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भाता कोई मीत नहीं है
तुम थे तो संगीत मधुर था
तुम नहीं तो कोई गीत नहीं है
सांझ में दिखती ना लाली
चंदा की चुनर भी काली
फूल लगे जैसे कुम्हलाए
बेकस मन को क्या समझाए
तड़प तड़प कर याद करे बस
दुखते मन की रीत यही है
तुम थे तो संगीत मधुर था
तुम नहीं तो कोई गीत नहीं है
साहिल पे आकर लहरें भटके
कही नेपथ्य में नैना अटके
कोई मुसाफिर बंजारा सा
भटका पंछी आवारा सा
खुशियाँ आने से घबराएं
गम होकर बैठे ढीठ यही है
तुम थे तो संगीत मधुर था
तुम नहीं तो कोई गीत नहीं है ........
15 comments:
atisunder :-)
वाह वाह...
बहुत सुन्दर..
ये तो संगीत भरा गीत बन गया..तुम नहीं तो क्या...
वियोग भी गीत बना देता है..
आपकी कविता का भाव अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .
कनु जी,वाह वाह !!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन गीत
welcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--
विरह का बेहतरीन चित्रण।
बहुत खूबसूरत |
सुंदर गीत ...
बहुत ही बढ़िया।
सादर
आपको लोहड़ी हार्दिक शुभ कामनाएँ।
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कल 13/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
एक अच्छे भाव की सफल प्रस्तुति - सुन्दर
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
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http://maithilbhooshan.blogspot.com/
खूबसूरत अभिव्यक्ति .. सुन्दर गीत
virah ka bahut achcha geet me dhalkar chitran kiya hai.shubhkamnayen.
बहुत ख़ूबसूरत गीत...
I must say I really like it. Your imformation is usefull. Thanks for share
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