Monday, February 18, 2013

ये शहर पराया लगता है


अपनी बिखरी यादों का हर ज़र्रा हमसाया लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है

वो लम्हे जो पीछे छूट गए
वो अपने जो हमसे रूठ गए
वो गाँव जो हमने देखे ना
वो शहर जो आकर बीत गए
सपनो की दुनिया में उनका मंच सजाया लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है


वो बरखा जो तुमसे सावन थी
सर्दी की धूप जो मनभावन थी
वो बसंत जो मन का मीत बना
वो फागुन जो संगीत बना
मन को ना भाए कुछ भी ,हर मौसम बोराया लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है

वो कलियाँ जो हमको प्यारी थी
जिन पंछियों से यारी थी
वो चाँद था जिससे प्रेम बढ़ा
वो लहरें जिनसे था सम्बन्ध घना
कतरे से लेकर ईश्वर तक अब सब कुछ ज़ाया (बेकार ) लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

10 comments:

रविकर said...

प्रेरित करती प्रस्तुति-

कथ्य और शिल्प दोनों प्रभावी-

आभार आदरेया ।।

दुखी रियाया शहर की, फिर भी बड़ी शरीफ ।

सह लेती सिस्कारियां, खुद अपनी तकलीफ ।

खुद अपनी तकलीफ, बड़ा बदला सा मौसम ।

वेलेंटाइन बसंत, बरसते ओले हरदम ।

हमदम जो नाराज, आज कर गया पराया ।

बिगड़े सारे साज, भीगती दुखी रियाया ।।

Rajendra kumar said...

बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति.

अज़ीज़ जौनपुरी said...

sundartam bhav,"mohabbt kare aur karna sikhaye,chalo aaj mohabbt ki duniya basaye......"

dr.mahendrag said...

katre se lekar Ishwar tak ab sab kuch jaya lagta hae,
jab yad tumahari aati hae,to shaher paraya lagta hae.
EK bhav purna sundar prastuti

Ramakant Singh said...

आपने राजेंद्र गुप्ता और नीना गुप्ता के ग़ज़ल की याद दिला दी बहुत ही सुन्दर रचना .

Dr. sandhya tiwari said...

बहुत सुन्दर गजल .........

RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' said...

सुन्दर अभिव्यक्ति.जब तुम्हीं गर साथ अगर , अब सब कुछ जाया लगता है

दिगम्बर नासवा said...

जहाँ इंसान की यादें अटकी रहती हैं उसका मन वहीं जाता है बार बार ... ओर बाकी सबकुछ पराया लगता है ...
सच कहा है ... भावमय रचना ...

प्रवीण पाण्डेय said...

यादों में सब कुछ बिसराया..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सुंदर भावमय,लययुक्त मन को प्रभावित करती अभिव्यक्ति,,,बधाई,कनुप्रिया जी,,,

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