वो सारी लड़कियां हाँ वो सब की सब
जेसी हैं वेसी थी नहीं
वो बनाई गई वैसी ,गढ़ा गया उन्हें
धीरे धीरे जैसे जहर दिया जाता है ठीक वैसे ही
उनमे से कई को दिया गया
पढने लिखने का अधुरा सा हक
दूध के आधे ग्लास की तरह
जिसमे बची हुई आधी जगह
में ठूस ठूस कर भरा था
एक अहसान का भाव
और इस तरह उन्हें सिखाया गया
की कैसे भेद भाव किया जाता है
ताकि वो अपनी अगली पीढ़ी को सिखा सके
ठीक उसी तरह जैसे उन्हें सिखाया गया
उन्हें बचपन से इस्तेमाल किया गया
चाची ,बुआ ,मामियों की बातें
चुपके से सुन लेने के लिए
बनाया गया उन्हें छोटे छोटे
षडयंत्रो का हिस्सा
ताकि वो बड़ी होकर
बेझिझक होकर रच सके एसे ही छोटे मोटे षडयंत्र
और उलझ जाए ताउम्र इस सब षडयंत्रो में
उन्हें सिखाई गई चुगलियाँ
बताई गई उनकी बेबसी
दिया गया एक परमेश्वर
जिसे पति कहा गया
और दी गई संस्कारों की एक पोटली
जिसमे पत्नी धरम, बहु धर्म
स्त्री धर्म ,माँ धर्म न जाने कितने ग्रन्थ
बांधे गए और लाद दी गई ये पोटली
ताकि तो धर्म निभाते निभाते हो जाए भीरु
और दे सके ये सब अपनी बेटियों को
उन्हें कई बार दी गई शस्त्र शिक्षा
पर वो दी गई सिर्फ आत्मरक्षा के लिए
नहीं दी गई शत्रु संहार की शिक्षा
ताकि वो अपने आप को समझ बैठे
किसी की पूँजी या खजाना
और बस इस पूँजी रक्षा को ही अपने जीवन का
एकमात्र उद्देश्य समझ बैठे .......
पहले बनाया गया उन्हें अजीब सा
और फिर बनाए गए उनपर चुटकुले
लिखे गए उनके लिए नए शब्द
जैसे चुगलखोर, गृह राजनीतिज्ञ
लड़ाया गया उन्हें एक दुसरे से
ताकि वो खिचती रहे इक दुसरे की टांग
बताया गया उन्हें की घर पर राज कर लिया
तो दुनिया पर राज समझो
अपने पति और बेटे को बस में किया
तो सब कुछ पा लिया
और बस वो इन्ही संघर्षों में चुक गई
और उनने चुका दी अपनी बेटी और बहु की जिंदगी भी
इसी खीचतान में ...............
उनमे से कुछ ने किया विरोध
कुछ ने नहीं किया जिनने नहीं किया
वो खुश है , सुगढ़,है अच्छी बहु बेटियां है
जिनने विरोध किया वो चरित्रहीन ,असभ्य ,बेशरम कहलाई
क्यूंकि उनने चुगलियों की जगह चुनौतियां अपनाई
उनने ग्लास के दूध पर ध्यान दिया उसके वजन पर नहीं
उन्होंने अपनी पारंपरिक छवियाँ तोड़ दी
और परंपरा तोड़ने वालियां वो सब हो गई
बुरी औरतें ...क्यूंकि वो वेसी अच्छी नहीं बनना
चाहती जेसी उन्हें सब बना देना चाहते थे ...
अब वो किसी की प्यारी नहीं पर खुद से प्यार करती है…
क्यूंकि वो बुरी औरतें है अच्छी नहीं ,,,,,,,,,,,,,,,
2 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार <a href="http://charchamanch.blogspot.in/ चर्चा मंच <a href=" पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वे वैसी ही बन जाती हैं, जैसे उन्हें ढाला जाता है।
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