Sunday, July 5, 2009

मसलेहत* तो कर ले वक़्त से लेकिन (समझोता)
क्या यही मेरी जिंदगी का फैसला होगा
मस्लेह्तों मैं ही कट जाएगा लम्हा लम्हा
या खुदा फिर मेरे अरमानो का क्या होगा?
शादाब* बेलें सूख जाएगी दिली फैसलों की जिस दिन (हरी)
उस दिन मेरा ज़मीर बड़ा खफा होगा
किसी इमाम* की तकसीम** ही क्यों किस्मत हो मेरी?(अगुआ)(** सलाह)
यही हालात रहे तो इक दिन मेरे ख्यालों क "लम्हे शरार"* का जनाजा होगा (चिंगारी)

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