Thursday, October 20, 2011

मैं अधूरी सी हो गई main adhuri si ho gai

parwaz:मैं अधूरी सी हो गई

कितनी अजीब बात है पर यही सच है
तुम जब से पूरे से हुए हो मैं अधूरी सी हो गई
शायद मैंने खुद को तुम मैं खो दिया है
या खुद का एक हिस्सा खुद से थोडा सा अलग  कर दिया है
पर ये तुमसे मुलाकात के बाद ये अधूरापन कही बढ़ता सा जाता है
जब जब तुम कहते हो मैं पूरा सा हो गया
मैं हर बार थोड़ी और  अधूरी सी हो जाती हू...


कभी  कभी अहसास होता है
जिंदगी के पन्नो को तुम्हारे नाम करते हुए
मैं कई बार साथ में अपना  नाम लिखना भूल जाती हू
और जब जब पलटकर देखती हू उन्ही पन्नो को
तो सिर्फ तुम्हारा नाम मुझे अकेला सा कर देता है
तुम भी भूल जाते हो इन पन्नो पर मेरा नाम लिखना....
ये अहसास मुझे और भी अधुरा कर देता है
इन पन्नो पर अपने नाम को ना पाकर
मैं हर बार थोड़ी और  अधूरी सी हो जाती हू...

तुम्हे पूर्णता  देने का अहसास मेरे अधूरेपन को भरता है
पर जब तंग गलियों में साथ चलते चलते
अनायास ही तुम कभी हाथ झटक देते हो
या खुद में गुम कही आगे निकल जाते हो
मेरा ख़ाली हाथ मुझे अधूरेपन का अहसास दिलाता है
चार क़दमों की जगह  दो क़दमों के चलने की आहत मुझे अधूरापन देती है
तुम्हे शायद ये अहसास भी नहीं होता
मैं हर बार थोड़ी और  अधूरी सी हो जाती हू...


कभी कभी जब तुम अपने "मैं" में खो जाते हो
और भूल जाते हो हमारे हम को
अपने यंत्रो में खोकर तुम अकेले बेठे बेठे
अपने चेहरे पर मुस्कराहट ,दुःख या चिढ के भाव लाते हो
मेरी आहट से तुम खुद को असहज महसूस करते हो
और अचानक यही असहजता का भाव मेरे चेहरे पर भी आ जाता है
तब हर बार  में कही अधूरापन महसूस करती हू
तुम्हे शायद भनक भी नहीं लगती
मैं हर बार थोड़ी और  अधूरी सी हो जाती हू...


कई बार जब तुम खामोश से बेठे रहते हो
खुद में गुम हो जाना चाहते हो
तब मेरा पास होना भी तुम्हे भला नहीं लगता
 और इसी ख़ामोशी में तुम मुझे खामोश रहने का इशारा करते हो
मैं समझ  नहीं पाती तुम मुझसे दूरी चाहते हो या मेरे शब्दों से
तब अपने ही शब्दों में उलझी में खुद को अकेला पाती हू
तुम्हारा मौन ,तुम्हारे शब्द ,तुम्हारा सामीप्य , तुम्हारी दूरी
सब  बेमानी   सा लगता है उस एक पल में
जब जब तुम पास रहकर भी मुझसे दूर हो जाते हो
तुम्हे खबर नहीं होती पर
मैं हर बार थोड़ी और अधूरी सी हो जाती हू...



आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

18 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अधूरेपन और पूर्णता के बीच की कशमकश।

अनुपमा पाठक said...

अधूरेपन और पूर्णता का गणित बनता बिगड़ता रहता है!
भाव सुन्दरता से अभिव्यक्त हुए हैं!

Yashwant R. B. Mathur said...

तीसरा पैरा बहुत अच्छा लगा।

सादर

Deepak Doddamani said...

बहुत खूब

रश्मि प्रभा... said...

shabd nahin ... bas superb

shvetilak said...

true feelings and emotions have been written wonderfully! wow :)

vandana gupta said...

अभिव्यक्त होने और अधूरेपन की कशमकश को बहुत खूबसूरती से उकेरा है।

Unknown said...

yar its a very nice poem wid exreme feelings one can have........jst loved it.......god bless u:)

Pallavi saxena said...

बेहतरीन अभिव्यक्त रश्मि प्रभा जी की बात से सहमत शब्द नहीं है बस supreb ... :)

Srikant Chitrao said...

आपकी व्यक्त भावनाओं ने हिलाकर रख दिया , अधूरेपन की त्रासदी को पढ़कर मन बेचैन हो गया , यही आपकी बड़ी सफलता है |बधाई हो | हमारे ब्लॉग पर टिप्पणी ना देकर उसे अधूरा आप नहीं छोडेंगी इस अपेक्षा और प्रतीक्षा के साथ बहोत-बहोत धन्यवाद |

virendra sharma said...

सहभावित रचना ,पाठक को संग लिए आगे बढती है .बधाई .दिवाली मुबारक .

दिगम्बर नासवा said...

किसी को पूर्णता देते देते अक्सर खुद खोखला हो जाता है इंसान .. पूर्णतः की तलाश में सुन्दर रचा ...

Atul Shrivastava said...

अधूरेपपन की कसक और उसमें पूर्णता का अहसास....

शब्‍दों का बेहतर तरीके से इस्‍तेमाल।
आभार आपका

Anonymous said...

सुन्दर लगी पोस्ट|

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

आद कनु जी,
बहुत अच्छा लिख रही हैं आप...
अलग सी सोच, अलहदा सा एहसास...
देर से आया यहाँ... पर अच्छा लगा...
कुछ रचनाएं पढीं... फिर पढूंगा...
सादर बधाई और शुभकामनाये....

Always Unlucky said...

I really hope other folks find your blog post right here as useful as I have


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संजय भास्‍कर said...

बहुत प्रभावशाली और सशक्त कविता,

SAJAN.AAWARA said...

laajwaab..
behtreen..
kaabile tareef..
bahut hi badhiya...
shandar...
or kya kahun mam?
jai hind jai bharat