Tuesday, July 19, 2011

अब तो मन कि बात सुनो नारी का संताप सुनो....

कष्टों से भरा हुआ बेचारी  का इतिहास सुनो
सुन सको तो सुनो  नारी का संताप सुनो

लक्ष्मण  ने उर्मिला को छोड़ा भात्र प्रेम के लिए कभी
उतरा  भी ना था हाथों  से, मेहंदी का रंग अभी
क्या गलती थी उसकी उसने प्रेम कि रीत निभाई थी
पर रघुवंशियों को उस पर तनिक दया ना आई थी
पति वियोग में गवां दी उसने जवानी सारी
रावन था अत्याचारी तो उर्मिला भी थी अत्याचारों की मारी....
सुकुमारी उर्मिला के, मन की करुण पुकार सुनो
सुन सको तो सुनो  नारी का संताप सुनो...

चली पति के साथ वन में तब सुकुमारी सीता भी थी
जनक के घर जन्मी  राजकुमारी पुष्प बेल सी प्रीता ही थी
रावण कि वाटिका में रहकर भी किया पत्नी धर्म का पालन
एक धोबी के कहने भर पर छोड़ना पड़ा घर आँगन
मर्यादा पुरुषोत्तम कि पत्नी होने का दाम चुकाया था
सारा जीवन सीता माँ ने वन में ही तो बिताया था

निर्जन में  ,अकेलेपन में गूंजती सीता कि चीत्कार सुनो
सुन सको तो सुनो  नारी का संताप सुनो...

द्रौपदी  ने अपने मन को पांच  पतियों में बाटा था
अपने को सही कहने वाला सारा समाज तब कहाँ था ?
माँ ने अनजाने में कह दिया पांचो भाई बाँट लो
पत्नी को पांचो ने बांटा ये कैसा  हिस्सा - बांटा  था ?
पांच पति मिलकर भी तब ना उसकी लाज बचा पाए
थे दुर्बुद्धि या मुर्ख जो  पत्नी का दाव लगा आए

अपनी अस्मिता के लिए रोती पांचाली के मन कि बात सुनो
सुन सको तो सुनो  नारी का संताप सुनो...

सदियों बाद आज भी नारी कि अपनी तकलीफे ,अपने गम है
पंख कतरने वाले बहुत है, आकाश देने वाले कम है
कभी जेसिका बनकर आई और दुनिया से चली गई
नारी जाने कितने रूपों में इस दुनिया में छली गई
कभी लक्ष्मी,कभी गीता कभी नारी रीटा है
नाम अलग है, रूप अलग है सबका दर्द एक सरीखा है

बार बार इसके हिस्से में आती समय कि मार सुनो
सुन सको तो सुनो  नारी का संताप सुनो...

कभी दहेज़ का दानव लीले कभी भ्रूण हत्या खा जाए
नारी ही नारी के लिए षड्यंत्रों के जाल बिछाये
कभी बलात्कार से कुंठित,कभी छेड़खानी से चिंतित
कभी गृह षड्यंत्रों कि मारी,चैन नहीं है इसको किंचित

पुरुष अहम् कि आग में जलती,नारी कि स्वप्न झंकार सुनो
सुन सको तो सुनो  नारी का संताप सुनो...

आधुनिकता  के नाम पर, आज भी होता शोषण है
अतिविश्वास में ही टूटता विश्वास का दर्पण है
त्रेतायुग,सतयुग या कलयुग सबकी यही कहानी है
संसार सुखी बनाने वाली नारी कि आँखों में पानी है
कभी धर्म ,कभी मर्यादा,कभी इज्जत के नाम उसके सपने टूटे है
कष्ट समय में सबसे पहले अपने ही नारी से रूठे है

जीने का अधिकार दो उसको अब तो मन कि बात सुनो
सुन सको तो सुनो  नारी का संताप सुनो...

19 comments:

Manish Khedawat said...

behad umda kavita !
badhai ho !

kanu..... said...

dhanyawad manish ji

Saru Singhal said...

I loved it, Good Work Kanu.:)

kanu..... said...

thanks saru...kai dino se chah rahi thi naari par ek kavita likhu par ek dar tha ki na jane kitne hi log likhte hai kahi asa kuch na likh du jiske likhne ka koi matlab na ho...aaj koshish ki hai pasand karne ke liye thnx.

रेखा said...

ये आपने सही कहा युग बदलते रहे नारी के शोषण का भी बस रूप बदलता लेकिन स्थिति नहीं बदली .......................सार्थक पोस्ट

Mohini Puranik said...

नारी की वेदना बहुत सही शब्दोंमे अभिव्यक्त हुई है| एक सुझाव है वैदेही की जगह आपको शायद द्रौपदि लिखना था..ऐसा लगता है|

समय चाहे कोई भी हो, नारी की दशा तो अब वह खुद ही बदल सकती है |

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

बहुत सुन्दर ... नारी की पीड़ा का पौराणिक काल से आज तक सिलसिला जारी है.. उस पर सुन्दर कविता लिखी.. सादर

Patali-The-Village said...

बहुत अच्छी सार्थक अभिव्यक्ति|

Unknown said...

Bahut hi saarthak rachna kanu ji.. badhai..

kanu..... said...

मोहिनी जी भावनाओं के अतिरेक में शब्द गड़बड़ा गए मैंने उसे द्रौपदी कर दिया है ...धन्यवाद्.रेखा जी,डॉ नूतन,रूपचंद जी ,अनिल जी सभी को रचना पढने के लिए धन्यवाद् .आप सभी के प्रोत्साहन कि उम्मीद सदारहेगी...

Sunil Padiyar said...

Nice one kanupriya... Loved it..

kanu..... said...

thanks sunil and mishra ji

Bhargav Bhatt said...

one of ur best creation... so much pain it reflects, i wld like to add that its not only male who makes her cry. its also females.. the day a female will start understanding other female, 90% of problems will get sorted out cpz then they will be united to fight back for their own rights

kanu..... said...

haan bhargav sahi kaha aapne.naari hi naari ki sabse badi dushman hai...isilie maine likha hai naari ek line me likha hai ki "naari hi naari ke lie shadyantron ke jaal bichaye".....

दिगम्बर नासवा said...

नारी का शोषण आज भी जारी है किसी न किसी रूप में .. सच लिखा है आपने ... प्रभावी अभिव्यक्र्ती है ..

kanu..... said...

dhanyawad digambar ji.kal aap meri ek aur rachna padhenge jo apko is baat ko sochne ke lie ke lie ek aur angle degi par is baar kavita na ho shayad lekh ki taiyari hai...

Yashwant R. B. Mathur said...

स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ।

कल 16/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Unknown said...

Bahut acchha likhti hain aap, likhte rahioye//

Anonymous said...

The clarity in your post is simply striking and i can assume you are an expert on this subject.