Friday, October 14, 2011

बटवारा हो गया.....

parwaz:batwara ho gaya
 सुबह से ही सारे मोहल्ले में हल्ला है
बटवारा होने वाला है बटवारा होने वाला है
सारे घरों की औरतें खुसुर पुसुर कर रही है
दीवारों के कान खड़े हो गए है
जेसे आज वो सुन ही लेंगी हर बात
और बता देगी सारे मोहल्ले को


सब कुछ खामोश है पर
इससे बड़ा कोलाहल जेसे कभी हुआ ही नहीं
इस मोहल्ले में
एसा लगता है जेसे तूफ़ान से
पहले की शांति इसी को कहते होंगे
पर समझ भी नहीं आता
की कैसा  तूफ़ान आने वाला है
बस उडती उडती सी खबरें आती है
तिवारी जी के घर में बटवारा होने वाला है

आज तिवारिन काकी
रोज की तरह चिल्ला नहीं रही बच्चों पर
ना ही तिवारी काका अपने आँगन के झूले  को दावे बेठे है
बड़ा गुस्सा आता है कभी कभी उनपर
बच्चो के झूला झूलने की उम्र में
खुद दिनभर बेठे रहते है उसपर

पर आज बड़े नीरीह से दिख रहे हैं
रह रह कर अपना चश्मा साफ़ करते है
और कहते जाते है  धूल बहुत उड़ रही है
पर सब जानते है ये धूल नहीं कोहराम है
जो रह रह कर आंसू बन उतर आता है उनकी आँखों में

सब साँसे रोककर इन्तेजार कर रहे हैं
किसके हिस्से क्या आएगा
सब बहस में लगे हैं
किसी को मकान चाहिए
कोई गाओ बाहर का खेत मांगता है
कोई कहता है नुक्कड़ वाली दूकान मुझे दो

तिवारिन आँखें फाड़े सबको देखती है
और रह रहकर  दर्द उठता है सीने में
जेसे अपना पिलाया हुआ दूध
बेकार गया लगता हो आज

तिवारी काका कुछ नहीं कहते
दिन भर बोलने वाली काकी भी चुप है
दोनों वृद्ध मन ही मन सोचते हैं 
ले लेने दो इन्हें सब
कट जाएगी बची हुई जिंदगी एक दुसरे के साथ
सच है बुढ़ापे में
एक दुसरे का ही तो सहारा होता है वृद्धों को

देखते ही देखते सब बट गया
घर दुकान बर्तन बिस्तर
खेत खलिहान,चोबारा छत
यहाँ तक की काकी की मृत्यु के बाद
कौनसी चूड़ी कौन सा कंगन
किसके हिस्से में आएगा सब बाँट लिया बेटों ने

सारे मोहल्ले  ने राहत की सांस ली
इतने दंगे फस्साद तू तू मैं मैं के बाद
आखिर सब बट ही गया
पर तभी आवाज़ आई
अभी कुछ और भी कुछ बाकि है
काका झल्लाए बोले
अब क्या हमारे मरने पर
कौन अर्थी उठेगा ये भी अभी ही बाटोंगे ?

नहीं ये नहीं आप दोनों कहाँ
किसके साथ रहोगे ये बाटना बाकि है
दोनों वृद्ध ने एक दुसरे की तरफ देखा
और काका बोले हम थोड़े थोड़े
 दिन सबके साथ रह लेंगे

फिर आवाज़ आई नहीं साथ नहीं
आपको एक एक करके रहना होगा
माँ जब बड़े भैया के घर रहेगी तो
आप   मेरे साथ रहना
इस तरह दोनों जगह थोड़े थोड़े दिन रहना
इस तरह खर्चा बंट जाएगा

ये सुनते ही काकी जमीन पर बैठ गई
और उनके मुह से बस बार बार यही शब्द निकलते थे
इन लोगो ने माँ बाप बाँट लिए
हाँ सच में अब बटवारा हो गया.....

23 comments:

रश्मि प्रभा... said...

aise khudgarzon ko kuch nahi dena chahtiye ...

Yashwant R. B. Mathur said...

ये बटवारा बहुत दुखदायी होता है।

सादर

सागर said...

bhaut hi khubsurat....

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति वाह!

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर रचना , बधाई

bhuneshwari malot said...

सार्थक रचना ,काष आज की युवा पीढी अपने वृद्ध माता-पिता के इस बटवारे के दर्द को समझ पाती।

Pallavi saxena said...

आपकी यह पोस्ट फिल्म बागवान की याद दिलाती है।

Smart Indian said...

ओह!

देवेंद्र said...

दुर्भाग्य से बँटवारे तो दिल को चीर कर रख देते हैं।कुछ ऐसा ही होता हैं, मानों अपने शरीर के अंग काट-काट कर शरीर से अलग कर दिये गये हों।

भावनात्मक प्रस्तुति।

Ashish Tiwari said...

aaj desh ko kai hisson me neta baant rahe hai.....jameen nahi logon ko...jati,samuday aur dharm k naam per....to ghar ka batwara koi badi khabar nahi....
ye to yahi baat hai na ki log to logon ka khaan bhi peene lage gai...
kya galat hai agar ham sharab peete hai....
khair aapki yr prastuti bahut badhiya prayas hai....aaina samaj ka...title...

Anonymous said...

aaj desh ko kai hisson me neta baant rahe hai.....jameen nahi logon ko...jati,samuday aur dharm k naam per....to ghar ka batwara koi badi khabar nahi....
ye to yahi baat hai na ki log to logon ka khoon bhi peene lage gai...
kya galat hai agar ham sharab peete hai....
khair aapki yr prastuti bahut badhiya prayas hai....aaina samaj ka...title..

रश्मि प्रभा... said...

http://urvija.parikalpnaa.com/2011/10/why.html

प्रेम सरोवर said...

बहुत सुंदर .। मेर पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद .

Anonymous said...

मार्मिकता में लिपटा सच बयान करती ये पोस्ट सुन्दर है|

विभूति" said...

मार्मिक अभिवयक्ति....

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग said...

Sachmuch bantwara mein sirph jamin hi nahi banti pyar bhi bant jata hai bahut achhi rachna

Sunil Kumar said...

बागबाँ फिल्म की याद आ गयी काश ऐसा ना हो ......

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...





आदरणीया कनुप्रिया जी
सस्नेहाभिवादन !

बटवारा हो गया रचना के लिए आभार और साधुवाद !
आज मां-बाप की जो हालत हो रही है उसका यथार्थ चित्रण किया है आपने …

सारे दृश्य-बिंब जीवंत हैं आपकी कविता में

आपकी अन्य रचनाएं भी प्रभावित करती हैं …

दीपावली की अग्रिम बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार

दिगम्बर नासवा said...

हो गई तकसीम अब्बा की हवेली
माँ तभी से हो गई कितनी अकेली ...

इस शेर की याद करा डी आपकी रचना में .. बहुत मार्मिक ...

Kunwar Kusumesh said...

बहुत बढ़िया .

Amrita Tanmay said...

सहजता से सत्य को उभरा है.उम्दा .बधाई.

Hema Nimbekar said...

बटवारे का बहुत ही सही चित्रण किया है आपने....मार्मिक और उम्दा रचना....

संयुक्त परिवार से निकले छोटे छोटे परिवारों में बड़े-बूढों का दर्द.....बागबां के दिल की चीख पुकार को एक कविता का रोप बहुत सहजता से आपने उकेरा है.....इस रचना के लिए आपको बधाई हो..

Anonymous said...

nice y0u hit it on the dot will submit to digg