Monday, July 23, 2012

प्यार की खेती...आसमान का बटवारा

आज चलो इस धरती और अम्बर का बटवारा कर लें
मेरे लिए तुम चाँद हो 
मुझे आसमान का वो हिस्सा दे दो
जिसमे तुम बसते हो  
अपने पंखों को थोडा फेलाकर 
कुछ उड़ाने भर लूंगी में वहां
तुम्हारी रौशनी में....
तुम्ही कहते हो ना मै तुम्हारा आधार हूँ
तो सारी जमीन तुम रख लो 
यहाँ तुम अपने प्यार के बीज बोकर 
प्यार की फसल उगा लेना

मेरे आंसूं बड़े उपजाऊ है 
उन्ही से सींचकर 
इन पोधों को बड़ा कर लेंगे
तुम्हारी मुस्कान जीवनदाई  है
तुम मुस्कुराकर इन सारे पोधो को 
लहलहा देना ....

इसी प्यार की खेती से 
हमारा गुजर बसर हो जाएगा 
इन्ही प्रेम बीजों में 
मैं कुछ बीज तुम्हारे शब्दों के बो दूंगी 
और तुम इक काकभगोड़ा  मेरे अर्थों का खड़ा कर देना 
बस एसे ही सारे शोर से दूर हम 
अपनी खामोशियों को आवाज़ देंगे ....


आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

10 comments:

Pallavi saxena said...

अनुपम भाव संयोजन कनू, बहुत सुंदर गहन भावभिव्यक्ति...

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर...............

अनु

प्रवीण पाण्डेय said...

मैं धरती, तू अम्बर बन जा,
चलें क्षितिज पर, मिलन घड़ी है।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत बढ़िया गहन प्रस्तुती, सुंदर रचना,,,,,

RECENT POST काव्यान्जलि ...: आदर्शवादी नेता,

संध्या शर्मा said...

बहुत खूबसूरत ख्याल...

सदा said...

वाह ... बेहतरीन
कल 25/07/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


'' हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल ''

ऋता शेखर 'मधु' said...

सुन्दर भावों का बँटवारा...गहन अभिव्यक्ति !!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत भाव उपजाए हैं ...

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AmitAag said...

I loved it , Kanu, veru beautiful!