तू चाँद का टुकड़ा और में अँधेरे की खुरचन
तुझे अँधेरे से बचा ले वो दीपक कहाँ से लाऊं
तू सुंदरवन का फूल ,मैं बीहड़ो का कंटक
तुझे दर्द से बचा ले वो दामन कहाँ से लाऊं
तू शीतल पुरवाई,मैं विध्वंसकारी आंधी
तुझे कष्ट से बचा ले वो घर आँगन कहाँ से लाऊं
तू शरद पूर्णिमा की चांदनी , मैं सूर्य का प्रचंड ताप
तुझे ताप से बचा ले वो चन्दन कहाँ से लाऊं
तू सुघढ़ नृत्यांगना मैं बंजारा नर्तक
हमें इक ताल पर नचा ले वो नर्तन कहाँ से लाऊं
तू पूजा की ज्योति, मैं विद्रोह की चिंगारी
तुझे अँधेरे से बचा ले वो दीपक कहाँ से लाऊं
तू सुंदरवन का फूल ,मैं बीहड़ो का कंटक
तुझे दर्द से बचा ले वो दामन कहाँ से लाऊं
तू शीतल पुरवाई,मैं विध्वंसकारी आंधी
तुझे कष्ट से बचा ले वो घर आँगन कहाँ से लाऊं
तू शरद पूर्णिमा की चांदनी , मैं सूर्य का प्रचंड ताप
तुझे ताप से बचा ले वो चन्दन कहाँ से लाऊं
तू सुघढ़ नृत्यांगना मैं बंजारा नर्तक
हमें इक ताल पर नचा ले वो नर्तन कहाँ से लाऊं
तू पूजा की ज्योति, मैं विद्रोह की चिंगारी
तेरी पवित्रता बचा ले, वो प्रेम पावन कहाँ से लाऊं
5 comments:
कल 15/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
Adbhut
अच्छी प्रस्तुति
बढ़िया प्रस्तुति...
सादर...
Beautifully written blog post. Delighted Im able to discover a webpage with some insight plus a very good way of writing. You keep publishing and im going to continue to keep reading.
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