हर बार नए ढंग से मिलने के लिए
एक बार फिर से अजनबी हो जाए चलो
तुम मुझे अपने दिल के कोने में हर बार जगह देना
और मैं तुम्हारी यादों में जुदाई का दौर सह लूंगी
सारी उम्मीदों को ताक पर रखकर
बस मोहब्बत रखे दरमियाँ और फ़ना हो जाए चलो
एक बार फिर से अजनबी हो जाए चलो
तुम हर बार मुझे नए अंदाज़ में देखना
जैसे पहली बार सफ़र में मिले हो हम दोनों
में तुम्हारी हर नजर का नयापन महसूस करुँगी
सफ़र की थकान मिटाने के लिए
गैर बन जाए और कुछ दिन जुदा हो जाए चलो
एक बार फिर से अजनबी हो जाए चलो
एक बार फिर चलेंगे अकेले जिंदगी की राहों पर
तुम कहीं मिल जाओ तो बस अजनबी मुस्कान दे देना
मै ठीक वेसे ही मुस्कुरा दूंगी जेसे मुस्कुराई थी पहली मुलाकात पर
इसी तरह अपनी ठहरी हुई जिंदगी में,प्रवाह ले आए चलो
एक बार फिर से अजनबी हो जाए चलो
भूल जाए एक बार की हम हमसफ़र है
न हक जताए न हकीकत का सामना करें
जितनी मंजिले साथ चले वो भुला दे कुछ दिन
सब खताएं माफ़ करके बेखता हो जाए चलो
एक बार फिर से अजनबी हो जाए चलो........
11 comments:
aah se waah !!! kash ki aisa ho jaaye ek baar phir se ajanbai ban jae!!
Meaningful. Liked. :-)
thanks to murali and kunnu
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
आभार
इस कविता से हमें पुराना गाना याद आ गया, "चलो इक बार फ़िर से अजनबी बन जायें हम दोनो". किसी को अजनबी बन कर मिलने में लम्बे समय तक साथ रहने की थकान की कड़वाहट छुपी होती है या बोरियत, तो क्या नया कहने से ही हम अजनबी बन पाते हैं?
सही कहा आपने सुनील जी चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों बड़ा सुरीला गाना है वो.
सही है अजनबी बन जाने से पुरानी कडवाहटें मिटाना आसान नहीं होता पर उम्मीद पर दुनिया टिकी है शायद ये अजनबीपन जिंदगी में अपनेपन को बढ़ा दे
Beautiful and as everyone said, reminded me of, 'Chalo ek baar fir se ajnaaabi so jaye hum dono'
Great Creation...
saru ji ye galti se hua hai ya aapka trick aapne ajnabi ko sula diya.very nice meaning change but isse poore thought ko naya angle mil gaya......
बहुत सुंदर रचना .. उस मोड़ से शुरू करें फिर से ये ज़िन्दगी हर शय जहाँ हसीन थी, हम तुम थे अजनबी ...
dhanyawad rajneesh ji
I need to say, as very much as I enjoyed reading what you had to express, I couldnt support but lose interest following a while. Its as should you had a good grasp on the subject matter matter, but you forgot to include your readers. Perhaps you should think about this from more than one angle. Or perhaps you shouldnt generalise so much. Its far better if you take into consideration what others may have to say rather than just going for the gut reaction for the theme. Consider adjusting your own thought procedure and giving other people who may study this the benefit of the doubt.
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