Thursday, January 12, 2012

तुमने देर कर दी आने में

आज सुबह से बादल कुछ  ज्यादा काले से दिख रहे हैं और मेरी आँखों  का कालापन ज़रा सा कम लगता है या शायद आज काजल कुछ कम लगाया मैंने   ...काजल देखा है ना तुमने?देखा ही होगा कैसा बेतुका सा प्रश्न कर लिया मैंने...क्या करू बेतुके सवालों में मज़ा आता है मुझे. तुम्हारी याद में आजकल आँखें लाल सी रहती है बस यही लाल रंग दबाने के लिए काजल ज़रा ज्यादा लगाने लगी हू ....वो जो सूना सा बादल दीखता है ना दूर आकश में कोई नहीं जानता ये बात कल रात को वो  चुपके से मेरी आँखों से काजल चुरा ले गया और पानी भी...देखो ना केसी कालिमा छा गई है पूरे अम्बर में ...सालों से सूखा पड़ा है लगता है इस साल जम के बारिश होगी ....
और मेरी आंखें? हाँ वो सूखी ही रह जाएगी  लगता है इस साल..वैसे भी तुम्हारी याद में जो पानी मैंने आँखों से बहाया है उसे गर इकठ्ठा कर लेता कोई तो ये सूखा कभी पड़ता ही नहीं...

बादल अपने साथ मेरे मन  का सारा नमक भी ले गया कल. कितने जतन से संभाले रखा था सारा नमक सोचा था जब तुम मिलोगे घड़े में से थोडा पानी लेकर  ये नमक मिलाकर पिलाऊंगी  तुम्हे अरे !डरो मत खारा  नहीं लगता ये पानी आखिर में भी तो बरसों से आंसू के साथ पी  रही हू इसे...चलो तुम्हारे लिए अपनेपन की थोड़ी शक्कर भी मिला दूंगी  पर अब कैसे?अब तो पानी ,नमक सब गया,तुम ने बड़ी देर कर दी आने में.....अब मेरे आंसू ,सारी दुनिया के हो गए.......हम तुम रीते रह गए पर देखना पूरी दुनिया में हुई बारिश से जमकर बहार आएगी इस बरस..........


काश कोई चित्रकार  उस हरी भरी दुनिया का चित्र उकेर पाता अपनी कूची से, काश ! तुम ही चित्रकार  होते में शब्द लिखती और तुम चित्र बनाते ,ये जो यहाँ वहा सारी दुनिया में बिखरे पड़े है मेरे शब्द इन्हें तुम एक केनवास दे देते और जो बहार आने को है मेरे आंसुओं से ,उसे भी तुम सुन्दर रंग दे पाते ,चलो अच्छा जानेदो   तुम चित्रकार नहीं होते तब भी तुम्हे मूर्तिकार होना था एक सांचा बना लेते तुम और मेरी मूर्ती गढ़ लेते अगर बादलों को देने के लिए मेरे पास पानी कम पड़ जाता तो वो मूरत अपने थोड़े आंसू दे देती.....

जानते हो वो बादल कितना खुश था मेरे आंसू लेकर ? तुम कैसे जानोगे तुम गर जानते ही होते मेरे मन की बातें तो ये नमक ना जमता  ना बारिश होती कहीं...  खेर शायद किसी का दर्द ले जाने की ख़ुशी थी उसे , पर वो कहाँ जानता है वो सिर्फ आंसू ले गया दर्द तो जमा ही रह गया ठीक वैसे ही जैसे उबलने पर सारी अशुद्धियाँ हवा हो जाती हैं या उपरी सतह पर आ जाती है और जमी रह जाती है शुद्ध खालिस  धातु या फिर पानी में नीचे जम जाती है अशुद्धियाँ और साफ़ पानी ऊपर आ जाता है जानती हू विरोधाभास है बात में पर ख़ास बात तो है अशुद्धियों का हट जाना बस वही सारी अशुद्धियाँ हटाकर मेरा दर्द एकदम खालिस हो गया है आजकल...इसीलिए वो बादल ना ले जा पाया उसे....अच्छा हुआ वो ना ले सका  तुम तो अब लौटे हो मेरे जीने का सहारा तो अब तक वही रहा है...सच कहू तुमसे ज्यादा तो तुम्हारे दिए दर्द से प्यार हो गया है मुझे.....सब कुछ आता जाता है पर वो नहीं जाता....

अब तुम जाओ मेरी बातें और तुम्हारी यादें कभी ख़तम नहीं होगी....पर तुम यही बेठे रहे तो में फिर तुम्हारी आँखों में भटक जाउंगी....अरे नहीं तुम मेरी आँखों में भटकने की कोशिश मत करना डूब जाओगे किसी अंधियारे  कुए में फिर में चाहकर भी तुम्हे बचा नहीं पाऊँगी....बहुत अँधेरा है इसीलिए तो बादल भी काजल ले जाता है मुझसे....पर इस कालिमा का असर तुम्हारे उजले कपड़ों पर ना हो जाए....और कपड़ों से  ज्यादा  तुम्हारी चमकती आँखों में ये  गहरा  अँधेरा दाग  ना लगा  दे  कहीं  ...जाओ लौट  जाओ तुम पर अबकी  बार  हो सके  तो ज़रा  जल्दी  आना  ताकि बादल तुमसे पहले आकर सारा नमक ना चुरा ले जाए....

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

9 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति,बेहतरीन अभिव्यक्ति.लेखन शैली अच्छी लगी,....बधाई समर्थक बने तो खुशी होगी,मेरी पिछली पोस्ट जिंदगी देखे,...
--जिंदगी --

अनुपमा पाठक said...

सुंदर!

मेरा मन पंछी सा said...

बेहतरीन अभिव्यक्ती..

प्रवीण पाण्डेय said...

बादल घिरकर बरसेंगे, सब खारापन घुल जायेगा।

vidya said...

बहुत सुन्दर....
दिल को छू गयी...

Atul Shrivastava said...

क्‍या बात है.....
जज्‍बातों का खूबसूरत तूफान....

Smart Indian said...

वाह भई वाह!

देवेंद्र said...

अच्छी है दिल की गुफ्तगू। कुछ यूँ कह लें कि- मैने तो बादल से भी बस आग बरसते देखा हैं।

Anonymous said...

Only want to say your article is brilliant.