Wednesday, August 29, 2012

डायरी के पन्नो में वो लड़की

मैं फेसबुक पर लिखने की आदि हू वहा से कुछ चीज़ें ब्लॉग तक आ पाती  है कुछ वही रह जाती है ...कुछ एसे ही  पेराग्राफ ले आई हू आज ..इन्हें किस श्रेणी में रखा जाए समझ नहीं आ रहा इन्हें मेरी डायरी का हिस्सा माना  जा सकता है 
ज़िन्दगी में पहले प्यार सा पहला कुछ नहीं होता ,ना वेसा रुपहला ना वेसा खूबसूरत....और पहले टूटे प्यार से ज्यादा कुछ इंसान को तोड़ता भी नहीं ..... जिस्म ,रूह सब शायद इन सबके आने जाने से इतना दुःख ना हो जितना उसे अपने पहले प्यार के बिखर जाने से हुआ (ऐसा उसे लगता था ) पर ऐसा होता नहीं सिर्फ पहला कह देने से प्यार सच्चा हो जाए ये ज़रूरी नहीं हर पहले के साथ सच्चा जुड़ा होना ज़रूरी है .....सच्चा प्यार पूरा होना ना हो इंसान को तोड़ता नहीं मजबूत कर देता है....
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लड़की बात में कहती है मैं मर जाउंगी तब तुम समझोगे और लड़का उदास सा दिखने लगता है कुछ क्षणो के लिए और फिर मगन हो जाता है अपनी गढ़ी व्यस्तताओं में ...लड़की की आँखें छलछला जाती है .... फिर वो रूठने के से अंदाज़ में सोचती है मेरी जिंदगी तुम्हारे प्यार और अपनेपन की कमी में मर जाएगी इक दिन तब ही तुम्हे मेरे प्रेम का अहसास होगा...जानती है अगर एसा हो गया तो लड़का बड़ा उदास होगा पर अब वो हार मान चुकी है....
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कभी कभी अचानक से लड़की सोचती है अब उसे इंतज़ार की इतनी आदत हो गई है की किसी दिन अगर मोहब्बत उसके सामने आकर उसकी आँखों में आँखें डालकर खडी हुई तो भी वो शायद उसे पहचान ना पाए...दर्द लिखते लिखते उसे दर्द की आदत सी लगने लगी है एसी आदत जो एकदम अफीम के नशे सी है सारी हवा में मदहोशी फेलाती सी ...थोड़ी देर दर्द की मदहोशी कम हुई की तलब उठने लगती है ,वो लड़का अब उसे चाँद की तरह प्यारा है पाना भी है पर पाना भी नहीं ...उसी को वो कभी तकिया बनाकर रो लेना चाहती है ,कभी उसे दूर से देखकर विरह गीत गा लेती है , वही प्रेमी है वही सखा है ,सारे ताने उलाहने सब उसके हैं....उसे चाहती बहुत है पर अपना बनाना नहीं चाहती....सच है विरह प्रेम से कई ज्यादा गहरा राग है ,और विरह का रिश्ता कई ज्यादा गहरा भी है शायद....
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लड़की कहती है तुम मेरा इनाम कभी थे ही नहीं क्यूंकि इनाम तो जीते जाते है पर मैंने तुम्हारे लिए कोई प्रतियोगिता नहीं लड़ी ,किसी दौड़ में भाग नहीं लिया ना बाधा दौड़ ना सामान्य दौड़ ना रिले रेस ,रिले रेस तो तुम्हारे लिए में कभी दौडती नहीं तुम्हे इक हाथ से दुसरे हाथ में जाते देखना कभी मेरे बस का नहीं था ,तुम्हे एसे पाने से ना पाना शायद बेहतर होता....पर बिना किसी द्वन्द के तुम मेरी झोली में आ गिरे इसीलिए तो दिल कहता है तुम मेरा इनाम नहीं हो तुम तो मेरी ईदी हो बड़ों के आशीर्वाद जेसे एकदम दिल से दिए हुए और दिल तक लिए हुए....
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मैने तुम्हारा प्रेम संसार बड़ी ही बारीकी से गढ़ा हर उस स्त्री की तरह जो प्रेम में अटूट विश्वास रखती है जिसका प्रेम स्वप्न संसार के अधिक करीब होता है पर रचनाकार की वेदना तुम क्या जानो तुम बस हर बार इस संसार का कोई अंश तोड़ देते हो और मुस्कुराते हुए निकल जाते हो ,और मैं ध्वस्त अंश की किरचें समेटने में लग जाती हू ...संसार इस संसार पर ऊँगली उठा सकता है कमी बेशी भी निकाल सकता है उसने इस संसार की रचना के लिए अपनी रूह की मिटटी नहीं लगाईं सच है रचनाकार की वेदना कौन जाने....
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जब जब कसी सड़क से गुजरती हू मेरी दिशा के विपरीत दौड़ते बिजली के तार मुझे तुम्हारे मेरे रिश्ते की याद दिला देते हैं ...मजबूती से हर आग को अपने अन्दर छुपाए हुए रिश्ता ,गलतियाँ किसी दुसरे की और ख़ुद को झुलसा लेने वाला रिश्ता....कुछ ऐसा ही तो गंतव्य तक सही ढंग से पहुंचा तो रौशनी ही रौशनी होगी और अगर कही उलझ गया,कही अटक गया तो तबाही ही तबाही.....
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हाँ हाँ हाँ मेरा दिल कहता है मैं तुम्हे लिख लुंगी इक दिन इक क्षण आएगा जब में तुम्हे लिखकर मुक्त हो जाउंगी पूरी तरह मुक्त और स्वतंत्र ,तब तक तुम अपनी सारी शक्ति एकत्रित कर लो ताकि तुम मेरे शब्दों में लिखे ख़ुद को पढ़ सको....
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किस्सा अगर सिर्फ पूर्णता का होता तो शायद किस्सा कभी होता ही नहीं ,क्यूंकि तब तो हर किस्सा सपाट सा होता पर हर किस्से का किस्सा होना तो उसके उतार चढ़ाव पर टिका है अदृश्य धुरी है ना आज तक ग्लोब के सिवा किसी ने पृथ्वी की देखी और ना ही किसी रिश्ते की...तो पूर्णता की ये बात भी बस अदृश्य सी होती है ..हर बार वो अपना इक हिस्सा तुम्हारे पास भूल आती है और हर बार तुम्हारा हिस्सा अपनी आँखों में ले आती है...दोनों पूर्ण होकर भी अपूर्ण हो ...क्यूंकि तुम्हारी कहानियां नहीं किस्से फैलने वाले हैं कहकशां में...और किस्से कभी पूरे कहाँ होते है....? सही है ना?
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वो लड़का ,उस लड़की के जगती आँखों का सपना हुआ करता था कभी (आखिर असली सपने तो यही होते हैं ना जगती आँखों वाले) पर आज वो नींद के सपनो में भी उसे नहीं देख पाती ,कितनी कोशिश करती है ख़ुद को तैयार करती है की काश वो ! ख्वाबों में आए पर रात को आँख लगने से लेकर सुबह खुलने तक बस अँधेरी खाई का सपना आता है घनी अँधेरी खाई जहा से वो निकल जाने की कोशिश करती है रात भर पर निकाल नहीं पाती....लड़का उसका प्यार था कभी आज भी हो शायद पर अब ये प्रश्न ख़ुद से पूछने की हिम्मत नहीं होती उसकी ना अब समय मिलता है ...रिश्ते बंध जाने के बाद ऐसा ही होता है शायद
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तुम्हारे नाम अब कोई चिट्टी लिखने का मन नहीं करता की जानती हू वो चिट्ठिया मेरे आंसुओं की नमी से कितनी ही भीगी हुई हो तुम्हारे प्रेम की धूप अब उन्हें सुखा नहीं सकती ...की मेरे अक्षर कितना ही तुम्हे खोज लाना चाहे तुम इतने दूर चले गए हो हो अब कोई खोज तुम्हे पा नहीं सकती...शायद प्रेम एसे ही मर जाता है.....हमेशा हमेशा के लिए....

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

7 comments:

लोकेन्द्र सिंह said...

कनु जी, इस प्रस्तुति के सम्बन्ध में मैं कुछ नहीं लिख सकता... हा इतना ही कहूँगा की अपने बेहद सुन्दर शब्द चित्र खींचा है...
फिलवक्त मैं इसे पढ़कर यादों में गम हूँ और भावनाओं में बह रहा हूँ

रश्मि प्रभा... said...

डायरी के पन्नों से एहसासों की कतरनें - सहेजने योग्य

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर....
कोई सीला पन्ना...कोई गुलाबी...कोई महका....कोई बहका...हर सफ्हे में ज़िन्दगी ही ज़िन्दगी....हर लफ्ज़ धड़कता सा...

अनु

प्रवीण पाण्डेय said...

डायरी में छोटी छोटी बातों के बड़े बड़े अर्थ होते हैं।

Anju (Anu) Chaudhary said...

यादगार लम्हें

आशा बिष्ट said...

prem hai hi aisa kitna bhi likho...kuch na kuch baki rah hi jaata hai... bahut sundar..dairy ke panne.... wastav mein es prakar ke panne hi jeena sikhaate hain..

Rohit Singh said...

अब इतनी भींगी हुई लाइने पढ़ पाना बस में नहीं रहा...इसलिए शुरु की दो और फिर आखरी पन्ना ही पढ़ा है डायरी का..या कहें दिल की बातों का..।