Wednesday, January 11, 2012

डर कैसा फिर तन्हाई से ?

parwaz:
प्यार हुआ जब हरजाई से
डर कैसा फिर तन्हाई से ?

मिलन का नहीं कोई मौसम
घाव सिए ना कोई तुरपन
जीवन के झूठे सब मेले
मन से कोई यूँ ना खेले
मोह लगाया सौदाई से
डर कैसा फिर तन्हाई से ?

तुम बिन सूना घर आँगन
बरसो से आया ना सावन
खुशियों से होती है सिरहन
आस लगाए बैठी विरहन
रीते आंसू आँखों से सब
बोलो लौट आओगे कब
जाने वाले चले गए
क्या होगा अब सुनवाई से
प्यार हुआ जब हरजाई से
डर कैसा फिर तन्हाई से ?

अंतर्मन का दर्द है ऐसा
पानी के बिन बादल जैसा
सूखी नदिया मन की ऐसे
तड़क जाए है धरती जैसे
तेरे बिन हालत है ऐसी
जैसे बौर हो रूठा अमराई से
प्यार हुआ जब हरजाई से
डर कैसा फिर तन्हाई से ?

9 comments:

vidya said...

आह...
बहुत बढ़िया..
लाजवाब रचना.

प्रवीण पाण्डेय said...

सपनों को मान मिले न मिले,
अपने में रहना सीख लिया

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन लाजबाब रचना,...
welcome to new post --काव्यान्जलि--यह कदंम का पेड़--

Atul Shrivastava said...

बेहतरीन भाव।
सुंदर रचना।

Anonymous said...

बहुत खूबसूरत अहसासों से सजी पोस्ट|

induravisinghj said...

सुंदर रचना, फिर डर कैसा तन्हाई से...

Sunil Deepak said...

यह गीत तो किसी फ़िल्म में जुदाई की सिचुएशन में बहुत सही बैठेगा!

Aditya said...

Bahut hi khoobsoorat rachna..

kabhi waqt mile to mere blog par bhi aaiyega.. aapka swagat hai..
palchhin-aditya.blogspot.com

Anonymous said...

A topic near to my heart thanks, ive been wondering about this subject for a while.