Thursday, August 18, 2011

अपने अन्दर के कायर को मार दो.

जंग में ना जा सको तो जाने वालों को आधार दो
नारे ना लगा सको समर में तो कम से कम शब्दों को तलवार दो
और कुछ ना कर सको तो , क्रांति को विस्तार दो
इस बार कम से कम अपने अन्दर के कायर को मार दो.


पथ प्रदर्शन नहीं कर सकते तो, भीड़ को आकार दो
भाषण नहीं दे सकते तो क्रांति गीतों को ही संवार दो
शब्द नहीं दे सकते तो अपनी सोच को विस्तार दो
पर ,इस बार कम से कम अपने अन्दर के कायर को मार दो.

ना सोचो की दुनिया क्या बोलेगी क्या सोचेगी
एक बार करो हिम्मत दुनिया पीछे पीछे चल देगी
अत्याचारों के कचरे को विरोध के झाड़ू  से झाड दो
पूर्ण हवन नहीं कर सकते तो देशभक्ति की एक आहुति ड़ाल दो
पर ,इस बार कम से कम अपने अन्दर के कायर को मार दो.

समर्थन नहीं कर सकते तो रोकने की प्रवत्ति टाल दो
थाम लो हाथ से हाथ और विरोधी को ललकार दो
भारतवासी हो तो भारत का कर्ज उतार दो
देल्ही नहीं जा सकते तो घर की छत  पर ही तिरंगा गाड़ दो
पर ,इस बार कम से कम अपने अन्दर के कायर को मार दो.

13 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

नहीं तो मन का कायर आपको मार देगा।

ममतेश कुमार शर्मा said...

क्या बात है कनु !
आप ने तो बहुत बड़ी बात अपनी इस छोटी सी कविता मैं कह डाली .
सच है कि-
प्रयास हमारे हाथ है ,रव हमारे साथ है .
जीत लेंगे जंग हम ,अच्छी अगर शुरुआत है .
तुम कभी न सोचना यह .कुछ नहीं होगा होगा यहाँ ?
एक दीया तुम जलाना ,यह तुम्हारा हौंसला है .
रोशनी हो जाएगी ,जितनी अँधेरी रात है.
कितनी-भी अँधेरी रात है.

Kunal said...

Bahut achhi baat ki hai aapne :)

Kunal

Shalini kaushik said...

बहुत जोशीली प्रस्तुति बहुत प्रेरणादायक. बधाई

.
वह दिन खुदा करे कि तुझे आजमायें हम .

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत सुन्दर आह्वान...

इसे भी देखें-
एक 'ग़ाफ़िल' से मुलाक़ात याँ पे हो के न हो

Kunwar Kusumesh said...

quite motivating .

kanupriya said...
This comment has been removed by the author.
kanupriya said...

is kavita ko pasand karne ke lie aap sabhi ka dhanyawad

Bharat Bhushan said...

शक्तिशाली ललकार और सामयिक भी.

induravisinghj said...

जोश से भरी सीधा दिल-दिमाग पर असर डालती बेहतरीन रचना...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

कनु जी
नमस्कार !

बहुत प्रेरणादायी है आपका आह्वान …
इस बार कम से कम अपने अन्दर के कायर को मार दो
इतना भर तो करे हर कोई :)

समर्थन नहीं कर सकते तो रोकने की प्रवत्ति टाल दो
थाम लो हाथ से हाथ और विरोधी को ललकार दो
भारतवासी हो तो भारत का कर्ज उतार दो
दिल्ली नहीं जा सकते तो घर की छत पर ही तिरंगा गाड़ दो
पर ,इस बार कम से कम अपने अन्दर के कायर को मार दो

वाकई सराहनीय लेखन ! जितनी सामर्थ्य और शक्ति है , उतना ही फ़र्ज़ निभाएं राष्ट्र के प्रति … भई ख़ूब !

ऐसी ओजस्वी रचनाएं मंच पर बहुत प्रभाव छोड़ती हैं ।

ऐसे ही कुछ भाव मेरी ताज़ा रचना में भी हैं -

मेरी ख़िदमत के लिए मैंने बनाया ख़ुद इसे
घर का जबरन् बन गया मालिक ; जो चौकीदार है

काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है

समय निकाल कर पूरी रचना पढ़ने आइएगा …

हार्दिक मंगलकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार

loks said...

behtareeen prastuti .....:)

Anonymous said...

Just to let you know your site looks a little bit strange in Opera on my laptop with Linux .