मुझे जानना चाहेंगे ?

क्या लिखु अपने विषय में,शब्द केसे में चुनु ? मै कनु....
कुछ वर्षो पहले कॉलेज की रेगिंग  में ये अपने बारे में कविता लिखने बोला गया था और तभी  ये मेरी कविता की पहली पंक्ति थी और आज भी  यही आलम है...क्या लिखु?
लिखने का शौक है मुझे और इसी शौक ने मुझे ब्लॉग लिखने के लिए प्रेरित किया.जब जब मन करता है अपने मन के कोने से कुछ भावनाओं को यहाँ उकेर देती हू.शब्दों की चित्रकारी से प्यार है मुझे पर अभी मेरे शब्द चित्रकारी जेसे दिल को लगने वाले नहीं बन पड़ते...बस इसी अनंत प्रयास  में हू की कुछ अच्छा पढने लायक  लिख सकू.....

मैं क्या हूँ? बस कनु हूँ......

बहते हुए सागर की लहर ही तरह हूँ
मस्ताने से मौसम मैं सहर की तरह हूँ।

जितना दर्द दोगे उतना जयादा मह्कुंगी
फूलों के बिखरे हुए परिमल की तरह हूँ।

जिंदगी मैं नए नए दौर से गुजरकर,
हर मोड़ पर जेसे किसी पत्थर की तरह हू।

अपनी खूबियों और खामियों के हिसाब से ही पाओगे मुझसे
सागर मंथन मैं निकले हुए अमृत और गरल की तरह हूँ ।

ख़ुद का चेहरा मुझमे देखना चाहो तो देख लो
हर अक्स को ख़ुद मैं समां लू उस दर्पण की तरह हूँ।