वो जब भी आसमाँ के उस छोर को देखती है जहा से आगे उसकी नजर नहीं जाती, तब हर बार यही सोचती है उड़ जाऊ कही दूर इस पिंजरे से जहाँ अपने पंखों के कुचले जाने का डर ना हो , सोचने लगती है हमेशा धरा और आकाश के प्रेम के विषय में .सोचने लगती है पंछियों की उन्मुक्त दुनिया के बारे में.हर सुबह जब वो जगती है यही सोचती है आज का दिन अच्छा होगा ,आज मुस्कुराहटें खेलेगी चेहरों पर ,आज सब कुछ उसकी सोच की तरह एक दम परफेक्ट होगा पर ये परफेक्ट की परिभाषा हर बार मात दे देती है उसे ,क्यूंकि वो बस यही सुन सुन कर बड़ी हुई है की दुनिया में कुछ भी परफेक्ट नहीं होता . पर गलत है ये बात क्यूंकि ,एक चीज हमेशा से परफेक्ट होती है वो है उम्मीदें ,उम्मीदें जो दुसरे उससे करते हैं और वो दूसरों से करती है ,ये उम्मीदें हमेशा से परफेक्ट होती है कभी कोई कमी नहीं होती और उम्मीदों का टूटना तो उससे ज्यादा भी परफेक्ट होता है .
वो सोचती है दुनिया में हर तकलीफ,दुःख ,परेशानी अपने आप में परफेक्ट होती है या उसके एकदम करीब. रोज देखती है अपने घर की खिड़की से कई लोगो को और हर किसी को देखकर सोचती है ये दौड़ लगा रहा है परफेक्ट होने के लिए और एक दिन आएगा जब ये भी मान लेगा की दुनिया में कुछ भी परफेक्ट नहीं होता . उसके घर में कांच के गिलास नहीं टूटते ये परफेक्ट उम्मीदें टूटती हैं हर रोज जब ये टुकड़े उसके दिल में कही चुभते हैं तो कही से एक और उम्मीद सर उठा लेती है आज नहीं तो कल सब परफेक्ट होगा और सच मानिये ये उम्मीद भी पिछली वाली उम्मीद की तरह एकदम परफेक्ट होती है .
वो सोचती है दुनिया में हर तकलीफ,दुःख ,परेशानी अपने आप में परफेक्ट होती है या उसके एकदम करीब. रोज देखती है अपने घर की खिड़की से कई लोगो को और हर किसी को देखकर सोचती है ये दौड़ लगा रहा है परफेक्ट होने के लिए और एक दिन आएगा जब ये भी मान लेगा की दुनिया में कुछ भी परफेक्ट नहीं होता . उसके घर में कांच के गिलास नहीं टूटते ये परफेक्ट उम्मीदें टूटती हैं हर रोज जब ये टुकड़े उसके दिल में कही चुभते हैं तो कही से एक और उम्मीद सर उठा लेती है आज नहीं तो कल सब परफेक्ट होगा और सच मानिये ये उम्मीद भी पिछली वाली उम्मीद की तरह एकदम परफेक्ट होती है .
कितना सोचती है ना वो ?उसके हाथों में, पैरों में चाहे सरपट भागने का दम ना रहे पर पर उसकी ये सोच भागती रहती है बिना रुके लगातार .पहले भी एसे ही भागती थी उसकी सोच तब अम्मा कहती थी गुडिया इतना नहीं सोचा कर इतना सोचना लड़की जात के लिए ठीक नहीं ,और जब भी अम्मा कहती थी वो चिढ़कर टाल देती थी हुह लड़की जात के लिए कुछ भी ठीक ना है अम्मा पर ठीक तो बस इतना है की वो उम्मीदें ना करे किसी से पर दूसरों की उम्मीदों को ना तोड़े ,तुम भी तो यही करती आई हो ,पर मैं ना करूंगी एसा.कभी ना करुँगी .मेरी दुनिया में बेबसी ना होगी,ना किसी पर इतनी निर्भरता की अपने मन की छोटी छोटी खुशिया भी छोडनी पड़े
पर अब समझ आता है उसे क्यों कहती थी अम्मा एसा .कभी कभी सोचती है आंसू दुनिया में उसके सबसे प्यारे साथी हैं कम से कम ये तो उसका साथ नहीं छोड़ते , उसे अकेला दीवारों से सर टकराने के लिए मजबूर नहीं करते ,कभी कभी उसे लगता है कभी कभी दुःख इतने अपने से लगने लगते है हैं की कही से अचानक सुख आ भी जाए तो आँखों पर विश्वास ही नहीं हो शायद .
कई बार वो वो इस बात पर पूरा विश्वास कर लेती है की इंसान को अपने कर्मो की सजा इसी जनम में भोगकर जानी होगी और जेसे ही ये विश्वास घर जमाता है वो अपने पाप ढूँढने लगती है, वो बददुआएं टटोलने लगती है जो कभी उसको मिली होगी पर जब जब गठरी में कुछ एसा दिखाई नहीं देता जो उसके इस खालीपन के अभिशाप का कारन दिखाई दे तो वो फिर ये मान लेती है की पिछले जनम के पाप ज्यादा होंगे जो इस जनम में ट्रान्सफर कर दी चन्द्रगुप्त ने .कभी कभी डर जाती है इस बात से की उसकी दुआ , बद्दुआ बड़ी जल्दी लगती है तब उसे हर बार भस्मासुर की कहानी याद आ जाती है जिसमे वो अपने ही सर पर हाथ रखकर खुद को राख कर लेता है और ये सोचकर ही वो सिहर जाती है की कही उसने खुद कभी खुद को ही बद्दुआ तो नहीं दे दी अनजाने में ?
कभी कभी सोचती है प्यार दुनिया की सबसे भली चीज है पर इससे कई ज्यादा बार वो ये सोचती है की प्यार दुनिया की सबसे बुरी चीज है क्यूंकि वो आपको सारी दुनिया से दूर कर देता है और एक दिन एसा आता है जब प्यार से लगाईं हुई आपकी सारी उम्मीदें दम तोड़ देती है और ये दुनिया भी आपका साथ नहीं दे पाती क्यूंकि प्यार के लिए आप कब का दुनिया को छोड़ चुके होते है .फिर कुछ नहीं होता आपके पास, ना पैसा ना प्यार और ना ये दुनिया .पर फिर सोचती है ये उतना भी बुरा नहीं क्यूंकि तब आपके पास सोचने के लिए कुछ तो होता है चाहे अच्छा या बुरा पर कुछ तो.....
कभी कभी लगता है जैसे प्यार में दिल से ज्यादा दिमाग का इस्तेमाल किया जाना चाहिए ताकि कोई अपने प्यार से की हुई उम्मीदों के टूटने से ना टूटे पर फिर अपनी इस सोच पर खुद ही मुस्कुरा देती है क्यूंकि जहा तर्क होते हैं वहा प्यार कैसे हो सकता है बस विश्वास होता है जो या तो मजबूत होता है या बार बार टूटकर अगली उम्मीद की नीव पर फिर खड़ा हो जाता है.और बस ये सोचते ही उसकी खुले आकाश में उड़ना भुलाकर पिंजरे में रहना भला लगने लगता है . सच है प्रेम तो प्रेम है इसमें कोई तर्क नहीं होता......
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी(चित्र गूगल से साभार )
14 comments:
प्रेम में कोई तर्क नहीं होता ...
ठीक ही है , मगर जीवन तो तर्कों पर ही जीना होता है ...
उम्र भर हम इसी चकरघिन्नी में फंसे होते हैं ...
बहुत अपनी सी लगी आपकी भावाभिव्यक्ति !
शुभकामनायें!
सुन्दर और सार्थक पोस्ट के लिए बहुत- बहुत आभार .
सच कहा, तर्क से परे है प्रेम।
सही बात काही आपने।
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
प्यार सिर्फ प्यार है,हर तर्क-वितर्क से परे...
Bahut hi sundar rachna.
बहुत सुन्दर ||
बहुत-बहुत बधाई ||
भावनात्मक परिपक्वता का कोई विकल्प नहीं है।
बड़ा कॉम्प्लेक्स सब्जेक्ट है प्रेम का!! :)
वैसे भी प्रेम किसी आग्रह या प्रयाश वश तो होता नही, यह स्वाभाविक सा बस हो जाता है, इसपर किसी का क्या जोर। सब अच्छा निभ गया तो सुख-अमृत अथवा एक कसौटी भरी राह जहाँ इक मीठा जहर ही पीना पड़ता है। कहते हैं-
यह इश्क नहीं आशाँ, बस इतना ही समझ लीजे।
इक आग का दरिया है, और डूब के जाना है।
सुंदर प्रस्तुति के लिये बहुत-बहुत बधाई।
किसी से पल भर में प्रेम हो जाता है और किसी से लाख चाहने पर भी नहीं होता। इसलिए यह तर्क से परे चीज है।
प्यार हो जाता है - प्यार किया जाता है. और भी अच्छा होता है यदि प्यार सोच-समझ कर और ज़िम्मेदारी से किया जाता है.
आपके विचारों से सहमत. बढ़िया आलेख.
behad accha likha hai.........mushkil hai dil se gurez rakhna!
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