Monday, May 9, 2011

संस्कारों की कहानी तो यही से शुरू होती है

क्या सिखाते है संस्कार...
बचपन से पापा ने सिखाया बेटा संस्कारी बनो,जेसे हर माता पिता अपने बच्चे को अच्छा बनाने की कोशिश करते है वेसे ही या शायद उससे कुछ ज्यादा ही मेरे मम्मी, पापा ने अपनी तरफ से खूब जमकर संस्कारों की घुट्टी पिलाई पर एक फर्क ये था की उन्होंने हम तीन भाई बहनों की आँखों पे पट्टी नहीं बांधी.
संस्कार दिए तो साथ मैं ये भी सिखाया की गलत बात का विरोध करो,अपने विचार खुलकर सामने रखो , अन्याय को  सहन मत करो क्यूंकि अन्याय करने वाले से ज्यादा अन्याय सहन करने वाला दोषी है .उन्होंने सिखाया की किसी गलत प्रथा ,रीती का हमेशा विरोध करो चाहे उसको मानने वाले तुम्हारे माता पिता ही क्यों न हो ,गलत विचार का समर्थन कभी मत करो.
हमारे संस्कारो की नीव इतनी मजबूत बनाई की आदर सम्मान जेसे शब्द सिखाए पर साथ ही विद्रोह जेसे शब्दों का भी ज्ञान दिया .

शायद सही संस्कार यही है... या शायद और भी कुछ पर मैं इतना जानती हु की एक माँ बाप अपनी संतान को जितना प्यार अपनापन ,स्वतंत्र विचारधारा ,और आत्मसम्मान की भावना दे सकते है उसका एक बड़ा हिस्सा हमें धरोहर के रूप मैं मिला.
शायद सभी माँ बाप यही सिखाते है आप सोच रहे होंगे इसमें नया क्या है? और अपने ब्लॉग पर ये सब लिखकर आखिर मैं कहना क्या चाहती हु?

पर कहानी तो यही से शुरू होती है ...सही है हर माँ बाप यही संस्कार देते है,सब अपने बच्चो को अच्छा सिखाते है ,पर ये सिक्के का १ पहलु है दूसरा पहलु सब जानते है पर कोई बोलता नहीं हम आज उसी पहलु पर  बात करेंगे .
हम में से हर कोई कुरूतियों को तोड़ने,गलत के विरोध मैं आवाज उठाने की बातें करते है पर कितने लोग ऐसे है जो खुद किसी  परंपरा को मानते आ रहे है और १ दिन जब उनके बच्चे उस कुरूति का विरोध करते है तो खुले दिल से उस विरोध को स्वीकार कर पाते है?
 
कितने लोग है जो संस्कारो को, परम्पराओं को धरोहर के रूप मैं देते है, पर धीरे धीरे खुद भी लकीर के फ़कीर की तरह उस कुरूति को अन्धो की तरह मानने लगते है और अपने बच्चो को कभी संस्कार, कभी बड़ो का सम्मान और कभी पूर्वजो के बने नियम के नाम पर मानने के लिए मजबूर कर देते है.
कभी कोई विरोध की चिंगारी उठती है तो भी उसे दबा देते है ये कहकर की बड़े जो कहते है बच्चो के भले के लिए ही कहते है....वेसे इस बात मैं कोई दौमत नहीं की हर माँ बाप अपने बच्चो का भला ही चाहते है और जो कहते है भलाई के लिए ही कहते है ,पर ये भी सच है की बदलते समय के साथ कभी कभी पुराने नियम कानून नासूर बन जाते है और बेहतर यही है की  कोई नियम नासूर बने उससे पहले उसे छोड़ दिया जाए .

कभी कभी इंसान नहीं समझ पाता की वो जो सिखा रहा है या जो करने के लिए मजबूर कर रहा है वो या तो गलत है या पूरी तरह सही नहीं है. ऐसे समय मैं जरुरी है बच्चे उसका विरोध करे और ये तभी संभव है जब माता पिता बचपन मैं बच्चो में इस तरह के संस्कार डालें की वो सही का साथ दे सके और गलत का विरोध कर सके .वो गलत चाहे खुद माता पिता ही क्यों न हो.

बच्चो की जड़े मजबूत बनाना ज्यादा जरुरी है ताकि वो अपनी पूरी उम्र मजबूत  रहे और अपने आस पास के लोगो को भी संबल प्रदान करें...

ये तो हुई ज्ञान की बातें .पर, ज्ञान यही खतम नहीं होता ज्ञान तो यहाँ से शुरू होता है......

अगर बच्चो को कुछ   सिखा रहे है तो खुद भी उसका पालन करने की हिम्मत रखना जरुरी है खुद भी अपने व्यवहार मैं वो सब ले जो आप ज्ञान की घुट्टी के रूप मैं अपने बच्चो को दे रहे है.
हाथी के दाँतों की तरह करने और दिखाने मैं अंतर रखना बेवकूफी है...बच्चो को  बड़ो का सम्मान सिखाइए तो ये भी सिखाइए की जब कुछ गलत हो रहा है तो उसका विरोध केसे किया जाए....

 जब आपके बच्चे आपके दिए संस्कारों पर चलने लगे तो उन्हें रोकिए मत हाँ अगर वो गलत ढंग से विरोध कर रहे है तो उन्हें सही रास्ता दिखाए और खड़े हो जाइये उनकी ढाल बनकर पर हाँ ये बात आप पर तब भी लागु होगी जब बच्चे गलत कर  रहे  हो तो  उसका भी विरोध करिए




1 comment:

Anonymous said...

Hello! I just wanted to take the time to make a comment and say I have really enjoyed reading your blog.