सपनों को आँखों में लाती जेसे एक पहेली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी
सो गए है तारें सारे ,सो गई है पुरवाई भी
सोने को तैयार है बैठी गाँव की अमराई भी
मुझको यूं न छोड़ अकेला ,न कर यूं अठखेली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी....
सूरज दिन का काम ख़तम कर बादलों में जा सोया है
चंदा भी चांदनी के संग रास रंग में खोया है
मुझको अपने पास बुलाए मेरी चादर मैली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी...
सभी परिंदे शाखाओं पर दीन दुनिया से दूर हुए
यादों के झुरमुट भी अब तो थककर जैसे चूर हुए
सारे अपने चले गए है में रह गई अकेली सी
चुपके से आँखों में आजा निंदिया मेरी सहेली सी...
10 comments:
बहुत अच्छा लिखती हैं आप...
आभार
very sweet...
thanks to mahesh and bhargav
introduction is just awsome....wheather i didnt read the content but it striked bottem of my heart............
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
Simple and beautiful.
komal bhavo ki sundar abhivyakti .badhai
बहुत ही खूबसूरत रचना है...
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद्
इसी तरह अआप का प्रोत्साहन मिलता रहेगा यही आशा है
Just to let you know your site looks a little bit strange in Opera on my laptop with Linux .
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