Thursday, May 26, 2011

कहाँ से लाऊं

तू चाँद का टुकड़ा और में अँधेरे की खुरचन
तुझे अँधेरे से बचा ले वो दीपक कहाँ से लाऊं

तू सुंदरवन का फूल ,मैं बीहड़ो का कंटक
तुझे दर्द से बचा ले वो दामन कहाँ से लाऊं

तू शीतल पुरवाई,मैं विध्वंसकारी आंधी
तुझे कष्ट से बचा ले वो घर आँगन कहाँ से लाऊं

तू शरद पूर्णिमा की चांदनी , मैं सूर्य का प्रचंड ताप
तुझे ताप से बचा ले वो चन्दन कहाँ से लाऊं

तू सुघढ़ नृत्यांगना मैं बंजारा नर्तक
हमें इक ताल पर नचा ले वो नर्तन कहाँ से लाऊं

तू पूजा की ज्योति, मैं  विद्रोह की चिंगारी
तेरी पवित्रता बचा ले, वो प्रेम पावन कहाँ से लाऊं

5 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 15/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Prakash Jain said...

Adbhut

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अच्छी प्रस्तुति

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बढ़िया प्रस्तुति...
सादर...

Anonymous said...

Beautifully written blog post. Delighted Im able to discover a webpage with some insight plus a very good way of writing. You keep publishing and im going to continue to keep reading.