प्रियतमा दीपक जलाए रखना
मैं लौटकर के आऊंगा
आशा बनाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
झूठ कैसे बोल दू की याद सब आते नहीं
पर बात पहुँचाने के लिए शब्द मिल पाते नहीं
जानता हू तुम सबके लिए मेरे कुछ फ़र्ज़ हैं
पर मातृभूमि का भी मेरे ऊपर बड़ा क़र्ज़ है
जीतकर के आऊंगा रणक्षेत्र से जल्दी प्रिया
तुम रौशनी को जगमगाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
माँ को कहना आँख के आंसू ज़रा से रोक ले
रण की खबरें कम सुने मन को ना इतना शोक दे
जल्दी ही गोद में सर रखकर सोने को मै आऊंगा
उसके हाथों से बनी मक्का की रोटी खाऊंगा
तुम माँ को ज़रा ढाढस बंधाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
बाबा को कहना शत्रु के सर मै काटकर के लाऊंगा
पीठ कभी ना दिखेगी सीने पे गोली खाऊंगा
आज ही सबसे कहे बेटा गया रण क्षेत्र में
मैं जान दे दूंगा मगर देश का सर नहीं झुकाऊँगा
वो गमछे में छुपकर रोएंगे
तुम हिम्मत दिलाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
बच्चो से कहना उनके पिता को उनसे बहुत सा प्यार है
झोले में मेरे मुनिया की गुडिया रखी तैयार है
आऊंगा अबकी बार तो ढेरों खिलोने लाऊंगा
कुछ दिन अपने बच्चो के संग गाँव में बिताऊंगा
कहना पापा इस बार रण के किस्से सुनाएगे
वीरगाथाएं सुनकर वीर उन्हें बनाएँगे
वो याद जब मुझको करे
उन्हें प्रेम से समझाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
तुमसे कहू क्या? तुममे बसते मेरे प्राण है
तुम प्रेयसी हो मेरी इस बात पर अभिमान है
जब तक जियूँगा मन में तुम्हारे प्रेम का राज होगा
मन के हर गीत में तेरे प्रेम का विश्वास होगा
गर लौटकर ना आऊं तो मेरी याद में रोना नहीं
शहीद की विधवा रहोगी ये मान तुम खोना नहीं
मांग का सिंदूर ना पोछना मेरे बाद में
मैं सदा जिन्दा रहूँगा तुम्हारी हर इक याद में
उम्मीद की राहें सजाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना .......
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
मैं लौटकर के आऊंगा
आशा बनाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
झूठ कैसे बोल दू की याद सब आते नहीं
पर बात पहुँचाने के लिए शब्द मिल पाते नहीं
जानता हू तुम सबके लिए मेरे कुछ फ़र्ज़ हैं
पर मातृभूमि का भी मेरे ऊपर बड़ा क़र्ज़ है
जीतकर के आऊंगा रणक्षेत्र से जल्दी प्रिया
तुम रौशनी को जगमगाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
माँ को कहना आँख के आंसू ज़रा से रोक ले
रण की खबरें कम सुने मन को ना इतना शोक दे
जल्दी ही गोद में सर रखकर सोने को मै आऊंगा
उसके हाथों से बनी मक्का की रोटी खाऊंगा
तुम माँ को ज़रा ढाढस बंधाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
बाबा को कहना शत्रु के सर मै काटकर के लाऊंगा
पीठ कभी ना दिखेगी सीने पे गोली खाऊंगा
आज ही सबसे कहे बेटा गया रण क्षेत्र में
मैं जान दे दूंगा मगर देश का सर नहीं झुकाऊँगा
वो गमछे में छुपकर रोएंगे
तुम हिम्मत दिलाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
बच्चो से कहना उनके पिता को उनसे बहुत सा प्यार है
झोले में मेरे मुनिया की गुडिया रखी तैयार है
आऊंगा अबकी बार तो ढेरों खिलोने लाऊंगा
कुछ दिन अपने बच्चो के संग गाँव में बिताऊंगा
कहना पापा इस बार रण के किस्से सुनाएगे
वीरगाथाएं सुनकर वीर उन्हें बनाएँगे
वो याद जब मुझको करे
उन्हें प्रेम से समझाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना
तुमसे कहू क्या? तुममे बसते मेरे प्राण है
तुम प्रेयसी हो मेरी इस बात पर अभिमान है
जब तक जियूँगा मन में तुम्हारे प्रेम का राज होगा
मन के हर गीत में तेरे प्रेम का विश्वास होगा
गर लौटकर ना आऊं तो मेरी याद में रोना नहीं
शहीद की विधवा रहोगी ये मान तुम खोना नहीं
मांग का सिंदूर ना पोछना मेरे बाद में
मैं सदा जिन्दा रहूँगा तुम्हारी हर इक याद में
उम्मीद की राहें सजाए रखना
प्रियतमा दीपक जलाए रखना .......
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
20 comments:
कहना पापा इस बार रण के किस्से सुनाएगे
वीरगाथाएं सुनकर वीर उन्हें बनाएँगे
एक बार फिर आपके ब्लॉग पर इस ज़बरदस्त पोस्ट को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा।
सादर
बहुत ही अच्छी रचना, ऐसे ही लिखती रहें।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति,मन की भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति,लिखने का प्रयाश निरंतर जारी रखे,...
WELCOME to--जिन्दगीं--
मै समर्थक बन रहा हूँ आप भी बने तो मुझे खुशी होगी,....
बेहतरीन।
नए अंदाज में देशभक्ति से ओत प्रोत रचना।
शुभकामनाएं.............
.एक अतिसंवेदनशील रचना जो निशब्द कर देती है
यहीं आशा का दीप ही तो वीर पुरूष के लिये युद्धभूमि में डटे रहने हेतु प्रेरित व शक्ति देता रहता है। सुंदर प्रस्तुति।
behtreen aur sarthak.........
बहुत खूब ....
बेहतरीन प्प्रस्तुती..
एक सैनिक के मनोभावों को खूब उकेरा है।
बहुत सुन्दर...
भावुक कर दिया आपकी रचना ने...
सुंदर ह्रदयस्पर्शी रचना...
सुंदर ह्रदयस्पर्शी रचना...
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