Wednesday, August 17, 2011

प्रधानमंत्री निर्दोष है.(व्यंग्यात्मक कविता )

भोला चेहरा ,साफ़ छवि आप अर्थशास्त्र के बॉस है
पर जाने क्यों ना लोग समझते प्रधानमंत्री  निर्दोष है.

घोटालों में देश लुट गया ,इनको कोई खबर नहीं
देश चल रहा अंगारों पर इनपर कोई असर नहीं
जन जन में आक्रोश भरा है पर ये जेसे बेहोश है
पर जाने क्यों ना लोग समझते प्रधानमंत्री  निर्दोष है.



जिसने घोटाला किया उसका पूरा जिम्मा उसपर डाल दिया
जनता ने सवाल किया तो बात घुमाकर टाल दिया
ऊपर से कहते हैं मैंने ना कोई माल लिया
चाहे सारे कर रहे हो पर ,मैंने ना भ्रष्टाचार किया

 सत्ता के  मद में ये होते जाते  मदहोश हैं
पर जाने क्यों ना लोग समझते प्रधानमंत्री  निर्दोष है.

बाबा को डंडों से पीटा, अन्ना को जेल में डाल दिया
जिसने भी आवाज उठाई उसका बुरा हाल किया
सत्ता के गलियारों में चलते टेढ़ी चाल है
महंगाई की मार के आगे पूरा देश बेहाल है

खुद की कार्यप्रणाली  पर इन्हें असीम संतोष है
पर जाने क्यों ना लोग समझते प्रधानमंत्री  निर्दोष है.

प्रधानमंत्री अपनी नीतियों से देश का भविष्य सुधारे है
पर ये तो कुछ भी ना करते एसे भी क्या बेचारे हैं
हमने भ्रष्टाचारियों पर की कार्यवाही बस बार बार यही ज्ञान दिया
देशवासियों मान भी लो इन ने हम पर अहसान किया

हर घोटाले पर कही छुप  जाते शर्म ना कोई शेष है
पर जाने क्यों ना लोग समझते प्रधानमंत्री  निर्दोष है.

20 comments:

Manish Khedawat said...

behatareen !!
liked it :)

induravisinghj said...

Just amazing kanu...

kamal said...

A true picturization of present Indian polical scenario and a great effort to bring the awareness among the people thru poem. Really appreciable. Keep moving ahead like this and write more penetrating poems on the same subject and get it published.

शिखा कौशिक said...

जिसके अधीनस्त भ्रष्टाचारी हो उसका उनके प्रति उपेक्षित रवैया उसे भी संदेह के घेरे में लाता है .बहुत सटीक बात कही है आपने .शुक्रिया
blog paheli

SANDEEP PANWAR said...

ऐसा दमदार लिखा है कि?

kanu..... said...

aap sabhi ka hardik dhanyawad

Anonymous said...

amazing!!!!!!!!!!!

Hina said...

Excellent post. You hit the nail right on head.

kanu..... said...

thnx hina and anonymous

Shalini kaushik said...

देश में फैले भ्रष्टाचार से फैला जन आक्रोश है,
इसीलिए लोग समझते नहीं इन्हें निर्दोष हैं.
सार्थक व् सशक्त प्रस्तुति कनु जी बधाई

Unknown said...

A wonderful apt and witty satire.
You are very talented.
Keep it up.

Mohini Puranik said...

Bahut sahi kaha aapne, kash sabhi yeh samjhe.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अच्छा व्यंग ... ऐसे ईमानदार होने का क्या लाभ ?

रचना said...

अच्छा व्यंग

kanu..... said...

dhanyawad aap sabhi ka is blog post ko pasand karne ke lie

Dr (Miss) Sharad Singh said...

सुन्दर कटाक्ष....

mukesh singh said...

Hi,

I am sharing this post link on facebook.

if u have any issues with that let me know i will remove it.

kanupriya said...

mukesh ji .ye kavita isi lie likhi gai hai ki jan jan tak awaz pahunch.....dhayawad aapka ki aap ise share kar rahe hain

arvind jain said...

kanu ji aapki ye kavita orkut pe aapke name or link ke sath post kar raha hu its a true poem

Anonymous said...

Very useful reading. Very helpful, I look forward to reading more of your posts.