Wednesday, August 22, 2012

तुम्हारे लिए Just For you

तुम्हारे नाम के अक्षर
मेरे सपनो को गढ़ते हैं 
तुम्हारी मुस्कुराहटों से 
मेरे दिन रात चलते हैं
की "ल " से लक्ष्य है मेरा 
जनम भर साथ निभाना 
तुम्हारे साथ ही जीना 
तेरे ही संग मर जाना 



जो "क" से कृष्ण कह दू तो 
कही ज्यादा ना इतराना 
सुनेगा नाम जब तेरा तो 
ताने देगा ये ज़माना 

तुम "श " से शास्त्र जीवन का
मुझे अपने से बांधे हो 
परिंदे हो हवा के तुम 
पर मेरे बिन तुम भी आधे हो 

 मेरे इश्वर नहीं हो तुम 
पर उससे कुछ कम भी नहीं
ना पूजुंगी कभी तुमको 
साथी रहना बंधन नहीं 

तुम्हारा प्रेम जीवन है 
ये रास्ता तुमने दिखाया है
तुम्हे सबसे ज्यादा अपना समझू
तुम्ही ने तो सिखाया है 

कहो कहते हो क्या बोलो
चलोगे साथ क्या मेरे ?
अग्नि के आस पास से गहरे हैं 
अपने मन के पड़े फेरे.......

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

14 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

इतने प्यारे "द" से "दिल" लटका कर बुलाओगी तो कौन न करेगा :-)

सुन्दर रचना....

अनु

संध्या शर्मा said...

मन के फेरों का अटूट बंधन... निश्छल, पवित्र, समर्पण भाव...

Pallavi saxena said...

अग्नि के फेरों से ज्यादा मन के फेरों की अहिमीयत ही ज्यादा और सही मायने रखती है। सबसे खूबसूरत और सार्थक पंक्तियाँ यही हैं इस काव्य की ... :)

प्रवीण पाण्डेय said...

शब्दों की कारीगरी..बहुत सुन्दर..

कविता रावत said...

bahut sundar prastuti..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह!!!! क्या बात है,निश्छल समर्पण भाव की बहुत सुंदर प्रस्तुति ,,,

RECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,
RECENT POST ...: प्यार का सपना,,,,

Saras said...

WAAH....BAHUT SUNDAR.

Prakash Jain said...

Agree to Anuji...:-)

Bahut sundar panktiyan

kanupriya said...

anu ji bda pyara comment . Ab ek bat aur btati hu mere husband ka naam lokesh he,aur ye unhi k lie likhi he.ab to apko a se sare akshar mil jaenge kavita me.

Anju (Anu) Chaudhary said...

बेहद खूबसूरत रचना

bkaskar bhumi said...

कनुप्रिया जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'परवाज' कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 25 अगस्त को 'तुम्हारे लिए...' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव

Dr Varsha Singh said...

बहुत ही बेहतरीन रचना......

mridula pradhan said...

अग्नि के आस पास से गहरे हैं
अपने मन के पड़े फेरे.......bahot achche....

सदा said...

वाह ...बेहतरीन