Saturday, June 25, 2011

माँ मुझे घर याद आता है...

माँ मुझे घर याद आता है...
हर ख़ुशी में हर गम में
प्यार ज्यादा हो चाहे कम में
माँ मुझे घर याद आता है

अब पता चला मुझे
क्यों भर आती थी आँखे तुम्हारी
जब पापा मेरे सर पर हाथ फेरते थे प्यार से
या तुम भीच लेती थी अपने आँचल में दुलार से
मुझे रात रात भर जगाता है.....
माँ मुझे घर याद आता है........

अब समझ आया क्यों तुम कहती थी बार बार
बेटा संभल के जाना,बाहर का मत खाना
क्यों लगाती थी फ़ोन  दिन में कम से कम १ बार
मेरी चिंता ही थी ना वो जो घेरे रहती थी तुम्हे?

बस यही ख्याल अब मुझे सताता है
माँ मुझे घर याद आता है.....

अब पता चला क्यों रातों को उठ कर बैठ जाती थी तुम अचानक
और आ जाती थी मेरे सिरहाने ,मेरे बालों में हाथ फेरने के लिए
माँ अब में उठ जाती हू अचानक रातों को तुम्हे याद करते हुए
तुम्हारी आवाज़ मुझे वेसे ही तड़पा  देती है अब

क्या करू  तुम्हारे साथ बिता हुआ हर पल बहुत लुभाता है
माँ मुझे घर याद आता है ........

अब अहसास हुआ हुए क्यों तुम नानाजी की आवाज़  सुनकर 
चुपके से पोंछ  लेती थी अपनी पलकों पर उभर आए आंसू 
और मुस्कुरा देती थी हमें देखकर एक आत्मतृप्ति  की भावना के साथ
जेसे कह रही हो में खुश हु तुम लोगो के साथ

बस वही अनकहा संवाद अब मुझे सताता  है 
माँ मुझे घर याद आता है.....

2 comments:

Anonymous said...

Interesting site. Great post, keep up all the work.

Madan Mohan Saxena said...

शब्द नहीं कहने को ,आत,आत्मा अकुलाई है ,
आपने भी क्या खूब ,ये पंक्तियां पढवाई हैं ,
सुंदर शब्दों का चयन , संयोजन कर के लाई हैं ,
दिल से निकली ,रचना ये मन को हमारे भाई है बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
http://madan-saxena.blogspot.in/
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