Wednesday, September 14, 2011

मेरे शब्द खोए से लगते हैं


पिछले कुछ दिनों से ढूंढना पड़ रहे हैं  बार बार  ...
ना जाने क्यों आजकल मेरे शब्द खोए से लगते हैं

कोई कड़ी नहीं मिलती उन्हें जुड़ने के लिए
शायद कही चिर निंद्रा में आराम करना चाहते है
या बस यू ही कही छुप गए है मुझे परेशां करने के लिए 
जेसे मेरी खोज उन्हें अपनी अहमियत बताने वाली हो
नहीं जानती मै पर ,बार बार नींद से जगाना पड़ता है इन्हें .



प्रचलित विषयों पर लिखे जाने से बचाना चाहते है खुद को
या इन्हें ऊब हो गई इस बात से की ये लोगों के सामने आए
जेसे थक गए हो  कलम से बहार आ आकर
और कुछ दिन के लिए विराम चाहते हैं ?
नहीं जानती मैं पर ,ढूँढना पड़ता है इन्हें दिल के कोनो में जा जाकर ....

दिमाग और दिल के द्वन्द में उलझ गए है शायद
या अहसासों के अतिरेक में फस गए है
जैसे जरुरत से ज्यादा भोजन, भोजन की इच्छा को मार देता है
नहीं जानती मैं पर, कही कोई दर्द है जो कचोट रहा है मेरे शब्दों को

पिछले कुछ दिनों से ढूंढना पड़ रहे हैं  बार बार  ...
ना जाने क्यों आजकल मेरे शब्द खोए से लगते हैं

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

12 comments:

Bharat Bhushan said...

'शब्द खोए से लगते हैं' एक प्रमाणिक अनुभूति है. अहसासों के अतिरेक से ही यह होता है.

Mohini Puranik said...

मेरे ह्रदय की भावना बोल दी| बहुत बहुत कम करने से मन मस्तिष्क थक जाता है| नहीं बोलना चाहता कुछ|

प्रवीण पाण्डेय said...

विचारों का प्रवाह बनाये रखिये, शब्द मिलने लगेंगे।

विभूति" said...

मेरे शब्द खोये से लगते है.... बहुत ही सुन्दर अभिवयक्ति....

Vikas said...

शब्द खोए से लगते है......प्रेरक रचना के लिए धन्यवाद ।

kanu..... said...

aap sabhi ka dhanyawad.praveen ji prerna dene ke lie aabhar

रजनीश तिवारी said...

ऐसा होता है ...और एक अल्प विराम के बाद फिर से शब्द दिखते हैं !

Anonymous said...

सबसे पहले हमारे ब्लॉग 'जज़्बात' पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया.........आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...........पहली ही पोस्ट दिल को छू गयी...........बहुत खूब...........आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे|

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संजय भास्‍कर said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है

kanu..... said...

imran ji swagat hai aapka.sanjay ji dhayawad

gaurav said...

शब्द खोते नहीं हैं कभी बस ज़रा सा बेहतर बन ने की जुगत में रहते हैं.
अहसासों के आतिरेक में खुद को तनहा पा कर, कभी हंसी तो कभी बस मुस्कराहट बन के आते हैं.
कभी रो दो तो आँखों से आंसू की तरह बह जाएं , कभी नमकीन से जायके की तरह लबो से चिपक जाते हैं.
शब्द खोते नहीं बस दिल में सिमट जाते हैं.

कभी कहना चाह नुक्कड़ के लाला से की चोर नौकर नहीं उसका बेटा है मगर कह न पाया,
कभी कक्षा में पन्नो के जहाज बना कर भी उस तक न पहुच पाया !
कभी उम्मीद कोई की मगर बताया नहीं की क्या है, कभी भगवन को भी दिल की बातें बिना बताये चला आया !
शब्द रखे थे कई कहने को मगर उन सबको ज़रा कम हैं कह के छुपाता आया !
शब्द खोते नहीं हैं बस दिल में ही रह जाते हैं !

मस्तिष्क के कोनो में कोई तिजोरी नहीं थी , मेरे दिल के किसी हिस्से ने कभी चोरी नहीं की !
जो बात थी दिल में वो दिमाग तक पहुची ज़रूर मगर. मैं कभी सही शब्द चुन नहीं पाया !
ना उसकी सुनी ना अपनी कही, कोई दोस्त यार कभी मुझे समझ नहीं पाया !
मैंने शब्दों को सहेजना तो सीख लिया मगर, कभी शब्दों की नुमाइश कर नहीं पाया !
शब्द खोते नहीं हैं बस दिल में ही रह जाते हैं !
शब्द खोते नहीं हैं. बस दिल में ही रह जाते हैं !

kanu..... said...

शब्द खोते नहीं हैं बस दिल में ही रह जाते हैं !
gaurav ji bahut hi acchi panktiyan likhi hai aapne.
comment ke lie dhanyawad