Tuesday, April 1, 2014

अधूरी चिट्ठियाँ :परवाज़

फ़ोन की लम्बी लम्बी  बातें कभी वो सुकून नहीं दे  सकती जो चिट्ठी के चंद शब्द देते हैं .तुम्हे कभी लिखने का शौक नहीं था और पढने का भी नहीं तो मेरी न जाने कितनी चिट्ठियां मन की मन में रह गई न उन्हें कागज़ मिले न स्याही .तुम्हारे छोटे छोटे मेसेज भी मैं कितनी बार पढ़ती थी तुमने सोचा भी न होगा ,ये लिखते  टाइम तुमने ये सोचा होगा ,ये गाना अपने मन में गुनगुनाया होगा शायद  परिचित सी मुस्कराहट तुम्हारे होठों पर होगी जब वो सब यादें आती है तो बड़ा सुकून सा मिलता है ..और एक ही कसक रह जाती है काश तुमने कुछ चिट्ठियां भी लिखी होती मुझे तो ये सूरज जो कभी कभी अकेले डूब जाता है,ये चाँद जो रात में हमें मुस्कुराते न देखकर उदास हो जाता है तुम्हारे पास होने पर भी जब तुम्हारी यादें आ कर मेरे सरहाने बेठ जाती हैं इन सबको आसरा मिल जाता ..ये अकेलापन भी इतना अकेला न महसूस करता ....अब तो सोचती हु तुमने न लिखी तो में कुछ चिट्ठियां लिख लू  पर जिस तरह  तुम खो रहे हो दुनिया की भीड़ में तुम्हारे दिल का सही सही पता भी खोने लगा है  तुम तक पहुँच भी  गई गई तो जानती हु  तुम पढोगे नहीं .....पर फिर भी मेरी विरासत रहेगी किसी प्यार करने वाले के लिए ..

तुम्हे चिट्ठियां लिखने की तमन्ना होती है कई बार
पर तुम्हारे दिल की तरह तुम्हारे घर  का पता भी
पिछली  राहों पर छोड़ दिया कहीं भटकता सा
अब बस कुछ छोटी छोटी यादों की चिड़िया हैं
जो अकेले  में कंधे पर आ बैठती  है
उनके साथ तुम्हारा नाम आ जाता है होठों पर
और कुछ देर उन चिड़ियों के साथ खेलकर
तुम्हारा नाम भी फुर्र हो जाता है
अगली बार फिर मिलने का वादा करके......
पर सब जानते है कुछ चिट्ठियां कभी लिखी नहीं जाती
कुछ नाम कभी ढाले नहीं जाते शब्दों में 
कुछ लोग बस याद बनने के लिए ही आते है जिंदगी में
और कुछ वादें अधूरे ही रहे तो अच्छा है.....



आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

8 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (02-04-2014) को ""स्थायी मूर्ख" चर्चा मंच 1570 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चैत्र नवरात्रों की शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (02-04-2014) को ""स्थायी मूर्ख" चर्चा मंच 1570 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चैत्र नवरात्रों की शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

रश्मि प्रभा... said...

इस भावों की नदी में कितनी गहराई है - एक छोटा सा msg एक पूरा पन्ना हो जाता है,
....... शायद उसने एक नियम निभाया होगा
मेरी तो दिनचर्या बन गई
काश ! एक ख़त भी होता

संजय भास्‍कर said...

आपकी खासियत यह है कि आप भावनाओं को व्यक्त करने वाले शब्द ढूंढ लाती हैं

संजय भास्‍कर said...

कुछ लोग बस याद बनने के लिए ही आते है जिंदगी में
और कुछ वादें अधूरे ही रहे तो अच्छा है....

कोमल भावों से गुंथी पंक्तियाँ..

Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर ..कल्पना नहीं कर्म :))

dr.mahendrag said...

सुन्दर, आज की पीढ़ी को तो पत्र लिखना ही नहीं आता , कैसे किसको क्या सम्बोधन किया जाता है व कैसे सन्मान दिया जाता है। और अगली पीढ़ी सोच भी न पायेगी कि पत्र भी कोई समाचार का जरिया हो सकता है वास्तव में जो प्रेम अपनापन पत्र से मिलता है ख़ुशी होती है वह फ़ोन से कतई नहीं

Amrita Tanmay said...

बहुत ही सुन्दर लिखा है..

दिगम्बर नासवा said...

गहरे भाव कि सरिता .. प्रेम प्रवाह अब चिट्ठियों में कहाँ बसता है ...