
ससुराल यानी पति का घर
बड़ा दोहरापन है जिंदगियों में
बचपन से लेकर शादी तक
हर लड़की को एक पराये -अपने घर
का दिया जाता है आश्वासन
घर जो एसा होगा जहा वो
ना पराया धन होगी ना परायी अमानत
ना उसे वहा से कही जाना होगा
न अपने अस्तित्व का संघर्ष करना होगा
क्युकी वो उसका अपना घर होगा
पर उस घर में जाने के बाद
उसे अहसास होता है
वो घर ,उसमे रहने वाले हर इंसान का है
यहाँ तक की घर के पालतुओं का भी
पर वो घर उसका नहीं है ......
पराई बेटी है बात छुपाकर रखो
कल की आई लड़की है सलाह न लो
सारे कर्तव्यों का ज्ञान करा दो इसे
हर बात पर हाँ कह्ना सिखा दो इसे
अधिकार मांगे तो बात को हवा मत देना
समानता मांगे एसी वजह मत देना
ज्यादा अपनापन ना दो सर चढ़ जाएगी
ज्यादा छूट मत दो बेटा लेकर उड़ जाएगी
इसे प्यार की नहीं धिक्कार की जरुरत है
हमे इसकी नहीं इसे परिवार की जरुरत है
तेरा न कोई आसरा ना सहारा हमारे सिवा
अपने मन की न करना क्यूंकि हम सर्वेसर्वा
रंगीन सपना न देख तोड़ दिया जाएगा
क्रोध आ गया तो तुझे छोड़ दिया जाएगा
शायद इसीलिए स्त्रिया
इन्तेजार करती है बेटी की शादी का
ताकी जब बेटी अपने जन्म-घर आए
तो कहे- "मायके" जा रही हू
कोई तो हो जो माँ को अहसास दिलाए
हा ये घर उसका है उसका अपना घर
उसकी बेटी का मायका ......
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
4 comments:
दिल को छूती है आपकी अभिव्यक्ति .. एक माँ के दिल को पढ़ा है आपने ...
बेटी माँ को सपनों का घर देती है और जी लेती है हर बार अपना जीवन
मन को प्रभावित करती सुंदर रचना,,,
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