Saturday, November 18, 2017

ननिहाली किस्से-यादों का सफ़र भाग 1

प्यारे नानाजी,हम सच में आपको बहुत याद करते हैं।ये यादों का सफ़र आपके लिए आपके गांव और अपने ननिहाल को फिर से जी लेने की तमन्ना के साथ।
ननिहाली किस्से हाँ यही नाम दे रही हूँ इस किस्सों की लहर को क्या कितना याद है कितनी यादें धुंधली हुई ये तो लिखते लिखते याद आएगा शायद पर अपना बचपन फिर से जी लेने का और उसे पन्नो पर उतार देने का इससे बेहतर मौका मुझे शायद फिर न मिले....
कयामपुर यही नाम है मेरे नानाजी के पुश्तेनी गाँव का अब ये नाम क्यों रखा गया होगा इसके बारे में ना तो वहाँ कोई लोकचर्चा या कथा प्रचलित है और न कभी कोई बात सुनने में आई पर अंदाज़ा लगाया जा सकता है उर्दू शब्द "कयाम" का अर्थ क्योंकि 'रुके रहना','ठौर' आदी होता है तो हो सकता है पुराने किसी ज़माने में ये लोगों के ठहरने का स्थान रहा हो,क्योंकि गाँव के किनारे से होकर एक नदी बहती है या यूँ कहें कि गाँव नदी किनारे बसाया गया होगा तो इस बात की संभावनाएं बढ़ जाती है कि ये कभी राहगीरों या सेनाओं का ठौर रहा होगा।

पर जैसा कि हर गाँव इतिहास में दर्ज़ तो किया नहीं गया इसलिए सिर्फ़ कयास लगा सकती हूँ।अब तक तो आप लोग समझ ही गए होंगे कि मेरे नानाजी का गाँव कोई ऐतिहासिक धरोहर नहीं है पर इलाके में लोग गाँव को जानते हैं।मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में पड़ने वाला ये गाँव जिले के लोगो मे जाना पहचाना है...एक मिनट एक मिनट हाँ!मंदसौर वही पशुपति नाथ मंदिर वाला.हाँ हमारे मंदसौर में भी एक पशुपतिनाथ का मंदिर है और यकीन मानिए ये  मूर्ति नेपाल वाली मूर्ति से 19,20 ही होगी लेकिन मध्यप्रदेश में महांकाल,ओम्कारेश्वर  जैसे ज्योतिलिंग हैं और खजुराहो कान्हा किसली ,महेश्वर ,मांडू जैसे कई दूसरे पर्यटन स्थल है इसलिए मन्दसौर के पशुपतिनाथ को शायद उतनी प्रसिद्धि न मिल सकी जितनी अब तक मिल जानी चाहिए थी।
हाँ तो मंदसौर जिला एक और चीज़ के लिए प्रसिद्द रहा है'अफ़ीम की खेती'. सरकारी नियमों के चलते जो अब थोड़ी कम हो गई पर यकीन मानिए अफ़ीम इलाके के कई किसान उगाते रहे और ईमानदारी से सरकार को बेचते आए हैं।आगे कभी मौका मिला तो अफीम की खेती और उससे जुड़े व्यापार की पूरी डीटेल बताउंगी पढ़ने वालों को, फिलहाल कयामपुर पर वापस आते हैं।
कुल मिलाकर स्टैण्डर्ड गाँवो की छवि वाला गांव है रुकिए रुकिए जनाब हवा में किले मत बनाइये यश जी की फिल्मों वाले गाँव फिल्मों में ही होते हैं हाँ उनकी फिल्मों जैसे राज सिमरन टाइप के किरदार इस गांव में भी रहे होंगे पर ये पंजाब का गाँव तो है नहीं जो सरसों के खेत लहलहाए और बैकग्राउंड में हमेशा' घर आजा परदेसी 'की धुन बजती रहे या हवा में मोहब्बत तैरती फिरे, हाँ गाँव मे नदी है पर कोई सोनी महिपाल वाला किस्सा नहीं है क्योंकि नदी बिचारी छोटी सी बची है और पुराने ज़माने में भी सोन नदी जैसी तो नही ही थी कि उफनती नदी को मटके लेकर पर करना पड़े ...खैर!आम स्टैण्डर्ड गाव से मेरा मतलब था पुराने कच्चे घर ,एक नदी आस पास  के इलाकों में खेत जिनमे पहले मोटा अनाज और सब्जियां लगती थी जो बाद हरित क्रांति के समय गेहूँ और फिर सोयाबीन की खेती में बदला और अब तो इन सारी फसलो के साथ संतरों के बाग भी काफी प्रचलित है।और कई छोटे मोटे गांव भी लगे हैं तो व्यापार का छोटा मोटा केंद्र जैसा है मेरा ननिहाल।
एक बात तो है मेरे किस्सों में आपको ट्रेजिक पार्ट कम मिलेगा पहली बात तो ये की कयामपुर इलाके का संरराध गाँव है तो भूख से बिलबिलाते बच्चे या सिर्फ आलू भूनकर खाने जैसी तकलीफों वाले किस्से ज़रा कम या शायद नहीं ही सुनने में आते हैं दूसरी बात मेरा ननिहाल का परिवार जाना पहचाना काफी समृद्ध है तो किस्सो में गाँव मे छोटी सी झोपड़ी और टिमटिमाता तेल के अभाव में बुझने को हो आया दीपक जैसा एंगल भी न ही मिलेगा।(इन वाक्यों को गरीबी का मज़ाक उड़ाता हुआ कतई मत समझियेगा ये बस  इसलिए कि मेरी कहानी या आने वाले किस्से गाँव की दुखभरी कहानी नही है। हाँ गाँव है तो कई भौतिक असुविधाएं रहीं है माहौल भी रहा है वो ज़रूर पढ़ने मिलेगा।
हाँ तो मंदसौर जिले के मंदसौर शहर से मेरा ननिहाल कयामपुर तकरीबन 35 किलोमीटर दूर है और लगभग दस हज़ार की आबादी वाला ये गांव आजकल लगभग सर्वसुविधायुक्त है।गांव के रास्ते में दूर दूर तक लगे सोलर पैनल और पानी की कमी पूरी करने के लिए बड़े बड़े पाइप की पाइपलाइन डालकर बनाया जा रहा वाटर प्रोजेक्ट इस बात की गवाही देता है।ये गांव भी हमेशा से ऐसा नहीं था समृद्धि आते आते आई है और इसके लिए गाँव के लोगो ने भी मेहनत की है।
सबसे पहले बात करते हैं कि यहां तक पहुंचा कैसे जाता है देखिए मेरी बात मत करिए मेरे लिए कयामपुर पहुंचने के लिए सोना जरूरी है एक दम सिंपल चादर तानो सो जाओ सपनो में नाना घर। पर सब मेरी तरह महान तो नहीं हो सकते ना तो आम लोगो को वहां तक पहुंचने के लिए दुनियावी तरीको का इस्तेमाल करना होता है।
कयामपुर तक पहुंचने के कई तरीके होते है पहला तो इंदौर शहर से काफी दूर होने के बावजूद रोज एक बस इंदौर से कयामपुर के लिए चलती है जिससे आप डायरेक्ट वहाँ पहुंच सकते हैं।
दूसरा इंदौर से  मंदसौर ( ट्रेन या बस किसी भी साधन से )जाइये वहाँ मंदसौर बस स्टैंड से हर आधे घंटे में कयामपुर के लिए बस मिल जाती है जो आपको तकरीबन सवा से डेढ़ घंटे में कयामपुर छोड़ देगी वैसे इन बसों का हाल आज भी लगभग वैसा ही है जैसा मेरे बचपन मे था।भारी भीड़, धक्कामुक्की ,धूल और टिपिकल बस वाली गंध जिसमे बीड़ी ,गुटखे पसीने और धूल की मिली जुली गंध शामिल होती है।
तीसरा रास्ता है आप मंदसौर से अपनी गाड़ी लेकर जा सकते हैं पर आप क्यों जाएंगे ये सोचने वाली बात है क्योंकि ये कोई पर्यटन स्थल तो है नहीं गाड़ी लेकर चले भी गए तो वह कोई होटल तो है नहीं रुकेंगे कहाँ?अब मैं लिख रही हूँ तो कह सकती हूँ मेरे ननिहाल में रुक जाइयेगा पर जाकर करेंगे क्या ये टेढ़ा प्रश्न है।वैसे पूरा गाँव मेहमाननवाज़ी के लिए फेमस है और गाँव की मेहमाननवाज़ी के भुक्तभोगी कई लोग हैं आगे वो किस्से भी सुनाऊँगी कभी,लेकिन एक बात पक्की है लोग दिलदार है चाय पिलाने के मामले में तो पक्के दिलदार।
अभी फिलहाल इतना समझ लीजिए कि किस्सों की दुनिया मे स्वागत है आपका ....
इनमे कुछ किस्से मेरे अपने होंगे कुछ मेरे ममेरे भाई बहनों के,कुछ गांव के लोगो से भी लिए जा सकते हैं और चाहे तो आप पढ़ने वाले भी अपने ननिहाल के किस्से शेयर कर सकते हैं।मालवा अंचल पर ज्यादा लिखा नही गया है वैसे और जो लिखा गया है वो इंदौर के आसपास ज्यादा भटका है मंदसौर तक काम ही आ पाया है तो कोशिश करूँगी कि मंदसौर जिले की संस्कृति और बोली भाषा से भी परिचय करवा सकूँ।।आगे इस बात पर निर्भर करेगा कि लिखने वाले को लिखने में और पढ़ने वालों को पढ़ने में कितना मज़ा आता है और ये यात्रा कितनी लंबी और कब तक चलेगी..देखते हैं ये ननिहाली किस्से सिर्फ मेरे रहते हैं या और भी लोग इनसे जुड़ने का मन बनाएंगे...



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Tuesday, November 14, 2017

तुम इश्क़ में भोपाल हो जाओ हम इंदौर हो जाएं

चलो हम दोनों भी इश्क़ में मशहूर हो जाएं
तुम भोपाल हो जाओ, हम इंदौर हो जाएं

 तुम धीरे से मुस्का देना हम ताली देकर हँस देंगे
तुम शायरी एक उछालना, हम बाहों में तुमको कस लेंगे
 तू भीमबैठका की सुबह सा शांत, मैं चौक बाज़ार की रात सी हूँ
तू भोपाली नफ़ासत वाला, मैं बिन बातों की बात सी हूँ
तुम बन जाओ साँची के संयम, हम भेड़ाघाट की जलधारा का शोर हो जाएं...
तुम भोपाल हो जाओ हम इंदौर हो जाएं।

चलो हम दोनों भी इश्क़ में मशहूर हो जाएं
तुम भोपाल हो जाओ हम इंदौर हो जाएं।

 खजुराहो की कला जैसे ,हम प्रेम को वश में कर लेंगे
 बाजबहादुर रूपमती के किस्से फिर जीवित कर देंगे
 तुम विशाल बड़े तालाब बनो, मैं पातालपानी की लहर बनु
 तुम महेश्वर के घाट जैसे, मैं राजवाड़ा सी शान बनु
तुम भटके हुए मुसाफ़िर, हम तेरा ठौर हो जाएं
 तुम भोपाल हो जाओ हम इंदौर हो जाएं।

रीगल में फिल्में देखकर हम इश्क़ के ढेरों ख्वाब बुनें
वीआईपी रोड की शाम तले हम ख्वाबों के गहरे रंग चुने
तुम तालाब के गहरे नीले रंग, मैं रंग में तेरे रंग जाऊ
तुम बन जाओ मेरे जोगी, मैं तेरी जोगन कहलाऊँ
तुम चौक का मीठा शर्बत, हम सर्राफे की चाट- चटोर हो जाएं
तुम भोपाल हो जाओ हम इंदौर हो जाएं।

जहाँ प्यार बढ़े वो सुबह हो तुम जहाँ सुकूँ मिले वो सहर हूँ मैं
धीरज धरते महाकाल से तुम,शिप्रा सी चंचलचपल हूँ मैं
 मैं रेवा सा आँचल फैला दूँ तुम छाव में आकर सो जाओ
 मेरी गहरी काली आंखों में भोपाली सुरमे से रम जाओ
प्रेमरंग में डूबें कान्हा-किसली के मोर हो जाएं
तुम भोपाल हो जाओ हम इंदौर हो जाएं।

चलो हम दोनों भी इश्क़ में मशहूर हो जाएं
तुम भोपाल हो जाओ, हम इंदौर हो जाएं


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Monday, November 13, 2017

वो भी खुश नहीं रहते

देकर के ज़ख्म ख़ुद भी तो मरहम नहीं लेते
जो बीच राह छोड़ते हैं वो भी खुश नहीं रहते

इश्क़ की दीवारों में सेंध मारकर
सोने के महलों में भी बैचेन होते हैं
खून के आंसू रुलाकर वो
दर्द की बात कहते हैं
उनके सज़दे भी अनसुने
उनकी दुआएं भी बेअसर
उनकी पूजा भी अधूरी
उनके दीपक भी चमक भर
किसी की दुनिया जलाकर ख़ुदा का कहर वो सहते
जो बीच राह छोड़ते हैं वो भी खुश नहीं रहते

वो ज़माने से लड़ जाने की कसम खाकर
प्यार के झूठ का रंग चढ़ाकर
ले जाते है हर रंग ज़िन्दगी से खींचकर
बेरंग कर गए जो सब्ज़बाग दिखाकर
वो रंगमहल में भी चले जाएं तो जाए
दुनिया की हर शय अपने कदमों में बिछाए
ख्वाबों का कारोबार करें ख्वाब सजा ले
अंधेरों की दुनिया का बद्दुआ का असर है
ख्वाब की दुनिया मे भी बेधड़क नहीं रहते
जो बीच राह छोड़ते हैं वो भी खुश नहीं रहते।

Sunday, August 27, 2017

देहगंध (कहानी)

वो इत्र की शीशी को दाहिने हाथ में लेती है और अपने बाएं हाथ की तरफ धीरे से बढ़ा देती है ,हथेली को उल्टा करके रुई के फाहे से उसपर खुशबू बिखेर लेती है और उस हाथ को अपनी नाक के पास ले जाकर सूँघती है और फिर खुशबू को सूंघते ही उसके चेहरे पर ऐसे भाव आते हैं जैसे किसी अजनबी से इस आस में मिली हो कि वो कोई अपना ही है पर मिलते ही अजनबीपन का अहसास हो गया हो...
उसने इत्र की दुकान वाले को दो इत्र की शीशी के पैसे दिए और इत्र हाथ मे लिए बाहर की तरफ बढ़ गई,तभी दुकानदार ने कहा "बेटा बुरा न मानो तो एक बात पूछू?" लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा जी चाचा पूछिये न"
बेटा तुम कितने ही दिनों से हर सप्ताह यहाँ आती हो जाने कितनी ही खुशबुएँ सूँघती हो और 1,2 शीशी इत्र लेकर चली जाती हो पर तुम्हे  कभी इत्र को सूंघते ही खुश होते नहीं देखा किसके लिए ले जाती हो ये इत्र"
लड़की लंबी सांस लेकर मुस्कुरा देती है आह भरते हुए आंखों में उतार आए समंदर को रोक लेने की कोशिश करते हुए कहती है "मैं इत्र में खुशबुएँ नही अपनापन ढूंढने आती हूँ चाचा मेरा खोया हुआ करार ढूढने आती हूँ। पर हर बार बेचैनियां ले जाती हूँ "
इत्र की शीशियां शोकेस में जमाते हुए हुए चाचा के हाथ वही रुक जाते हैं वो हैरानी से लड़की की तरफ देखते हुए कहते हैं "मैं  कुछ समझा नहीं बेटा"
लड़की अपनी उदास आंखों से इत्र की शीशियों को ऐसे देखती है जैसे उनमें कोई उम्मीद छुपी हो, और फिर हाथ की घड़ी की तरफ देखती हुई हड़बड़ाहट में कहती है आज ज़रा जल्दी में हूँ चाचा अगली बार आउंगी तो सारी कहानी बताउंगी"इतना कहकर वो दुकान से बाहर निकल जाती है
काउंटर के इस पार खड़े चाचा मन में घुमड़ते हुए ढेरों सवालो को रोकते हुए इत्र की शीशियों को निहारते हैं और मुस्कुराते हुए मन ही मन सोचते हैं"अगले सप्ताह का इंतज़ार..."
कुछ दिनों बाद नूर इत्रवाले ने रोज की तरह ही अपनी दुकान खोली और एक छोटा काउंटरनुमा टेबल दुकान के मेन काउंटर से सटाकर बाहर की तरफ रख दिया इस टेबल पर कुछ सीधी के जैसे दिखने वाले शेल्फ बने थे नूर चाचा ने में काउंटर के दाहिने तरफ बने एक खाने ( खंड/शेल्फ) से लकड़ी के डंडे पर  मलमल का कपड़ा बांधकर बनाई हुई झटकनी उठाई और हल्के हाथों से काउंटर साफ करने लगे।
उनने एक एक करके इत्र के बड़े छोटे मर्तबान और शीशियां काउंटर पर जमाने शुरू कर दिए।साथ मर्तबानों पर लिखे इत्रों के नाम चेक करने लगे और जिन मर्तबानों पर नाम हल्का हो गया या उनकी चिट फटी हुई दिखी उनपर नई चिट लगाने लगे। ये उनका हर दिन का काम था जो वो बरसो से बिना नागा के करते आ रहे थे।उनके बारे में मशहूर था कि वो इत्र के जादूगर थे,इत्र की खुशबू भर से वो उसकी तासीर ,प्रकार,असर सब बता देते थे,लोग कहते थे नूर चाचा इत्र बेचते नही इत्र जीते आए हैं।
उन्होंने एक इत्र की शीशी हाथ में ली और जाने उनके मन में क्या आया कि उसे एक तरफ रख दिया और दुकान के नौकर मुन्ना को आवाज़ लगाते हुए बोले "मुन्ना आज ये चंदन वाला इत्र किसी को न देना देना हो तो अंदर के मर्तबान से निकालकर देना या न समझ आए तो मनाही कर देना "
मुन्ना ने हाथ घुमाते हुए चेहरे पर बड़ी ही हैरानी वाले भाव लाते हुए कहा "चाचा क्या बात हो गई कल ही तो ये इत्र इस मर्तबान में डाल कर रखा था आपने" चाचा ने बड़ी ही संजीदगी से जवाब दिया '"लगता है इस इत्र में कुछ बूंदे चमेली के इत्र की पड़ गई है " मुन्ना बड़े इत्मिनान से बोला चाचा आपकी परख की तो लोग कसमे कहते हैं पर आप भी जानते हैं इससे खुशबू में कोई खास फर्क नहीं आता फिर क्यों इतना महँगा इत्र एक तरफ रखना"
चाचा ने इत्र की शीशी एक तरफ रखते हुए कहा "कभी कभी फर्क खुशबू पर नहीं ईमान और ऐतबार पर पड़ता है और मैं अपने ईमान पर ,लोगो के ऐतबार पर कोई फर्क नही डालना चाहता"
मुन्ना चाचा की बात सुनकर मुस्कुरा दिया वो जानता था बरसों से चाचा ने इत्र बेचकर पैसे से ज्यादा इत्र का इल्म  और लोगो का ऐतबार कमाया है ये दुकानदारी का नहीं इत्र से इश्क़ का मामला है और इश्क़ में सौदे का क्या काम...
सोचते सोचते ही मुन्ना ने अपनी टेढ़ी हुई जालीदार टोपी सीधी की और बाहर वाले काउंटर पर इत्र की रंग बिरंगी कतारें जमाने मे चाचा की मदद करने लगा।
मुन्ना ने देखा कि आज चाचा ने इत्र की शीशियों को देखकर मुस्कुरा रहे हैं और न ही गुनगुना रहे हैं यह तक कि उनने चंदन के इत्र को देखकर गाया 'चंदन सा बदन चंचल चितवन' और न ही रजनीगंधा का इतर हाथ मे लेते हुए उनके होंठों में हरकत हुई " रजनीगंधा प्रेम तुम्हारा"...और तो और गुलाब का इत्र हाथो में आकर वापस शेल्फ में चला भी गया पर उनने नही गुनगुनाया "फूल गुलाब का लाखों में हज़ारों में चेहरा जनाब का.."मुन्ना का मुंह हैरत से खुला का खुला रह गया इतने सालों में उसने कभी ऐसा नही देखा था ...
मुन्ना ये तो समझ गया था कि चाचा खोए खोए हैं पर इस अनमनेपन की वजह से वो अनजान था आखिर उसने पूछ ही लिया " क्या बात है चाचा आज आप किसी और ही दुनियामे खोए दिख रहे हो " चाचा ने उसी अनमनेपन से जवाब दिया "हाँ इंतेज़ार कर रहा हूँ उस लड़की के लौट आने का" मुन्ना अवाक होकर बोला कौन लड़की चाचा? चाचा ने कहा "वही जो अपनी कहानी अधूरी छोड़ गई "फिर जैसे खुद ही बोले तुम नही जानते जाने दो इस बात को..मुन्ना भी सर हिलाते हुए वापस काम में लग गया...
ऐसे हर दिन इंतेज़ार करते हुए दिन बीतते जा रहे थे ना तो लड़की आ रही थी न चाचा के दिल को चैन आ रहा था
एक दिन चाचा ने दुकान खोली ही थी कि दूर से वो लड़की आती दिखाई दी नूर चाचा के चेहरे पर जैसे नूर लौट आया होंठों पर बच्चो की सी मुस्कुराहट तैर गई...वो दुकान के अंदर मुन्ना को आवाज़ लगाते हुए बोले"मुन्ना ये सुबह का काम ज़रा तू निपटा मुझे कुछ और काम करना है आज.....
मुन्ना ने अंदर से ही कहा ठीक है चाचा पर बात क्या है चाचा कुछ जवाव दे पाते उसके पहले ही वो लड़की दुकान तक आ गई और उसे देखते ही चाचा ने कहा "आ गई तुम बेटा"  और लड़की फीकी सी हँसी हँसते हुए बोली लगता है मेरा इंतेज़ार कर रहे थे आप? चाचा ने मुस्कुराते हुए कहा "हां बेटा तुम्हारा भी और तुम्हारी इत्र की शीशियां खरीदने की वजह का भी"
लड़की ने पास ही रखा स्टूल अपनी तरफ खींचा और उसपर बैठते हुए बोली अच्छा तो आज इतर बाद में देखूंगी पहले आप मेरी कहानी ही सुन लीजिए शायद मेरी उलझन का कोई हल आप ही बता दें मुझे.."फिर कुछ सोचते हुए लड़की ने कहा पर एक बात का वादा करिए चाचा की मेरी कहानी सुनकर आप मेरे लिए कोई राय नही बनाएंगे क्योंकि आप अनजान नही पर इतने जाने पहचाने भी नही की मै आपको ये सब बताऊ पर क्योंकि आप इत्र का इल्म रखते हैं और ये कहानी सुनना भी चाहते हैं इसलिए मेरा दिल कहता है कि आपको बताने में हर्ज़ नहीं...। ये कहकर वो चाचा की आंखों में सवालिया निगाहों से देखती है और चाचा बस इतना कहते है  इत्मिनान रखो बेटी मैं ना तो तुम्हारे बारे में कोई राय बनाऊंगा और हो सकेगा तो तुम्हारी मदद भी करूँगा....

नैना ने लंबी सांस लेते हुए बोलना शुरू किया आदित्य नाम था उसका इंटरनेट पर मिला था हम दोनों के शौक मिलते थे हम दोनों को ही पढ़ने का शौक था वो कभी कभी कविताएं लिखता भी था ...जीवन से भरी हुई, प्यार से भरी हुई सतरंगी कविताएं और में उसकी लिखी कविताएं पढ़ती थी...अच्छा लगता था उसकी कविताओं में बंधी उम्मीद की पोटली को खोलना ऐसा लगता था जैसे जीवन को नए रंग मिल गए हों ,जैसे जीवन संघर्ष नही उत्सव है और इस उत्सव को उत्साह से मनाना ही इंसान के लिए सबसे ज़रूरी है  बस इसी सब के बीच उससे दोस्ती हो गई..इंटरनेट पर ही बातें होने लगी एक दूसरे के बारे में जानने का मौका मिला नैना दो मिनट रुककर कुछ सोचते हुए बोली आपको कुछ अलग लग रहा होगा ना ये सुनकर तो चाचा ने मुस्कुराते हुए कहा नही नैना बेटा ऐसा कुछ नही ऐसी दोस्तियां हमारे ज़माने में भी हुआ करती थी पेन फ्रेंड होते थे उस ज़माने में और लोग ऐसे ही अनजान लोगों को खत लिखकर दोस्ती किया करते थे बस तरीका बदल गया अब नए जमाने मे. चाचा की बात सुनकर नैना मुस्कुरा दी और इस बीच चाचा ने 2 चाय का आर्डर भी दे दिया चाय की चुस्की लेते हुए नैना ने आगे कहा आदित्य से कई दिनों तक छोटी मोटी बातें होती रही पर धीरे धीरे बारें लंबी होती गई और जुड़ाव गहरा होता गया बातों बातों में ही पता चला कि इलाहाबाद का रहने वाला है वो बैंगलोर में एक फाइनेंशियल कंपनी में मैनेजर की पोस्ट पर था  । इलाहाबाद में बीते बचपन और गंगा नदी के सानिध्य का ही असर रहा होगा जो वो लिखने पढ़ने का शौकीन था और मेरा पढ़ने का शौकीन होना शायद मेरी  यहां भोपाल में हुई परवरिश का नतीजा है मैंने अपना सारा बचपन पुराने भोपाल के पटियों के किस्से सुनते और भोपाल मेले से लेकर, रविन्द्र भवन,गौहर महल छोटे बड़े तालाब के आस पास होने वाले मुशायरो को सुनकर बिताया।नैना की बातें सुनकर जैसे चाचा भी पुराने दिनों में खो गए और मुस्कुराने लगे नैना ने आगे कहा हमारी दोस्ती ऐसे ही बढ़ती जा रही थी कविताओं से शुरू हुई बातें कब सुख दुख की बातें बताने और फिर दिल धड़कने ,दिल की गिरहें खोलने तक जा पहुंची हमें पता ही नही चला हम दोनों एक दूसरे के लिए जुड़ाव महसूस करने लगे और ये धीरे धीरे हम दोनों की बातों में झलकने लगा।इंटरनेट से शुरू हुई बातें फ़ोन पर रोज़ होने वाली बातों में बदल गई शायद इश्क़ हमारी ज़िन्दगियों में चुपके से दबे पांव आने लगा था
बस हमने इज़हार नही किया था या शायद हम खुद ही उसके आने को महसूस नही कर पाए थे।
फिर एक दिन उसने मुझसे कहा कि वो अपनी बुआ के घर भोपाल आ रहा है 2,3 दिन के लिए क्या मैं उससे मिलना चाहूंगी और मैंने उसे हाँ कर दिया पर मैं उससे ज्यादा देर नही मिल सकती थी तो उससे कहा कि मैं  कॉलेज जाते समय उससे स्टेशन पर ही मिलने आ जाउंगी वो स्टेशन पर आया हम दोनों मिले थोड़ी देर बात करने के बाद हम दोनों अपने अपने रास्ते चल दिए। बस यही शायद वो समय था जब हमें इश्क़ का अहसास हुआ हमने अपने अपने दिल मे एक दूसरे के लिए प्यार महसूस किया जाने से पहले उसने एक बार और मुझसे मिलने के लिए पूछा और मैने भी हाँ कह दिया।
हम बड़े तालाब के किनारे बने रेस्टॉरेंट में मिले पिंक कलर के शर्ट में वो मुझे बहुत ही प्यारा और मासूम लग रहा था चश्मे के पीछे से झांकती उसकी गहरी नीली आंखें बेहद खूबसूरत लगी मुझे, तालाब के पानी का नीलापन जैसे उनमे उतर आया था उसने धीरे से मेरे हाथों को पकड़ते हुए कहा - नैना में तुमसे प्यार करने लगा हूँ  और अपनी सारी जिंदगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूँ क्या तुम ज़िन्दगी भर मेरा साथ देना चाहोगी?
मैं कुछ समझ नहीं सकी और बस इतना कह पाई की आदित्य प्यार शायद मैं भी करने लगी हूँ तुमसे पर मुझे सोचने के लिए थोड़ा टाइम चाहिए ।उसने धीरे से मेरा हाथ दबाया और मुस्कुराते हुए कहा तुम पूरा टाइम लो नैना ,ये ज़िन्दगी का सवाल है अच्छे से सोचसमझकर फैसला लेना क्योंकि प्यार कर लेना अलग बात है पर उसे निभाने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए होती है। एर उसने पूछा क्या एक चीज़ मांग सकता हूँ तुमसे ?मना तो नहीं करोगी मैंने आंखों में तैरते सवालों के साथ उसे देखा उसने कहा जाने से पहले एक बार तुम्हे गले लगाना चाहता हूँ उसके बाद तुम जो भी फैसला लोगों मुझे मंज़ूर होगा ।उसकी बात सुनकर मैं धीरे से उसके गले से लग गई ।उसके इत्र की खुशबू मुझे बेहद अच्छी लगी ऐसा लग जैसे बरसो से कस्तूरी की खुशबू के लिए भटकते हिरण को कस्तूरी मिल गई हो और उसी समय मुझे याद आया कि उसने कभी कहा था कि उसे इत्र का बेहद शौक है भोपाल के चौक बाजार से न जाने कितने ही इत्र उसने खरीदे थे और भी जहां जाता उस शहर में अगर इतर की कोई फेमस दुकान होती तो वहाँ से इत्र ज़रूर लाता था
नैना ने खोई खोई सी आवाज़ मे कहा वो अलग ही अहसास था जैसे मन की शांति का अहसास हो मैंने उसी समय आदित्य के साथ ज़िन्दगी बिताने के लिए मन बनाना शुरू कर दिया था ।बस फिर हम दोनों उस रेस्टॉरेंट से बाहर आए आदित्य ने जाते जाते एक बार मेरा हाथ अपने हाथों में लिया और मुस्कुराते हुए कहा मुझे तुम्हारे जवाब का इंतज़ार रहेगा नैना , मन तो हुआ कि कह दूँ की मेरा जवाब हां है पर जाने क्यों खुद को  ये सोचकर रोक लिया की 1,2 दिन में बता दूंगी।पहले खुद ज़माने से लड़ने और इश्क़ को निभा सकने के लिए तैयार हो जाऊं
आदित्य चला गया और मैं मन ही मन सोचने लगी कि कैसे उसे बताउंगी की में भी उससे प्यार करने लगी हूँ वो बंगलोर पहुंचा उस दौरान मेरी उससे बस एक बार बात हुई  वो मुझे बातों में बहुत खुश लगा उसने मुझसे पूछा भी की क्या नैन कुछ सोच पर मैन उसे कहा कि तुम घर पहुंचो टैब तुम्हे बताउंगी।फिर 2 दिन बाद मैंने पूरी तैयारी करके एक एक शब्द मन में रटकर उसे फ़ोन किया, काफी देर घंटी जाने के बाद जब कॉल रिसीव किया तो दूसरी तरफ से एक अनजानी आवाज़ ने कहा मैं समीर बोल रहा हूँ आदित्य का रूममेट हूँ आदित्य ने बताया था तुम्हारे बारे में इतना कहकर वो चुप हो गया मैंने बैचेनी से कहा है समीर तुमने फ़ोन क्यों रिसीव किया है आदित्य कहाँ है अच्छा ठीक हैं आदित्य से कहना नैना का फ़ोन था...
समीर ने रुआंसी आवाज़ में कहा मैं नही बात सकूँगा नैना बंगलोर आने के बाद टेक्सी से घर आते टाइम उसका एक्सीडेंट हो गया चोटें बहुत गहरी थी अस्पताल ले जाते हुए रास्ते मे ही..जाते वक्त उसके होंठो पर तुम्हारा नाम...ये कहते कहते वो फूट फूटकर रोने लगा...आगे उसने क्या कहा न तो मुझे सुनाई दिया और ना ही कुछ सुनने की मुझमे हिम्मत थी...ये कहते कहते नैना की आंखों में आंसू आ गए चाचा ने अपनी आंखों में आई नमी छुपाते हुए कहा या अल्लाह ये क्या किया तूने...नैना ने सुबकते हुए कहा वो  खुशबू अब भी मेरे साथ है चाचा सोते जागते वो खुशबू जैसे मेरा पीछा करती है रात दिन बस ये खयाल खाए जाता है कि काश मैंने उसके जाने से पहले अपने इश्क़ का इज़हार कर दिया होता काश उसे रोक लिया होता...
नैना की बातें सुनकर चाचा अचानक कुछ सोचते हुए कहते हैं तो इतने दिनों से तुम वो खुशबू ढूंढने यहाँ... नैना से आंसू पोंछते हुए कहा हाँ चाचा मैं पिछले चार साल से वो खुशबू ढूंढ रही हूँ न जाने कितनी दुकानों पर इतर ढूंढे पर वो खुशबू कभी नहीं मिली कभी नहीं..
चाचा ने पानी का ग्लास उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा नैना मत ढूंढो उस खुशबू को वो अब तुम्हे नही मिलेगी नैना ने आश्चर्य से उनकी तरफ देखा तो चाचा बोले हैं बेटा हर खुशबू हर इंसान पर अलग असर करती है कभी सोचा है गुलाब का वही इत्र कही मज़ार पर अलग महसूस होता है और हाथों में लेकर सूंघने पर अलग  और अलग अलग इंसानो पर अलग ऐसा क्यों? क्योंकि इंसान खुशबू नही चुनता खुशबुएँ इंसान चुनती है वो अपनी महक अलग अलग जगह अलग ढंग से फैलाती है..
ये खुशबुओं की दुनिया का उसूल है बेटा वो सबके साथ अलग होती है हर देह पर अलग, हर जगह पर अलग, हम ज़िन्दगी भर इस मुगालते में रहते हैं कि हमने खुशबू चुनी पर हम खुशबू नही चुनते खुशबू अपने अलग ढंग से महकने के लिए हमें चुनती है...
आदित्य के पास जो खुशबू तुम्हे महसूस हुई  वो सिर्फ इतर नही था उसमें उसका इश्क़ भी था उसकी रूह भी थी अब कोई इत्र उस प्रेमगन्ध को उस देहगंध को वापस नहीं ला सकता...उस खुशबू ने आदित्य को चुना था इसलिए वो गंध तुम्हारे मन में घर कर गई आज भी तुम उसे भूल नही सकी..
तुम उस खुशबू को मत खोजो अब ...क्योंकि वो अब वापस नहीं आ सकती जानता हूँ तुम भूल नही सकती पर अब छोड़ दो उसे आज़ाद कर दो उस रूह को, उस इश्क़ को...उस खुशबू को...क्योंकि आदित्य के साथ वो देहगंध जा चुकी हैं... ये सुनकर नैना ज़ोर ज़ोर से रोने लगी चाचा ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा मुक्त कर दो बेटा उसे ,मत ढूंढती फिरो उस खुशबू को इसी में तुम्हारी भलाई है और आदित्य की रूह के लिए भी यही मुनासिब है...
जा चुकी खुशबू को ढूंढोगी तो दर्द के सिवा कुछ नही मिलेगा कुछ भी नहीं