Tuesday, May 21, 2013

अब हम सब कुछ हैं बस अब हम प्रेमी नहीं रहे...

 तुम और हम दो ध्रुवो की तरह
दोनों पर ज़िन्दगी टिकी हुई
नहीं हम नदी के दो किनारे नहीं
जो साथ न  होकर भी साथ ही हो

हम तो विज्ञान की पूरी किताब है
न्यूटन के क्रिया प्रतिकिया के सिद्धांत की तरह
जितनी तेज़ी से क्रिया होती है उतनी ही तेजी से प्रतिक्रिया
एक दम नपे तुले
कितने प्रेम में कितनी मुस्कराहट मिलनी है
कितने गुस्से में कितनी सहनशीलता
सब निर्धारित है
कुछ भी अचानक नहीं
कुछ भी अनिर्धारित नहीं

हम सारा भूगोल है
नदियों तालाबों की तरह अपना स्थान बदलते हुए
पर पहचान  नहीं बदलते
ग्रहों की तरह घूमते हुए अपनी कक्षा में
ये  जानते हुए की मिलना या दूर होना दोनों तबाही ला सकते है
हम न मिलते हैं न दूर होते हैं
एक दुसरे से बंधे हुए बस बंधे हुए ....

हम है इतिहास की झलकियाँ
कभी पुरातात्विक मूर्तियों की तरह मनमोहक
कभी जीवाश्मों की तरह गर्त में दबे हुए
हम हैं कुछ और खोजने निकले ,
कुछ और खोज लेने वाले नाविकों की तरह
प्रेम की तलाश में निकले
और प्रेम की तलाश में भटके हुए

हम धार्मिक ग्रन्थ हो गए
और हमारा प्रेम ईश्वरीय आदर्श
हम नैतिक शास्त्र की पाठशाला हो गए
जो मन ही मन निर्धारित करती रही
प्रेम केसा होना चाहिए
क्या सही है क्या गलत
क्या मर्यादा है क्या अमर्यादित
क्या दूसरों को सुखी करेगा
इन सब में उलझ कर रह गया
एक मात्र बंधन ,एकमात्र प्रेम
अब हम सब कुछ हैं
हवा ,नदी ग्रन्थ , ध्रुव ,पंछी ,मूर्ति सब कुछ
बस अब हम  प्रेमी नहीं रहे ..............

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी (chitra google se )

12 comments:

कालीपद "प्रसाद" said...

हम और तुम ,विज्ञानं ,इतिहास ,भूगोल और धार्मिक पात्र है -बहुत अच्छी कल्पना
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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प्रवीण पाण्डेय said...

सब होने की चाह में हम वह नहीं हो पाये, जो हम हैं।

दिगम्बर नासवा said...

सब कुछ होने चाह ... और कुछ भी न रह पाना ... ये यंत्रण है आज की ...

ओंकारनाथ मिश्र said...

बहुत बढ़िया लगा पढ़कर. काफी अच्छे अंदाज़ और सन्दर्भों के साथ लिखा है.

Anju (Anu) Chaudhary said...

अधूरे जीवन का पूरा सार लिख दिया

Unknown said...

आपकी यह रचना आज शनिवार (25 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

scientific rachna taiyar kar di aapne to :)

Prashant Suhano said...

बहुत ही अलग ढंग से व्यक्त किया है आपने...
बेहतरीन.........

Darshan jangra said...

बेहतरीन.....

sumeet "satya" said...

दिल से लिखी गयी बेहतरीन कविता

Rohit Singh said...
This comment has been removed by the author.
Rohit Singh said...

एक बात बताओ....प्रेम मे सबकुछ समेटा कैसे? समेट कर फिर अलग-अलग कैसे कर दिया इतनी आसानी से? शब्र्दों का खेल अच्छा है...ग्रंथ हों या आदर्श...प्रेम हर जगह है....फिर भी जुदा है...रस्सी के एक छोर पर हम हैं और एक छोर पर तुम हो...या कह लो नदी के किनारे..साथ रहेंगे पर समांतर ....जुदा होना संभव नहीं..मगर मिलना भी असंभव...कैसे निभेगी सोचते हैं....फिर भी साथ चलते हैं...। वाह कितना सच है प्रेम ऐसा ही हो जाता है कई बार। बेहतरीन तरीके से आपने अहसासों को समेटा है।

ये नहीं कूहंगा कि फिलहाल क्यों नहीं कुछ लिखा..जानता हूं कि कवि के अंदर भाव हलचल करते रहते हैं, बस जब तक शब्दों का आसरा नहीं मिलता कागज पर उतरने को राजी नहीं होते हैं...आधुनिक युग के अनुसार कहें तो शब्द ब्लॉग पर आने को राजी नहीं होते।