Thursday, January 10, 2013

शर्तों वाला प्यार भाग 2


कहानी के पिछले हिस्से में हमने जाना निशा के बारे में ..कैसे वो दिल्ली आई ....

भाग 2

दॊ इंसान कभी एक जैसे नहीं होते वैसे तो कहा जाता है सबका कोई न कोई हमशक्ल होता है ,पर हमशक्ल भी एक जैसे नहीं होते .और सारी दिखने वाली बाते शायद एक सी हो भी सकती है पर इंसानी फितरत और हर बात को लेकर उनका नजरिया अलग अलग होता है यही कुछ अनदेखी पर सबसे ज्यादा जरूरी चीज़ें हर इंसान को एक दुसरे से अलग बनाती है ।

प्यार के बारे में अलग अलग नजरिया ही अंशुल और निशा को एक दूसरे से अलग खड़ा करता था वैसे तो दोनों में कोई भी बात एक जैसी नहीं थी आदतों से लेकर व्यवहार तक पर, उन दोनों को प्यार हो गया अब ये क्यों हुआ कैसे हुआ ये वो दोनों भी ठीक से समझ नहीं पाए  कभी।  हाँ कहानी की शुरुवात कैसे हुई ये अंशुल जानता था और निशा कभी जान नहीं पाई . अपनी कई कोशिशो के बाद भी कभी नहीं .

अंशुल जबलपुर  का रहने वाला था और मुंबई में एक सॉफ्टवेयर कम्पनी में काम करता था किस प्रोसेस में था क्या काम करता था ये कहना थोडा मुश्किल सा है पर हाँजिस भी प्रोसेस में था उसकी नाईट शिफ्ट ज्यादा हुआ करती थी वो अपनी मर्जी से नाईट शिफ्ट ज्यादा लिया करता था कहता था उसे पैसे से बहुत प्यार है और नाईट
शिफ्ट के लिए मिलने वाले एक्स्ट्रा अलाऊँस उसे अपनी और खींचते थे . वो मानता था की पैसा हो तो इंसान कुछ भी कर सकता है सब कुछ खरीद सकता था ...अंशुल की ये सोच ऐसे ही नहीं बनी थी जिंदगी के  थपेड़ो ने खुद उसे सब सिखाया था जो कहानिया आम लोग सीरियल या टी वी पर या फिल्मो में देखते हैं वो उसकी जिंदगी की असली कहानी थी .

कम उम्र में ही उसने अपने पापा को खो दिया था और जिंदगी उसके सामने बाहें फेलाए नहीं परीक्षाओं के पुलिंदे लिए खड़ी थी जबलपुर से मुंबई तक का सफ़र उसके लिए आसान नहीं था चार साल रात दिन एक करके काम किया था उसने . वैसे देखा जाए तो खाते पीते परिवार का हिस्सा था वो . चाचा ताऊ ,  भाई बहनों से भरा पूरा परिवार था उसका पर पापा के गुजर जाने के बाद जैसे सब बिखर गया ...अपनी मनचाही पढाई से पीछे हटना पड़ा उसे , और माँ और छोटी बहन को छोड़कर वो मुंबई आ गया एक अच्छे भविष्य और ढेर सारे पैसे की तलाश में  और इस आस में की जो उसके साथ हुआ वो छोटे भाइयों के साथ न हो।
 मुंबई ने उसे पैसा तो दिया पर साथ में दिया गहरा अकेलापन और अकेलेप्न को दूर करने के लिए दी कुछ बुरी कही जाने वाली आदतें वो चेन स्मोकर बन गया ,शराब के बिना उसे नींद नहीं आती थी , और सिगरेट शराब सब मिलकर भी ये अकेलापन दूर नहीं कर पाते  थे। हँसता खेलता लोगो से मिलता पर  अन्दर से बिखरा सा अंशुल भुरभुरी सी जिंदगी जी रहा था .  कभी कभी उसे लगता अपने दोस्तों की तरह वो भी खो जाए मुंबई की रंगरलियों में ..पर बढ़ते कदम न जाने क्यों थम जाते .....
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 बात है बड़ी अजीब की दिल्ली  में लडकी  मुंबई में लड़का दोनों का दूर दूर तक कनेक्शन नहीं  तो ये मिले कैसे? अरे ! पर मैंने कब कहा की ये मिले फिर  हुआप्यार ....सोशल नेटवर्किंग का ज़माना है ...और सच मानिये क्राइम पेट्रोल पर जोसोशल नेटवर्किंग  वाला प्यार दिखाया जाता है वो मनगढ़त कहानिया नहीं होती बस हमारी कहानी में अंतर इतना है की इसमें क्राइम नहीं हुआ ....

वेसे सोशल  नेटवर्किंग वाला प्यार आते आते चिट्ठी पत्री वाला पनघट वाला प्रेम दूर से बेठा अपनी नई पीढ़ी को  आशीष देता होगा  जैसे पुराना  बरगद हवा से उड़कर  गए बीजो से  उगने वाले कोपलो को आशीष देता होगा ,दुआ करता होगा की जहरीले पोधो से बचकर  हर कोपल कोपल पनप जाए अपना नया अस्तित्व बनाए .... हर कोपल नहीं पनपती क्यूंकि कहते हैं बरगद  अपने आस पास कुछ  नहीं पनपने  देता पर हर बरगद चाहता जरुर होगा की उसके वंशज पनपे ...... ऐसे ही चिट्ठी पत्री वाला  प्यार  कहीं से सोशल  नेटवर्किंग वाले प्यार को पनपने का आशीर्वाद देता होगा .....

अंशुल ने निशा को मेसेज किया माफ़ी मांगी और निशा ने माफ़ कर दिया कहानी ज़रा फ़िल्मी है पर फिल्में हवा में नहीं बनती और लेखकों को  दुनिया का प्राणी मान लेना भी सही नहीं वो भी पर्सनल एक्सपेरिएंस या आस पास देखा सुना ही लिखते है बस थोडा सा कल्पना का तड़का लगाकर उनमे  से कुछ परदे पर उतर जाती हैं कुछ पन्नो पर और कुछ बस हवा में तेरती है ......पर सच तो ये है की मोहब्बतें हवाओं में नहीं तेरती न ही सपनो वाली रूमानी दुनिया का कोई अस्तित्व होता है। हीरो के वाइलिन बजाने  हाथ फेलाकर बुलाने  और
हीरोइन के दोड़े चले आने के सीन सबने देखे है पर असल दुनिया में प्यार ऐसा  होता नहीं या  शायद सबका प्यार ऐसा  नहीं होता पर अलग ढंग के प्यार वाली एक केटेगरी होती है और निशा-अंशुल का प्यार उसी में आता है ...जैसे आप मन में माने बेठे हो की तपस्या करने से कोई भगवान साक्षात् दर्शन नहीं देते और
साथ साथ तपस्या का थोडा नाटक  भी करते हो और ? और भक्क करके भगवान  आ खड़े हो सामने की ले बेटा मेरी परीक्षा ले रहा था ना ,नहीं मानता था न की मैं आता हूँ ले अब आ गया अब संभाल  मांग क्या मांगता है ...
बस ऐसे ही प्यार आया इनकी जिंदगियों में .. हमें तो हो ही नहीं सकता पर आखिर सामने आ खड़ा हुआ और  हुआ तो गजब का हुआ .....
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मेसेज धीरे धीरे बढते गए कभी कभी निशा जवाब भी देने लगी और ऐसे  ही गाहे बगाहे बातें भी होने लगी और ऐसे ही शुरुवाती परिचय  हुआ दोनों का एक दुसरे से।ऐसे ही एक कॉल के दौरान अंशुल  ने निशा से कहा " तुम बहुत सुन्दर हो" सुनकर निशा को हेरानी हुई आखिर अंशुल को कैसे पता उसने कब देखा उसे ? उसने ये बात अंशुल से भी पूछी " आपको कैसे पता ? सुनकर अंशुल सकपका गया फिर बोल एक सोशल नेटवर्किंग साईट पर उसने निशा को ढूंढा पर ये ढूंढा कैसे गया ये सच में बड़ा कन्फयूजिंग था क्यूंकि अंशुल ने उसे एक बार ये भी बताया की  कॉल के समय उसे किसी अर्पिता से बात नहीं करनी थी वो एक ब्लेंक कॉल था और एक बार ये भी की निशा का नंबर  पास निशा  के रिज्युमे से आया और रिज्युमे उसे कैसे मिला ये बात वो गोल कर गया
इसलिए कहानी के शुरू में ही कहा गया है की निशा को कभी कभी पता नहीं चला की आखिर अंशुल उस तक पहुंचा कैसे ...( ज्यादा डिटेल में जाने का फायदा नहीं क्यूंकि इस कहानी को उपन्यास में बदल देने का अभी खास विचार नहीं है )

और इस तरह की बातों के बीच निशा ने नाराजगी में अंशुल को झूठा  और चालबाज भी समझा ,नाराज़गी हुई ,रूठना मनाना सब हुआ पर फिर सब ठीक भी हुआ ( ज्यादा डिटेल के लिए उपन्यास का इंतज़ार करें) और थोड़ी दोस्ती (निशा की तरफ से ) हुई अब अंशुल इसे दोस्ती मानता नहीं था  तो ऐसे ही किसी दिन अंशुल ने निशा से प्यार का इजहार  किया (मिलकर नहीं फ़ोन पर ही ) कितना सच है न की इंसान अगर प्यार को बुलाना ही चाहे तो वो कहीं न कहीं से चला ही आता है पर निशा ने दरवाज़े बंद कर दिए उसे तो दोस्ती से प्यारा कोई रिश्ता था ही नहीं दुनिया में , ऊपर से गजब की कन्फ्यूज्ड  लड़की उसने मना  कर दिया कहीं घर   वालों  को दुःख न हो ,प्यार के चक्कर में दोस्ती भी न चली जाए जेसे जाने कितने सवाल उसके मन में थे और  बड़ी
बात उसे प्यार था ही नहीं और अंशुल की बातों  से उसे हमेशा यही लगा की अंशुल के लिए पैसा ही सब कुछ है पैसा है तो सब है और पैसे से सब ख़रीदा जा सकता है प्यार भी ........
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अकेलापन इंसान को सच में अन्दर से तोड़ देता है और यही बात निशा को अन्दर से तोड़ रही थी अपने न करने के कारन   उसे इस बात का दुःख भी था की उसने अंशुल का दिल दुखाया है और अंशुल उसका दोस्त था उसे  वो उसे दुखी नहीं करना चाहती थी और जेसा की कहानी में पहले  कहा गया है की कभी कभी प्यार इसलिए हो जाता है क्यूंकि आपको उसकी जरुरत  होती है ठीक इसलिए  इनदोनों को प्यार हुआ नहीं इन्होने प्यार कर लिया आखिर अपनी सारी दुविधा के बाद निशा ने अंशुल के  प्यार को हा कह दिया ,पर इन दोनों के साथ एक थी प्रॉब्लम थी दोनों लव मेरिज में विश्वास नहीं करते थे   करना नहीं चाहते थे ....
फाइनली दोनों ने प्यार  का एक्सपेरिमेंट करने का मन बनाया  पर एक शर्त के साथ  ( हाँ हाँ जानती  हु की अब पढने वालो के दिल  में ज़रा चैन आया की अब पता चलेगा  आखिर शर्त थी  क्या  ) और  शर्त थी की इस प्यार में शादी  की   बात नहीं होगी प्यार सच्चा होगा कोई छल कपट नहीं होगा पर शादी के लिए दोनों में से कोई एक दुसरे को मजबूर   नहीं करेगा दोनों अपने परिवार  वालो की इच्छा  को प्यार से ज्यादा अहमियत देंगे  ...ये शर्त  वाली बात हुई उस दिन दोनों के मन में क्या था ये पता नहीं पर ये खरा सच है की ये प्यार सच में सच्चा और  पवित्र साबित   हुआ ...........

ये  बिलकुल मत  सोचना  की छि ! ये कोई कहानी है दो छिछोरे से लोगो ने डर के कारण प्यार भी नहीं निभाया क्यूंकि प्यार सिर्फ  पाना नहीं होता और ये कहानी भी यहाँ ख़त्म  नहीं हुई  यहाँ से शुरू हुई और  आगे भी बढ़ी ......तो आगे क्या हुआ प्यार शादी में बदल गया या मिसाल में या कहीं चुपचाप  छिप  गया दुनिया की  नजरो से ....

(ये कहानी तो ख़त्म  होने का नाम ही नहीं ले  रही सच ये भी है की कहीं जब निशा और अंशुल है तो कहानी ख़त्म कैसे हो सकती है ...  लगता है उपन्यास ही बन जाएगा .........)

आगे अगले  भाग में
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

5 comments:

कविता रावत said...

सोशल नेटवर्किंग जैसा प्यार का ही जमाना है अब ..बहुत बढ़िया

प्रवीण पाण्डेय said...

काश विचारों की कोई गति या सीमा होती..

Unknown said...

बेहतरीन रचना

Unknown said...

बेहतरीन रचना

Smart Indian said...

क़िस्सा, कथा, कहानी, उपन्यास या यथार्थ, अलग न होते हुए भी अलग से इस वृत्तान्त की अगली कड़ी का इंतज़ार है।