Monday, February 18, 2013

ये शहर पराया लगता है


अपनी बिखरी यादों का हर ज़र्रा हमसाया लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है

वो लम्हे जो पीछे छूट गए
वो अपने जो हमसे रूठ गए
वो गाँव जो हमने देखे ना
वो शहर जो आकर बीत गए
सपनो की दुनिया में उनका मंच सजाया लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है


वो बरखा जो तुमसे सावन थी
सर्दी की धूप जो मनभावन थी
वो बसंत जो मन का मीत बना
वो फागुन जो संगीत बना
मन को ना भाए कुछ भी ,हर मौसम बोराया लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है

वो कलियाँ जो हमको प्यारी थी
जिन पंछियों से यारी थी
वो चाँद था जिससे प्रेम बढ़ा
वो लहरें जिनसे था सम्बन्ध घना
कतरे से लेकर ईश्वर तक अब सब कुछ ज़ाया (बेकार ) लगता है
जब याद तुम्हारी आती है ये शहर पराया लगता है

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Wednesday, February 6, 2013

बेटियों की शादी और मायका

मायका यानी माँ का घर
ससुराल यानी  पति का घर
बड़ा दोहरापन है जिंदगियों में
बचपन से लेकर शादी तक
हर लड़की को एक पराये -अपने घर
का दिया जाता है आश्वासन
घर जो एसा  होगा जहा वो
ना पराया धन होगी ना परायी अमानत
ना उसे वहा से कही जाना होगा
न अपने अस्तित्व का संघर्ष करना होगा
क्युकी वो  उसका अपना घर होगा

पर उस घर में जाने के बाद
उसे अहसास होता है
वो घर ,उसमे रहने वाले हर इंसान का है
यहाँ तक की घर के पालतुओं का भी
पर वो घर उसका नहीं है ......

पराई बेटी है बात छुपाकर रखो
कल की आई लड़की है सलाह न लो

सारे कर्तव्यों का ज्ञान करा दो इसे
हर बात पर हाँ कह्ना सिखा दो इसे
अधिकार मांगे तो बात को हवा मत देना
समानता मांगे एसी वजह मत देना

ज्यादा अपनापन ना दो सर चढ़ जाएगी
ज्यादा छूट मत दो बेटा लेकर उड़ जाएगी
इसे प्यार की नहीं धिक्कार की जरुरत है
हमे इसकी नहीं इसे परिवार की जरुरत है

तेरा न कोई आसरा ना सहारा हमारे सिवा
अपने मन की न करना क्यूंकि हम सर्वेसर्वा
रंगीन सपना न देख तोड़ दिया जाएगा
क्रोध  आ गया तो तुझे छोड़ दिया जाएगा

शायद इसीलिए स्त्रिया
 इन्तेजार करती है बेटी की शादी का
ताकी जब बेटी अपने जन्म-घर  आए
तो कहे- "मायके" जा रही हू
कोई तो हो जो माँ को अहसास दिलाए
हा ये घर उसका है उसका अपना घर
उसकी बेटी का मायका ...... 


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