Tuesday, April 3, 2012

मेरी आत्मा को मत बेचना.....कविता और कवि

ए मेरे जन्मदाता कवि
मुझे यूँ अकेले भटकने के लिए ना छोड़ो
इस मशीनी दुनिया में मैं रास्ता  भूल जाउंगी

तुमने मुझे अपनी घोर बेचैनियों को  पालकर
मोह और निर्मोही जीवन के बीच संघर्ष करके
अस्तित्व को दिन प्रतिदिन की चुनौती देकर
बड़ा दर्द उठाकर जन्म दिया

अब इस तरह मुझे इन निर्मोही वाहकारों
की कुछ वाह वाह के लिए नीलाम ना करो
कुछ पन्नो में मुझे समेट कर जिल्द की बेडी में जकड़कर
अपनी कला का अपने दर्द का अपमान ना करो

याद है तुम्हे तुम घोर विचार जंगलों में
कही बहुत अन्दर बैठी उस मासूम लड़की
के बालों में उलझे  शब्द खोज लाए थे
और उन्हें पिरोकर मेरे लिए माला बनाई थी
तब से आज तक वो लड़की अपने बाल नहीं बांधती
बस तुम्हारा इंतज़ार करती है ...

विचारों के उस जंगल का हर कतरा
हर लहर,नदियाँ ,पहाड़ ,बादल सब
तुम्हारे उनके करीब जाने के अनंत इंतज़ार में हैं
पर तुम चमक दमक में खो गए हो कहीं
वो गहरा दर्द वो  शापित रात्रियाँ ,
वो अनसुलझी  पहेलियाँ सब तुम्हे पुकारती हैं
पर तुम प्रसिद्धि के शोर में
नेपथ्य से आती वो आवाजें सुन नहीं पाते

हे दर्द के कवि,प्रेम के पुजारी
मुझे इस मशीनों  के पुजारियों को मत सौपो
मेरे शब्द दे दो मेरा रूप देदो पर
बस मेरी आत्मा को मत बेचना  कभी....
ना अपनी आत्मा को .....
सुन रहे हो ना....

आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

12 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर......
हर लफ्ज़ दर्द बयाँ करता ................

अनु

Aruna Kapoor said...

कविता के दिल से निकली हुई आवाज!...बहुत सुन्दर रचना!

रश्मि प्रभा... said...

याद है तुम्हे तुम घोर विचार जंगलों में
कही बहुत अन्दर बैठी उस मासूम लड़की
के बालों में उलझे शब्द खोज लाए थे
और उन्हें पिरोकर मेरे लिए माला बनाई थी
तब से आज तक वो लड़की अपने बाल नहीं बांधती
बस तुम्हारा इंतज़ार करती है ...ek ek shabd mann ko piro rahe hain

संजय भास्‍कर said...

वाह क्या बात है बहुत सुंदर रचना. पढ़ कर एक नहीं उर्जा सी आ गई मन में !

संजय भास्‍कर said...

पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

...इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें कनु जी

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन रचना।


सादर

Ramakant Singh said...

SUPERB LINES WITH PAIN.
BEAUTIFUL LINES INCLUDING EMOTINS AND THOUGHT.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

हे दर्द के कवि,प्रेम के पुजारी
मुझे इस मशीनों के पुजारियों को मत सौपो
मेरे शब्द दे दो मेरा रूप देदो पर
बस मेरी आत्मा को मत बेचना कभी....
ना अपनी आत्मा को .....
सुन रहे हो ना....
बहुत बढ़िया रचना,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....

MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...

प्रवीण पाण्डेय said...

कवि का हृदय कभी मशीन न हो पायेगा।

Pallavi saxena said...

वाह क्या बात है निशब्द करतो रचना है कनू.... खास कर 4थ पेरा लाजवाब,बेहतरीन आज तो शब्द ही नहीं है इस रचना की तारीफ के लिए मेरे पास...

vikram7 said...

ati prabhaavamaii rachana

indu chhibber said...

this poem has a soul too!