Sunday, October 2, 2011

बस यूं ही bas yun hi


मुझे खुद से बस एक ही तकलीफ रहती है
तू जब सामने नहीं होता तभी करने को बातें खूब रहती है

मैं तुझसे दूर रहकर भी अकेले चल ही लेती हू
पर तेरा साया नहीं होता तभी दुखों की धूप रहती है
तेरे बिन ज़माने की बातें  सुनना हो जाता है मुश्किल
तेरे होने से जिंदगी थोड़ी महफूज रहती है

बदलते वक़्त के संग मोहब्बत के रंग बदल गए
बदल जाएगा ये मौसम यही उम्मीद रहती है

किसी को दर्द देने के बहाने  लाख होते है
थोड़ी सी मुस्कराहट देकर देखो  ख़ुशी महफूज रहती है

हमेशा ना ही करना सबसे आसान पहलु है
एक कदम तो बढाओ कदमो  में जन्नत रहती है


कोई किसी के बिन नहीं मरता ये कवडा सच है दुनिया का
मगर अपनों के संग ही तो जिंदगी जेसे महबूब रहती  है. 


सिर्फ साँसों का चलना ही अगर जिंदगी की शर्त  बन जाए 
तो मान लो हर शख्श में इक लाश रहती है


आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बेहतरीन पंक्तियाँ...

induravisinghj said...

Beautiful....

शाहजाहां खान “लुत्फ़ी कैमूरी” said...

wah........achhi ghazal hai....kahin-kahin misre bahar aur wazan me nhi hain...achha laga.KEEP IT UP.

Anonymous said...

बहुत खूबसूरत अहसास समेटे ये ग़ज़ल लाजवाब है |

shvetilak said...

uff! dil jeet liya aapne...bahut sundar abhi vyakti!