Wednesday, May 15, 2013

साथ नहीं छोडूंगी मैं तन्हाई में

कैरी की चटनी के जैसा खट्टा मीठा जीवन है
खरबूजे के पन्ने की तरह स्वाद बदलता मौसम है

तुम शक्कर जैसे मीठे , मैं नमक सी खारी हूँ
तुम रूककर थमकर चलते मैं बहने की तैयारी हूँ

तुम आते रहना ख्वाबों में, मैं सारा जहाँ भुला दूंगी
तुम जब गुस्सा कर लोगे मैं भोलापन बिखरा दूंगी


तुम हाथो में रखना एक छड़ी मुसीबतें भगाने को
और मैं बचपना साथ रखूंगी ढेर मुसीबत लाने को


तुम थक जाना शाम ढले तक आवारा बादल जैसे
मैं रख लुंगी छुपाकर तुम्हे आँखों के काजल जैसे

जब संघर्षों में आँख तुम्हारी हो जाए पथराई सी
मैं चल दूंगी संग तुम्हारे मदमाती पुरवाई सी

तुम पल में तोला,पल में माशा ढेरो रंग बदल लेना
मेरी ऊँगली से बने चित्रों में थोड़े से रंग भर देना


तुम बौरा जाना कभी कभी तकलीफों की परछाई से
मैं निकाल लुंगी तुमको बाहर अँधेरे की गहराई से

जीवन की आपाधापी में चैन नहीं अमराई में
पर निश्चय ही साथ नहीं छोडूंगी मैं तन्हाई में
 


 आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

8 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...


जीवन में अलग रस का आभास कराती रचना
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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Shalini kaushik said...

बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .मन को छू गयी आभार . कायरता की ओर बढ़ रहा आदमी ..

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... प्रेम के शब्दों से रची ... मधुरत जीवन के लम्हों का टच लिए ... हर छंद लाजवाब ... बहुत उम्दा ...

सदा said...

क्‍या बात है .... लाजवाब प्रस्‍तुति

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन


सादर

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत बढ़िया

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर भावमयी रचना...

प्रशांत मलिक said...

nice poem