 
अब देकर क्यों पछताते हो 
मैं तो तेरे दर पर आता हूँ 
तुम मेरे घर  क्यों नहीं आते हो 


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Monday, April 1, 2013

जीव हत्या :धर्म की रोटी से बोटी मत तोडिये

गौ हत्या को लेकर हमेशा से तरह तरह के विवाद उठते रहे हैं कई संगठन और व्यक्ति समय समय इस मुद्दे अपनी बात रखते रहते है और विराध किया भी जाना चाहिए क्योंकि किसी  भी जीव की हत्या किया जाना मानवीय और नैतिक रूप पूरी तरह सही है।
सामान्य तौर पर देखा जाए तो हमेशा से ये लड़ाई कभी धर्म या कभी शाकाहार -माँसाहार के मुद्दे के नाम पर लड़ी जाती रही है या अपनी धार्मिक रीतियों का और पूजा इबादत का हवाला देकर गौ हत्या सम्बन्धी तर्क रखे जाते रहे हैं . सरसरी तौर पर देखा जाए तो तो ये सारे तर्क सही प्रतीत होते  हैं।
जब मुद्दे की गहराई में जाएँगे तो देखेंगे धर्म के नाम पर गौ हत्या का विरोध करने वाले, दिन भर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर इस तरह के फोटो शेयर करने वाले लोगो में से बड़ी संख्या असे लोगो की है जो हजारो लाखो मुर्गो बकरों के क़त्ल के जिम्मेदार हैं इनमे से कितने ही लोग ऐसे हैं जिनके 2,3 दिन भी चिकन मटन खाए बिना नहीं गुजरते .

ये बात सच है की हिन्दू धरम के अनुसार गाय मत के समान है परन्तु धर्म ने ये भी कहा है की सभी जीवो पर दया की जानी चाहिए . धर्म ने ये कभी नहीं कहा की गाय के अलावा अन्य जीव प्राणवान नहीं हैं और उनकी हत्या करना क्षम्य है।
मैं इस बात से सहमत हु की हिन्दुओं की बड़ी संख्या शाकाहारी है सभी प्रकार की जीव हत्या को गलत मानती है पर यकीन मानिये इस बड़ी संख्या का लगभग प्रत्येक व्यक्ति कभी न कभी किसी न किसी प्रकार से गौहत्या के लिए जिम्मेदार रहा है।

यही इस सिक्के का दूसरा पहलु है हम सभी जानते हैं की हिन्दू धर्म में हम लोग चांदी  के वर्क का प्रयोग शुभ मानते हैं तथा इसे अपनी मिठाइयों पर लगाने को महत्व देते हैं साथ ही साथ अपने देवताओं को भी चांदी के वर्क से श्रंगारित करते आए हैं . तकनिकी के बढ़ते प्रचार और ज्ञान प्रसार के कारण हम में से कई लोग ये बात जानते हैं की चांदी का ये वर्क बनाने की प्रक्रिया में गाय की आँतों  का इस्तेमाल  किया जाता है और चमड़े के पाउच में इस वर्क को पीट पीटकर पतला किया जाता है , पर सब कुछ जानते समझते हम लोग सोशल नेटवर्किंग साईट पर गौ हत्या का विरोध भी करते हैं और मंगलवार को जाकर हनुमान जी को चांदी के वर्क का चोल भी चढाते हैं।और गणेश जी को वर्क लगे लड्डुओं का भोग भी लगते हैं।तब हमें न गौ मत याद आती हैं न शाकाहार ?फिर  गौ मांस का सेवन करने वाले ही क्यों हम लोग भी तो जिम्मेदार हुए गौ हत्या के ?

सब जानते हुए भी हम ये सब करते हैं और इसका कारण ? कारण बस एक ही है की हम धर्म को समाज को अपनी सहूलियत के हिसाब से एडजस्ट कर लेना चाहते है अपनी सुविधा और स्वाद के हिसाब से ये निर्णय लेते हैं की मुर्गी खाना या बकरा खाना ठीक है और गाय खाना पाप क्योंकि  गाय हमारी माता है .
पर उसी माता को बुचद्खाने में मार दी जाने के बाद मिले उत्पादों की सहायता से बने चांदी के वर्क से  मिठाई खाते हैं और अपने इश्वर को अर्पण करते हैं .और फिर जब मन होता है धर्म के नाम पर तलवारें निकालकर दौड़ पड़ते हैं।
पर दूसरों पर उँगलियाँ उठाते समय सभी भूल जाते हैं की बुराइयाँ ,कुप्रथाएँ हर जगह है  और हमाम में सब एक जेसे ही हैं और अन्दर से सभी खोखले हैं .

ये सच है की जब लोग बुरे का विरोध नहीं कर सकते ,गलत प्रथाओं और रीतियों के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा सकते अपनी सुविधा के हिसाब से ये निर्णय लेते हैं की कौन से जीव की हत्या उचित हो सकती है ,जो लोग सभी जीवों के प्राणों को सामान नहीं मान सकते या असा कोई भी व्यक्ति जो प्रत्यक्ष रूप से मांसाहारी है उसे गौ हत्या के लिए किसी  भी धरम विशेष पर अपने धरम की आड़ लेकर विवाद खड़ा करने का हक नहीं है।याद रखिए जीव हत्या किसी भी रूप में क्षम्य नहीं होनी चाहिए चाहे वो आप करे या कोई और करे   ।

जो लोग मांसाहार करते हैं ऐसे किसी व्यक्ति को हक नहीं की वो धार्मिक कलह को बढ़ावा दे क्यूंकि या तो सभी जीवों पर दया करिए ,मानव धर्मी बन जाइये किसी भी तरह का मांसाहार मत करिए और जीव हत्या में से पूरी तरह तौबा कर लीजिए या फिर धरम को खिलौना बनाकर अपनी सुविधा के हिसाब से तोडना मरोड़ना बंद करिए और जो खाना है खाइए ये आपका निर्णय है पर फिर धरम के नाम की रोटी से बोटी मत तोडिये 
...........
(लेखिका सवयम पूरण शाकाहारी है और इस लेख को लिखने के लिए किए गए अध्यन के बाद चांदी के वर्क से हमेशा के लिए तौबा करती है )

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Saturday, March 16, 2013

इश्क यादें और उदासियाँ

म्यूट का बटन सिर्फ टीवी में ही नहीं ज़िन्दगी में भी बड़ा ज़रूरी होता है सारी चिल्लपों से दूर थोड़ी देर शांति के लिए , उदासियों से मोहब्बत करने के लिए  .... उदासियाँ कभी भी आ सकती हैं दबे पैर ,किसी ख़ुशी के मौके पर ,दर्द की घड़ी में कभी भी क्यूंकि इनके लिए कभी कोई समय बनाया ही नहीं गया सब अच्छी चीजों की फ़िक्र में साज संभाल में इनके लिए कोई जगह बनाई ही नहीं गई और जिसके लिए जगह न बनाई गई हो न मिलने का समय दिया गया हो वो अतिक्रमण करके आता है ...

उदासियों की कहानी  हमेशा से एसी नहीं थी उनका भी अपना गाँव था जहाँ उदासियाँ इतनी उदास नहीं थी एक पहाड़ी गाँव की वो  लड़की बौर के मौसम में अमराई के जेसी जो उसे देखता बस देखता ही रह जाता जो उसमे खोता बस खोता ही चला जाता फागुन में जब टेसू के फूल खिलने वाले होते तो हवा चुपके से आती और उसके गालों से लेकर थोडा लाल रंग टेसू की कलियों पर छिटक देती ....फसल के मौसम में पानी उसकी धानी चूनर से रंग उधार ले जाता ...लोग कहते एक बरस जब उसने  धानी चुनर ना ओढ़ी उस साल पूरे गाँव में फसलों में रंग ही न उतरा सारी की सारी फसल पीली पड़ गई ....

एसी जाने कितनी कहानियां थी उसके लिए ...वो थी तो गाँव में खुशियाँ  ही खुशियाँ  थी हर तरफ ....एसे में कहीं से एक परदेसी आया उस साल उस गाँव में पहली बार प्यार के सुनहरी फूल खिले लोगो ने पहली बार हवाओं में संगीत बहता सुना ,नदी को शराबी चाल चलते देखा और बादलों को घुमड़ घुमड़ कर बरसते भी ....
उसी के बाद लोगो ने पहली बार  देखा की लड़की के गालों का रंग अब टेसुओं पर नहीं खिल रहा और फसल का रंग उतना हरा दिखा बड़ी खोज खबर के बाद पता चला की परदेसी के प्रेम ने लड़की को खुशियों से भर दिया पर अब लड़की के सारे रंग परदेसी के हैं .  सारे रंगों पर प्रेम का सुनहरा रंग चढ़ गया है .....

फिर ? एक दिन परदेसी अचानक से कहीं चला गया या शायद जबरजस्ती भेज दिया गया इस आस में की फसलों पर फिर रंग आएगा टेसू फिर अंगार सा रंग लेकर खिलेंगे पर उसके बाद लड़की के आंसुओं से हुई बारिश ने सब तबाह कर दिया टेसू में रंग ना चढ़ा ..उसी के बाद लोगो ने नदी का उदास काला पानी देखा , बादलों की तबाही देखी , आसमान में घोर अँधेरा देखा ,हर तरफ निराशा देखी .....लोगो ने अकेली उदास लड़की को और अकेला कर दिया दूर कहीं जाकर एक बस्ती बनाई वहां एक नई ख़ुशी से भरी लड़की ढूंढ ली और पुरानी वाली लड़की के लिए ज़िन्दगी में कोई जगह ही न रखी न उससे मिलने का कोई समय ...
बस तब से वो बेचारी लड़की उदासी बन गई अब वो अचानक से आती है बिना समय बिना वजह ,अपने लिए थोडा सा अपनापन ढूँढने ...

उफ़ जब तुम याद आते हो इन उदासियों से मोहब्बत हो जाती है कहीं तुम मेरे सारे रंग तो नहीं ले गए या सच में प्रेम का रंग हर रंग पर भारी होता है ....कही कहीं न विज्ञानं काम करता है न गणित ....जैसे साइनाइड का कोई स्वाद नहीं होता फिर भी जहर तो जहर है और उदासियों का कोई रंग नहीं होता फिर भी प्यार तो प्यार है ही ....

Monday, March 11, 2013

लव थेरेपी बेस्ट थेरेपी

love therapy best therapy 
प्रेम लिखने पढने समझने के सबके अलग ढंग है ... पंजाब की हाथ की बनी  फुलकारी का काम देखा है कभी ? या मेहंदी के कोन से बनी मेहंदी की डिजाइन  तो देखी होगी ? सोचते हो इसमें नया क्या है अलग क्या है ? अलग है नया भी है ...अलग है हाथ का जादू , अलग अलग हाथ से बनी एक ही कलाकृति कभी एक सी नहीं दिखती और अलग अलग लोग उसे अलग ढंग से देखेंगे बस यही एक फर्क है इश्क के मामले में भी ...सब अलग ढंग से समझते है ,अपने ढंग से मायने निकालते है और बदलते हैं ....बदलते हैं इसलिए लिखा क्यूंकि जो लोग अपनी जवानी के दिनों में प्रेम के महासमर्थक बने फिरते रहे हैं वही एक उम्र के बाद प्रेम को घोर निंदा का सबजेक्ट मान बैठते हैं ....

सबका अलग ढंग ,अलग विचार। और हो क्यों ना  प्रेम भी तो अलग है और जिंदगी के हर पहलु पर प्रभाव भी डालता है, हर शरीर पर हर मन पर सब पर यूनीक प्रभाव ...

प्यार  का सम्बन्ध सिर्फ दिल से नहीं होता ये बात तो सच   हैं पर आपके मोटापे और भूख से भी क्या इसका सम्बन्ध हो सकता है ? हां ! ये भी सच है अचानक से विश्वास नहीं होता इस बात पर ...लेकिन ये सच है जो लोग प्रेम के लिए तरसे रहते है वो या तो बहुत तेजी से मोटे हो जाते है या इसके विपरीत  लाख चाहने के बावजूद सामान्य या अच्छे स्वास्थ्य के मालिक नहीं बन पाते और बहुत दुबले पतले से रह जाते हैं  । 

पहली परिस्थिति देखे तो जब इंसान प्रेम के लिए तरसता है तो उसे अन्दर से एक खालीपन का अहसास होता है उसे लगता है कोई उसे प्रेम नहीं करता कोई उसके बुरे समय में ,बुरे स्वास्थ्य में उसका सहारा नहीं बनेगा और इसी उधेड़बुन में ऐसे  लोग अपनी क्षमता से ज्यादा भोजन करने लगते हैं उन्हें पता भी नहीं चलता और वो अपने आतंरिक खालीपन की पूर्ती प्रेम की जगह भोजन से करने लगते हैं। आपने कभी कभी देखा होगा घर से दूर अकेले रहने वाले कुछ बच्चे अचानक से मोटे होने लगते हैं और हम सोचते हैं उन्हें उस शहर का हवा पानी रास आ गया , कभी कभी ये बात सही भी होती है की किसी स्थान विशेष की जलवायु 
मानव शरीर पर अनुकूल असर डालती है  पर हर बार एसा नहीं होता ,  ये अचानक आया मोटापा कभी कभी  प्रेम की ,अपनेपन की कमी के कारण होता है। 

यकीन मानिये अगर आप प्रेम से भरे हैं तो आपको बहुत ज्यादा भूख नहीं लगेगी क्यूंकि आप संतुष्ट है आपको डर नहीं है इस बात का की आपकी जरुरत के समय कोई आपके साथ नहीं होगा . अगर आपको किसी से अथाह प्रेम है या आपके पास कोई है या कई लोग हैं जो आपको बहुत प्रेम करते हैं तो आप आत्मसंतुष्टि से तरबतर होंगे और ऐसी  स्तिथि में आप भूख के, मोटापे के गुलाम नहीं बनते .....

अब दूसरी परिस्तिथि देखते हैं जब प्रेम की कमी इंसान की भूख को मार देती है और जो भोजन वो करता है वो लाख चाहने पर भी उसके शरीर को नहीं लगता। आपने देखा होगा की कभी कभी कोई बिमारी न होने ,घर में खान पान की अच्छी व्यवस्था होने के बावजूद भी कुछ लोग बहुत दुबले पतले होते हैं और लोगो के तानो का शिकार होते रहते हैं . सच मानिये कई बार इस तरह के स्वास्थ्य के पीछे प्रेम और अपनेपन की कमी एक बहुत बड़ा कारण होती है। जब किसी इंसान के आसपास ऐसे लोग मौजूद हो जो उसकी हर बात में मीन मेख निकाले ,उसके रंग रूप योग्यता हर बात पर टिप्पणी करे  उसे बार बार उसकी कमियों का अहसास दिलाए  या उसे बदल जाने के लिए मानसिक रूप से दबाव बनाए तो ऐसी  परिस्थति में इंसान प्रेम के लिए बेतरह तरस जाता है और उसे धीरे धीरे स्वयं से भी प्रेम नहीं रहता . वो खुद को संसार से और अपने आस पास के लोगो से काटने लगता है और प्रेम की ये कमी उसके अन्दर की भूख को मार देती है। 
वो तरह तरह के व्यंजन खाए ,प्रोटीन सप्लीमेंट  ले पर क्यूंकि उसका मन दुःख से भरा होता है भोजन उसके शरीर को नहीं लगता , वो चाव से भोजन नहीं कर पाता क्यूंकि मन तो प्रेम का भूखा है और कोई भोजन लगता ही नहीं .

अगर आपके पास प्रेम है तो वो आपके अन्दर की रिक्तता को पाट देता है जिसके कारण ना तो आप अत्यधिक मोटे होंगे और न ही दुःख और अवसाद को इतनी जगह मिलेगी की वो रिक्तता को इतना भर दे की आप भोजन में  रूचि ही न ले।

ये बातें सुनने में अजीब लगती है पर सच है की सिर्फ फैट, विटामिन  या प्रोटीन की सही मात्रा ही शरीर के लिए जरुरी नहीं प्रेम की सही आपूर्ति भी शरीर को ठीक ठाक बनाए रखने के लिए उतनी ही आवश्यक  है। विश्वास मानिये अगर आपका कोई अपना अचानक से मोटा हो रहा है या लाख चाहने के बाद भी उसके शरीर को भोजन नहीं लगता तो एक बार लव थेरेपी का प्रयोग करके अवश्य देखिए। उसे समझने की कोशिश करिए दवाइयों का डोज़ अपनी जगह है थोडा सा अपनेपन का अहसास दिलाइये , ये अहसास दिलाइये की वो आपको प्रिय है और आपके जीवन में उसका स्थान बहुत महत्वपूर्ण है ...यकीन माहिये असर होगा ...क्यूंकि प्रेम से बेहतर कोई उपाय नहीं ................

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Monday, February 18, 2013

ये शहर पराया लगता है


अपनी बिखरी यादों का हर ज़र्रा हमसाया लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है

वो लम्हे जो पीछे छूट गए
वो अपने जो हमसे रूठ गए
वो गाँव जो हमने देखे ना
वो शहर जो आकर बीत गए
सपनो की दुनिया में उनका मंच सजाया लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है


वो बरखा जो तुमसे सावन थी
सर्दी की धूप जो मनभावन थी
वो बसंत जो मन का मीत बना
वो फागुन जो संगीत बना
मन को ना भाए कुछ भी ,हर मौसम बोराया लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है

वो कलियाँ जो हमको प्यारी थी
जिन पंछियों से यारी थी
वो चाँद था जिससे प्रेम बढ़ा
वो लहरें जिनसे था सम्बन्ध घना
कतरे से लेकर ईश्वर तक अब सब कुछ ज़ाया (बेकार ) लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है

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Wednesday, February 6, 2013

बेटियों की शादी और मायका

मायका यानी माँ का घर
ससुराल यानी  पति का घर
बड़ा दोहरापन है जिंदगियों में
बचपन से लेकर शादी तक
हर लड़की को एक पराये -अपने घर
का दिया जाता है आश्वासन
घर जो एसा  होगा जहा वो
ना पराया धन होगी ना परायी अमानत
ना उसे वहा से कही जाना होगा
न अपने अस्तित्व का संघर्ष करना होगा
क्युकी वो  उसका अपना घर होगा

पर उस घर में जाने के बाद
उसे अहसास होता है
वो घर ,उसमे रहने वाले हर इंसान का है
यहाँ तक की घर के पालतुओं का भी
पर वो घर उसका नहीं है ......

पराई बेटी है बात छुपाकर रखो
कल की आई लड़की है सलाह न लो

सारे कर्तव्यों का ज्ञान करा दो इसे
हर बात पर हाँ कह्ना सिखा दो इसे
अधिकार मांगे तो बात को हवा मत देना
समानता मांगे एसी वजह मत देना

ज्यादा अपनापन ना दो सर चढ़ जाएगी
ज्यादा छूट मत दो बेटा लेकर उड़ जाएगी
इसे प्यार की नहीं धिक्कार की जरुरत है
हमे इसकी नहीं इसे परिवार की जरुरत है

तेरा न कोई आसरा ना सहारा हमारे सिवा
अपने मन की न करना क्यूंकि हम सर्वेसर्वा
रंगीन सपना न देख तोड़ दिया जाएगा
क्रोध  आ गया तो तुझे छोड़ दिया जाएगा

शायद इसीलिए स्त्रिया
 इन्तेजार करती है बेटी की शादी का
ताकी जब बेटी अपने जन्म-घर  आए
तो कहे- "मायके" जा रही हू
कोई तो हो जो माँ को अहसास दिलाए
हा ये घर उसका है उसका अपना घर
उसकी बेटी का मायका ...... 


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