भूख है और उम्र है ,दोनों ही खत्म होती नहीं
प्रसादों जेसे बड़े आवास लेकर क्या करू
उम्र भर की सेवा का मोल दिया न प्रेम से
सम्पूर्ण समर्पण के बदले ,परिहास लेकर क्या करू
बूँद बूँद के लिए तरसे हुए अंतस यहाँ
कागजों के कुएं और तालाब लेकर क्या करूँ
मैं चुनुँगा और को, राज करेगा दूजा कोई
अपने वोट पर ज्यादा विश्वास लेकर क्या करूँ
आएगा कल को कोई, मारेगा भरे बाज़ार में
आतंकियों के शहर में साँस की आस लेकर क्या करूँ
जो आदमी आदमी के खून में अंतर करे
मैं तुम्हारा खोखला इतिहास लेकर क्या करूँ
आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी
5 comments:
बहुत सुंदर उम्दा गजल ,,,
RECENT POST : जिन्दगी.
लाजवाब ... झाक्झोड़ने वाले शेर हैं सभी ... बहुत उम्दा ...
सुंदर और भावपूर्ण ..रचना
बेहतरीन
सादर
बाट जोहती दशकों से अकुलायी माता।
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