Saturday, June 18, 2011

एक नया आगाज़

फिर रात की चादर हटाकर दिन निकल आया
चलो इक बार फिर जिंदगी की शुरुआत करते है...

तुम अपने खुदा का सजदा कर लो मैं अपने इष्ट को पूज लू
फिर दोनों राहे जिंदगी पर एक दूसरे के साथ चलते है

वो देखो दूर कही से पंछी उड़कर आते है...
वो भी शायद हमारी दोस्ती  की बात करते है...

चलो चलते है उस मंजिल  जहाँ बस मोहब्बत हो
जहाँ बंद हो जाए सब रस्ते आओ  वही से आगाज़ करते है


हम तुम सिक्के के दो पहलु ,या नदी के दो किनारे है
फिर क्यों लोग हमको जुदा करने की बात करते है

आओ बरसात की बूंदों के साथ धो डालें सब शिकवे
गिलें मिट जाए सब दिलों से बस यही दुआ दिन रात करते है....



1 comment:

Anonymous said...

nice y0u hit it on the dot will submit to digg