Monday, January 2, 2012

माँ तुम बहुत याद आती हो

 माँ तुम बहुत याद आती हो
मन में छुपे हुए विचार की तरह
तुम्हारे हाथ के बने अचार की तरह
बादल के पीछे छुपी बूँद की तरह
मन पर छा जाने वाली धुंध की तरह
माँ तुम बहुत याद आती हो





दादी नानी के किस्से की तरह
पलंग पर मेरे हिस्से की तरह
घर के धूप वाले आँगन की तरह
जो दीखता नहीं उस सावन की तरह
 अधूरी रह गई प्रेमकहानी की तरह
१६ बरस वाली जवानी की तरह
माँ तुम बहुत याद आती हो

पापा के अथाह प्यार की तरह
तुम्हारे दिए संस्कार की तरह
सहेली से कानों में बात की तरह
गटागट की गोली के स्वाद की तरह
मिटटी में बोए हुए कलदार  की तरह
स्कूल के नाम से आए बुखार की तरह
माँ तुम बहुत याद आती हो

बहन की काटी चिकोटी की तरह
गरमागरम रुमाली रोटी की तरह
गाडी की तेज़ स्पीड की तरह
भाई की याद की टीस की तरह
उस घर में बीती हर शाम की तरह
छूटे हुए हर ख्वाब की तरह
माँ तुम बहुत याद आती हो

क्या करू माँ तुम बहुत याद आती हो.....
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

8 comments:

Rajesh Kumari said...

maa hoti hi yesi hai jo dil me humesha rahti hai chahe vo pas ho ya door ho.bahut pyaari rachna.naya saal mubarak ho god bless you.

Yashwant R. B. Mathur said...

माँ की याद कभी भुलाई नहीं जा सकती।

नव वर्ष की शुभ कामनाएँ।


सादर

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी सुन्दर कविता।

Atul Shrivastava said...

बेहतरीन... बेमिसाल......

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर वाह!

Anonymous said...

अच्छी है पोस्ट|

Nirantar said...

khushkismat hein wo
maan jinke saath hotee hai

badhiyaa saarthak

Anamikaghatak said...

बहुत ही सुन्दर कविता.....भावपूर्ण