तुमसे ऐसा मोह पड़ा
निर्मोही जीवन से डर लगता है
मुझे सौतन से डर नहीं पिया
बस जोगन से डर लगता है
जिसका परदेसी जल्दी आऊंगा
कहकर उसको लौट गया
पहले गहन प्रेम साधा
फिर निरा अकेला छोड़ गया
वो सर्द निगाहों से हमको देखे
आहों से अपना मन सेके
प्रेम दर्द की मारी हुई
उस विरहन से डर लगता है
मुझे सौतन से डर नहीं पिया
बस जोगन से डर लगता है
तुम वन के स्थिर बरगद हो
मैं चंचल कोमल सी हिरनी
मैं सागर सा उन्माद लिए
तुम हो जैसे धरती धरनी
तुम संग स्थिर होना चाहू
इस आवन जावन से डर लगता है
मुझे सौतन से डर नहीं पिया
बस जोगन से डर लगता है
हर फूल पर भवर मंडराए
कलियों का रस लेकर उड़ा चले
प्रेम का नकली रंग भरे
आवारा पंछी बहुत छले
जो तेरा प्रेम ना बरसाए
उस सावन से डर लगता है
मुझे सौतन से डर नहीं पिया
बस जोगन से डर लगता है
आईने भी सौदाई हुए
बिखरे बिखरे अक्स दिखाते है
मायाजाल के रंग दिखाकर
हर सीता का मन भरमाते हैं
कोई मुझको तुमसे ना दूर करे
आंसू से जीवन नहीं भरे
गली मोहल्लों में फेले
हर रावन से डर लगता है
मुझे सौतन से डर नहीं पिया
बस जोगन से डर लगता है
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
निर्मोही जीवन से डर लगता है
मुझे सौतन से डर नहीं पिया
बस जोगन से डर लगता है
जिसका परदेसी जल्दी आऊंगा
कहकर उसको लौट गया
पहले गहन प्रेम साधा
फिर निरा अकेला छोड़ गया
वो सर्द निगाहों से हमको देखे
आहों से अपना मन सेके
प्रेम दर्द की मारी हुई
उस विरहन से डर लगता है
मुझे सौतन से डर नहीं पिया
बस जोगन से डर लगता है
तुम वन के स्थिर बरगद हो
मैं चंचल कोमल सी हिरनी
मैं सागर सा उन्माद लिए
तुम हो जैसे धरती धरनी
तुम संग स्थिर होना चाहू
इस आवन जावन से डर लगता है
मुझे सौतन से डर नहीं पिया
बस जोगन से डर लगता है
हर फूल पर भवर मंडराए
कलियों का रस लेकर उड़ा चले
प्रेम का नकली रंग भरे
आवारा पंछी बहुत छले
जो तेरा प्रेम ना बरसाए
उस सावन से डर लगता है
मुझे सौतन से डर नहीं पिया
बस जोगन से डर लगता है
आईने भी सौदाई हुए
बिखरे बिखरे अक्स दिखाते है
मायाजाल के रंग दिखाकर
हर सीता का मन भरमाते हैं
कोई मुझको तुमसे ना दूर करे
आंसू से जीवन नहीं भरे
गली मोहल्लों में फेले
हर रावन से डर लगता है
मुझे सौतन से डर नहीं पिया
बस जोगन से डर लगता है
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
16 comments:
वाह वाह....
बहुत बढ़िया भाव और बेहतरीन बहाव है आपकी कविता में...
बहुत सुन्दर.
गहरे भाव.....
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
बहुत बहुत सुन्दर!
वाह!!!!बहुत सुंदर रचना अच्छी लगी.....
new post--काव्यान्जलि --हमदर्द-
आपभी समर्थक बने तो मुझे खुशी होगी,...
मन की भावनाओं को व्यक्त करने का सर्वथा नया तरीका...
शानदार और बेहतरीन|
सकारात्मक प्रेम की निर्झरिणी, अति सुंदर,वाह !!!
"गली मोहल्ले में फैले
हर रावण से डर लगता है
मुझे सौतन से नहीं बस पीया
जोगन से डर लगता है"
अच्छी रचना नया पन लिए हुए
आपका यह पोस्ट अच्छा लगा । । मेरे नए पोस्ट "हो जाते हैं क्यूं आद्र नयन" पर आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
वाह! अति सुन्दर!!!
Just wanted to say that you have some awesome content on your website!
बहुत ही बढ़िया...शानदार....सच ही है जोगन से दर लगता है....
बेहद उम्दा प्रस्तुति।
एक नारी की कोमल भावनाएं...
जिसमें प्रेम,विरह,डर,समर्पण सब है....
बहुत सुन्दर..
man ke bhavon ko behad hee khoobsurti ke sath vyakt kiya hai...bhavon ka prabah bhee shaandaar hai...sadar badhayee..holi kee shubhkamnaon aaur apne blog par amantran ke sath
कनुप्रियाजी ... अभिव्यक्ति अच्छी लगी
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