Friday, January 6, 2012

प्रियतमा दीपक जलाए रखना

प्रियतमा  दीपक जलाए रखना
मैं लौटकर के आऊंगा
आशा बनाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना

झूठ कैसे बोल दू की याद सब आते नहीं
पर बात पहुँचाने के लिए शब्द मिल पाते नहीं
जानता हू तुम सबके लिए मेरे कुछ फ़र्ज़ हैं
पर मातृभूमि का भी मेरे ऊपर  बड़ा क़र्ज़ है
जीतकर के आऊंगा रणक्षेत्र से जल्दी प्रिया
तुम रौशनी को जगमगाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना

माँ को कहना आँख के आंसू ज़रा से रोक ले
रण की खबरें कम सुने मन को ना इतना शोक  दे
जल्दी ही गोद में सर रखकर सोने  को मै  आऊंगा
उसके हाथों से  बनी मक्का की रोटी खाऊंगा
तुम माँ को ज़रा ढाढस  बंधाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना

बाबा को कहना शत्रु के सर मै काटकर के लाऊंगा
पीठ  कभी ना दिखेगी  सीने पे गोली खाऊंगा
आज ही सबसे कहे बेटा गया रण क्षेत्र में
मैं जान दे दूंगा मगर देश का सर नहीं झुकाऊँगा
वो गमछे में छुपकर रोएंगे
तुम हिम्मत दिलाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना

बच्चो से कहना उनके पिता को  उनसे बहुत सा प्यार है
झोले  में मेरे मुनिया की गुडिया रखी तैयार है
आऊंगा अबकी बार  तो ढेरों खिलोने लाऊंगा
कुछ दिन अपने बच्चो के संग गाँव में बिताऊंगा
कहना पापा इस बार रण के किस्से सुनाएगे
वीरगाथाएं सुनकर वीर उन्हें बनाएँगे
वो याद जब मुझको करे
उन्हें प्रेम से  समझाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना

तुमसे कहू क्या? तुममे बसते मेरे प्राण है
तुम प्रेयसी हो मेरी इस बात पर अभिमान है
जब तक जियूँगा मन में तुम्हारे प्रेम का राज होगा
मन के हर गीत में तेरे प्रेम का विश्वास  होगा
गर लौटकर ना आऊं तो मेरी याद में रोना नहीं
शहीद की विधवा रहोगी ये मान तुम खोना नहीं
मांग का सिंदूर ना पोछना मेरे बाद में
मैं सदा जिन्दा रहूँगा तुम्हारी हर इक याद में
उम्मीद की राहें सजाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना .......
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

20 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

कहना पापा इस बार रण के किस्से सुनाएगे
वीरगाथाएं सुनकर वीर उन्हें बनाएँगे

एक बार फिर आपके ब्लॉग पर इस ज़बरदस्त पोस्ट को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा।


सादर

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही अच्छी रचना, ऐसे ही लिखती रहें।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत ही अच्छी प्रस्तुति,मन की भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति,लिखने का प्रयाश निरंतर जारी रखे,...
WELCOME to--जिन्दगीं--
मै समर्थक बन रहा हूँ आप भी बने तो मुझे खुशी होगी,....

Atul Shrivastava said...

बेहतरीन।
नए अंदाज में देशभक्ति से ओत प्रोत रचना।

शुभकामनाएं.............

Sunil Kumar said...

.एक अतिसंवेदनशील रचना जो निशब्द कर देती है

देवेंद्र said...

यहीं आशा का दीप ही तो वीर पुरूष के लिये युद्धभूमि में डटे रहने हेतु प्रेरित व शक्ति देता रहता है। सुंदर प्रस्तुति।

Yashwant R. B. Mathur said...
This comment has been removed by the author.
सागर said...

behtreen aur sarthak.........

Pallavi saxena said...

बहुत खूब ....

मेरा मन पंछी सा said...

बेहतरीन प्प्रस्तुती..

vandana gupta said...

एक सैनिक के मनोभावों को खूब उकेरा है।

vidya said...

बहुत सुन्दर...
भावुक कर दिया आपकी रचना ने...

induravisinghj said...

सुंदर ह्रदयस्पर्शी रचना...

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