Wednesday, August 8, 2012

तुम पिया कृष्ण हो राधा नहीं हो

तुम पिया कृष्ण हो राधा नहीं हो
तुम सम्पूर्ण हो आधा नहीं हो
प्रेम की मूर्ति तुम मैं भक्तिनी सी 
थोड़े चंचल से तुम ,ज्यादा नहीं हो 

गहन जंगल से हो तुम रात्रि के
कभी दूत हो तुम शांति के 
तुम्हे पाना बड़ा आसान सा है 
मेरा मन पर तुम्हे पाता नहीं है
तुम आनंद हो  उत्सव हो मेरा 
मेरे जीवन का तुम उजला सवेरा
समर में जाना निर्णय तुम्हारा 
हुआ वियोग क्यों सिर्फ मेरा ?

तुम्हारी लीलाएं कितनी भली थी
मैं आँखें मूंदकर पीछे चली थी 
तुम्हारा कर्तव्य तुम्हारी प्रेरणा था 
मेरा वियोग भी कितना घना था 

सम्पूर्ण द्वारिका पीछे खडी थी 
पर "कनु " मै भी तो प्रिया तेरी थी 
तुम मुझे प्रेम में बांधे रहे थे
पर तुम मेरे पंख हो मर्यादा नहीं हो .....
इस पोस्ट को भास्कर भूमि  (10 अगस्त 2012) देखा जा सकता है 

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

6 comments:

Madan Mohan Saxena said...

बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है रचना.
उम्दा पंक्तियाँ ..

http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/

vandana gupta said...

सुन्दर भाव

प्रवीण पाण्डेय said...

सच है, दूसरे भाग को समझना तो बहुत ही कठिन है।

bkaskar bhumi said...

कनुप्रिया जी नमस्कार...
आपके ब्लॉग 'परवाज' से कविता भास्कर भूमि में प्रकाशित किए जा रहे है। आज 10 अगस्त को 'तुम पिया कृष्ण हो राधा नहीं हो' शीर्षक के कविता को प्रकाशित किया गया है। इसे पढऩे के लिए bhaskarbhumi.com में जाकर ई पेपर में पेज नं. 8 ब्लॉगरी में देख सकते है।
धन्यवाद
फीचर प्रभारी
नीति श्रीवास्तव

Vinay said...

क्षमा करें यदि...
CTRL+A और फिर राइट क्लिक करके सब कुछ कापी हो गया तो आपका ब्लॉग सुरक्षित कैसे?

इससे भी बेहतर स्क्रिप्ट...
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संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत रचना ॥