देकर के ज़ख्म ख़ुद भी तो मरहम नहीं लेते
जो बीच राह छोड़ते हैं वो भी खुश नहीं रहते
इश्क़ की दीवारों में सेंध मारकर
सोने के महलों में भी बैचेन होते हैं
खून के आंसू रुलाकर वो
दर्द की बात कहते हैं
उनके सज़दे भी अनसुने
उनकी दुआएं भी बेअसर
उनकी पूजा भी अधूरी
उनके दीपक भी चमक भर
किसी की दुनिया जलाकर ख़ुदा का कहर वो सहते
जो बीच राह छोड़ते हैं वो भी खुश नहीं रहते
वो ज़माने से लड़ जाने की कसम खाकर
प्यार के झूठ का रंग चढ़ाकर
ले जाते है हर रंग ज़िन्दगी से खींचकर
बेरंग कर गए जो सब्ज़बाग दिखाकर
वो रंगमहल में भी चले जाएं तो जाए
दुनिया की हर शय अपने कदमों में बिछाए
ख्वाबों का कारोबार करें ख्वाब सजा ले
अंधेरों की दुनिया का बद्दुआ का असर है
ख्वाब की दुनिया मे भी बेधड़क नहीं रहते
जो बीच राह छोड़ते हैं वो भी खुश नहीं रहते।
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