कल शाम को एक घटना हुई मै बस में ऑफिस से घर वापस जा रही थी मुझे बस में सीट मिल गई और मै बैठ गई कुछ ही देर बाद एक महिला बस में चढ़ी मेरी नजर काफी देर तक उन पर नहीं पड़ी थोड़ी देर बाद उनने मुझसे पूछा आप कहा उतरेंगी ?मैंने कहा ऐरोली ,तभी मेरी नजर उनपर पड़ी मुझे लगा वो गर्भवती है मैंने उनसे कहा आप बैठ जाइये जैसे ही में सीट से उठी एक महिला वहा बैठ गई और जब मैंने उनसे कहा मैंने ये सीट उनके लिए ख़ाली कि है तो उसने एसे अनदेखा कर दिया जैसे सुना ही ना हो तभी एक वृद्ध अंकल उठे और उस गर्भवती महिला से बेठने को कहा .वेसे मुंबई में एसी हृदयहीनता देखने नहीं मिलती लोग आपस में मिल जुलकर सफ़र करते है यहाँ के लोगो कि सहयोग भावना कि में कायल हु पर कल जाने क्यों असा हुआ .उस बस में कई महिलाएं थी ,कई जवान पुरुष थे जो उस महिला को स्थान दे सकते थे पर उन अंकल को सीट से उठाना पड़ा .कई बार देखा महिला सीट पर बेठे वृद्धों को भी महिलाएं उठा देती है ये कहकर कि ये महिला सीट है आखिर कोमल हृदय कि मानी जाने वाली महिलाओं के दिल एसे कठोर क्यों हो जाते है समझ नहीं आता.इसीलिए ये विचार आया कि हम अपना संताप क्यों सुनाए?और किसे सुनाए?जब संताप का कारन भी हम निवारण भी हम और भोगी भी हम ही है.
इस बात का एक पहलु देखा जाए तो लगता है हर नारी दुखी है पर दूसरा पहलु यह भी है कि कई बार नारी को दुखी करने वाली भी नारी है.
सास दुखी है क्यूंकि बहु ने आकर बेटे के जीवन में स्थान ले लिया ,बहु दुखी है क्यूंकि सास अपना अधिकार ना छोड़ने के चक्कर में बहु बेटे के बीच गलतफहमियां पैदा करती है ,बहिन दुखी है क्यूंकि भाई अब ज्यादा ध्यान नहीं देता,दुःख सिर्फ यहाँ ही नहीं है अजन्मी बेटी को दुःख है कि वो जन्म नहीं ले पाई,जो जनम गई उसे दुःख है कि उसे प्यार नहीं मिला, जिसे प्यार मिला वो दुखी है कि भाई जितनी स्वतंत्रता नहीं दी गई .जिन्हें स्वतंत्रता दी गई वो ससुराल जाकर दुखी है कि बहु बेटी में अंतर किया जा रहा है , दहेज़ माँगा जा रहा है,जिनके साथ ये सब नहीं हुआ वो दुखी है कि कार्यालय में पुरुषों के सामान अधिकार नहीं दिए गए,जो इस सब से बच गई वो आरक्षण का मुद्दा उठा उठा कर दुखी है...ऐसा लगता है हर नारी दुखी है.कई नारियां तो इनमे से कई समस्याओं को लेकर दुखी है .
पर इस सब कि जड़ में देखा जाए दिखाई देगा कि जड़ में पुरषों के साथ नारी भी है .बेटी नहीं जन्मी क्यूंकि माँ ने नहीं चाहा,दादी ने नहीं चाहा (पिता भी इसमें शामिल है )पर माँ कम से कम विरोध तो कर सकती थी ,जो जनम गई उसे प्यार नहीं मिला क्यूंकि माँ और दादी ने नहीं दिया, पिता ने भी ना दिया हो संभव है पर बेटियां घर में रहती है बचपन का प्यार उन्हें माँ, दादी से ज्यादा मिलता है,वेसे भी लोग कहते है बेटियां पिता को ज्यादा प्यारी होती है (मेरा अनुभव ऐसा नहीं मुझे माँ पिता दोनों का प्यार मिला और अभी तक इस उधेड़बुन में हु कि में माँ को ज्यादा प्यार करती हु या पापा को ).आगे बढें तो बेटा बेटी में फर्क भी माँ या दादी ही ज्यादा करती है हां बड़े निर्णयों के मामले में पिता का अधिकार ज्यादा होता है पर कम से कम घर कि महिलाएं साथ तो दे सकती है पर हर बेटी को ये नसीब नहीं होता.
ये सच है कि हर नारी अत्याचार कि शिकार नहीं होती पर ये भी सच है कि जो शिकार होती है उन अत्याचारों में ज्यादातर नारी का हाथ होता है.घरेलु हिंसा,दहेज़ प्रथा,बहु को परेशान करना,बहु बेटी में भेद करना ये सब नारी ही करती है .या पुरुष करते है तो भी इन सब कि जड़ में कही ना कही नारी होती है.
.मुझे लगता है पुरुष प्रधान समाज पुरुष प्रधान इसलिए बना क्यूंकि नारी कि जडें खोदने में कही ना कही नारी का भी हाथ रहा है ,समाज पुरुष प्रधान बना क्यूंकि हमने इउन्हे हम पर राज करने कि अनुमति दी.यहाँ तक कि अगर पुरुषों के मन में नारी के लिए सम्मान नहीं है बराबरी कि भावना नहीं है तो कही ना कही, कभी ना कभी किसी नारी ने उसके मन ये भावना भरी है ये जरुरी नहीं है कि असा ही हो पर माँ अगर बेटे को बचपन से नारी का सम्मान करने के संस्कार दे ,बेहें और भाई के साथ सामान व्यवहारकरें और जब उसकी शादी हो तो बहु को अपना दुश्मन ना माने तो अत्याचारों कि मात्र कम हो सकती है.
मुख्य मुद्दा ये है कि हम पुरुषों को अपना दर्द सुना भी लेंगे तो उससे पहले जरुरी है कि नारी ही नारी को समझे उसे अपनाए, उसका साथ दे.अपने लिए दी गए आरक्षण का दुरूपयोग करना बंद करें, अगर एक नारी के साथ गलत हो रहा है उसका साथ दे और एक दुसरे कि टांग खीचने कि बजाए हाथ मिलाकर साथ ,साथ आगे आने कि कोशिश करें, और अपने खिलाफ हो रहे अत्याच्रों का सब मिलकर विरोध करें (और ये ना कर सके तो जो नारी विरोध कर रही है कम से कम उसपर अनर्गल टिपण्णी करना बंद करें ) तो नारी कि स्थिति में जल्दी सुधार होगा.और हमें बार बार में दुखी हु मैं दुखी कहकर रोना नहीं रोना पड़ेगा......
12 comments:
सही कहा कनु जी.आज नारी को ही नारी को समझने और उसे अपनाने की ज़रुरत है सार्थक आलेख बधाई
Love the title and the post.
कनु जी बात तो आप की ठीक है, लेकिन मैं नारियों, चाहे वह माँ हो या दादी, के पक्ष में एक कहना चाहूँगा. हमारे समाज पुरुषप्रधान हैं, समाज औरतों के निर्णयों के लिए बहुत कम जगह देता है, इसमें उन्हें यही समझाया जाता है कि अगर तुम इस व्यवस्था से इन्कार करोगी तो तुम्हारी खैर भी नहीं, तुम्हारे साथ भी वही सलूक होगा जो तुम्हारी बेटी या बहू के साथ होता है. सभ्यता और समाज का दबाव और बचपन से सुनाये उपदेशों का भी असर होता है. विद्रोह होने के रास्ते तब आसान हो जायेगे जब समस्त नारी समाज आर्थिक दृष्टि से अपने पैरों पर खड़े हो जायेगा, तब शायद अपवादों को छोड़ कर, नारी को नारी से सुहानुभूति दिखाने की और उसका साथ देने की बात हो सकती है. मेरे विचार में जो माँएँ और दादियाँ आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं शायद वह नारी की दुश्मन नहीं, या कम हैं?
सही कहा सुनील जी ,शिक्षा एक बहुत बड़ा फेक्टर है .पर फिर भी शायद आपको जानकार हैरानी ना हो कि महिला भ्रूण हत्या बढ़ी है और पढ़ी लिखी लडकिया ही तकनिकी का प्रयोग करके भ्रूण हत्या में शामिल हो रही है(पढ़िए मेरा आर्टिकल "आगे बढिए बढाइये कदम महिला भ्रूण हत्या के खिलाफ").महिला आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो ये जरुरी है पर जरुरी ये भी है कि उसकी मानसिकता बदले.
kanu,... thanks for sharing my views. i totally agree to what SUNILji has said and your comment on the same too..
yet , nice work... samaj kalyan ki jarurat nahin... nari kalyan thru education ki jarurat hai...
"brhmaji bhi sochte honge... yaar main kahaan fasa hoon,.. :)
bhargav aapki baat se sahmat,aur sunil ji ki baat se bhi sahmat hu.sab apna apna sudhar karo ,apne ghar se shuraat karo samaj aur desh apne aap sudhar jaega...
बस बाली बात आपने खूब बताई, मैं एक बार आगरा से दिल्ली जा रहा था, उसमे महिलाएं ज्यादा थीं एक दुसरे को कोहनी मार रहीं थीं जिससे दूसरी महिला उससे थोडा दूर खडी हो, कुछ बात पर झगडा हो गया... बाप रे... क्या क्या गालियाँ दीं उन्होंने आपस में, इतनी भद्दी गालियाँ तो आज तक एम.टी.वी. के रोडीज शो में भी नहीं दीं गयीं हैं
महिलाओं में पुरूषों की तरह सहयोग की भावना मैंने आज तक नहीं देखी, महिलाएं ही अपना-अपना सोचती हैं, गाडी में सीट मिल जाये तो तीन लोगों की जगह पर अकेले बैठना चाहतीं हैं, उल्टी का बहाना बनायेंगे तरह तरह के ड्रामे करेंगी,
माहिला ही महिला की दुश्मन है अन्यथा महिलाओं की इतनी बुरी हालत नहीं होती
aapne to muskurane par majboor kar diya yogendra ji....
tippani ke lie dhanyawad
आपकी सलाह बहुत अच्छी है हमें पहले एक दुसरे की सहायता करनी चाहिए फिरकिसी दुसरे से उम्मीद करनी चाहिए
........सार्थक आलेख बधाई
totally agree with u. Kannu!
You truly outdid yourself today. Great work
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