Wednesday, February 8, 2012

दर्द प्यार और अभिशाप

१८ बरस की वो लड़की अपनी उम्र के रंग से  कहीं ज्यादा गहरे  रंगों से रंगी हुई ,एसा गज़ब का रूप खुदा सबको नहीं बक्श्ता न ही सबको गज़ब का रूप अपनी आँखों के समुन्दर में समां लेने का हुनर देता है..शायद वो भी जानता है समुन्दर की हर लहर सुकून नहीं देती कुछ जानलेवा भी होती है ठीक यही सोचकर शायद खुदा ने उसकी आँखें बनाई  थी सारी लड़कियों को खुदा खूबसूरत ऑंखें देता है समुन्दर की शांत लहरों के जेसी पर उसे तो एकदम जानलेवा सी ऑंखें दी थी जो एक बार डूबा उसके बाहर आने के चांस जेसे ख़तम ही समझो...एकदम शराब की उस बोतल की तरह जानलेवा, जिसपर लिखा होता है अल्कोहल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है पर न पीने वाले उसे छोड़ते  हैं न नए चाहने वाले आशिक  उसके मुरीद होने से बच पाते हैं....

उसका रंग कभी गुलाबी नहीं था वो जाफरानी था जैसे लाखों जाफरान के फूलों को मसलकर रंगत दी देने वाले ने ...एसी रंगत जो देखने वाले के होश उड़ा दे की वो इंसान देख रहा है या बुत.....और दिल में एसा भावनाओं का सेलाब जो जब भी चेहरे पर उभर  आता तो लगता जेसे सारी कायनात  इस जाफरानी रंग में रंग जाएगी....उसके आंसू मोतियों के जेसे कैसे कह दू ? क्यूंकि जब वो रो देती तो लगता सारे बादल मेरे सर पर मंडरा  गए हो, पूरी दुनिया का कालापन उसकी आँखों के कालेपन के साथ बह चला हो और जल्दी  ही खुदा की बनाई सुन्दर सृष्टि इस कालिख से दब जाएगी...लोग हाहाकार कर उठेंगे और उसके इन आंसुओं की कीमत सारी दुनिया को चुकानी होगी.....

वो लिखा करती थी... सिर्फ कागज़ के पन्नो पर नहीं मैंने उसे अकले में हवाओं में ,समुन्दर की रेत पर हर जगह लिखते देखा था .......लोग कहते थे वो दिलों पर लिखने का हुनर जानती थी उसका लिखा पढने वाला उसका दीवाना हो जाया करता था ,औरतें उसके बनाए खाने की महक से नहीं उसके लिखे दर्द भरे शब्दों से खार खाया करती थी ,उसके लिए न जाने कितनी ही कहानियां बना  दी गई थी की वो अपने लिखे हुए से जादू टोने करना जानती है तभी सारे शहर की माएं और लड़कियां अपने बेटों और प्रेमियों को उसके लिखे के जादू से बचाने के लिए बाबा साधुओं के चक्कर लगाया करती, जगह जगह  से भभूत लाया करती पर ये सच था जिसने भी उसका लिखा पढ़ा वो बार बार उसे पढना चाहता था वो गज़ब का दर्द लिखती थी एसा दर्द जेसे किसी के खून से लिखा हो जेसे हर अक्षर दर्द में डुबोकर आंसुओं में नहलाकर कागज़ पर उतारा हो......वो प्यार भी एसा ही जानलेवा लिखा करती थी बस जैसे दिल पर चोट हो ऐसा बेतहाशा  समर्पण लिखती की पढने  वाला बस वेसी ही नायिका अपने जीवन में चाहने लगता.....

उसकी आवाज़ बांसुरी  की आवाज़ सी थी ,सारी दुनिया यही कहती थी की वो बोलती नहीं सुर छेडती है पर मुझे हमेशा वो आवाज़ सुरंग की सी लगी जब जब सुनता था लगता था कही गहरी सी खाई में से आ रही हो एसी खाई जहा अगर गलती से मेरा पैर पड़ गया तो में बस उस आवाज़ के मोह में बंध जाऊंगा और अगर बंध गया तो दुनिया का कोई धुरंधर मुझे उस पाश से न बचा पाएगा.....उसकी इसी  आवाज़ के कई दीवाने हुआ करते थे एसा लगता था जेसे वो सारे दीवानों को अपनी आवाज़ के पाश में बांधेगी और एक दिन छोड़ आएगी समन्दर की गहराई में डूब जाने के लिए........

इसी बांसुरी जेसी आवाज़ से एक दिन जब उसने मुझे कहा " मैं तुम्हे प्यार करती हू " तो मेरा अंदाज़ा सही निकला मुझे सच में एसा लगा जैसे मुझे दुनिया के सारे दर्द,सारे प्यार,सारे कालेपन,सारे आंसुओं ने अपनी बाँहों में जकड लिया जैसे उसके दिल की सारी घुटन सारी मोहब्बत मेरे सामने आ खड़ी हुई ,और जब उसने आगे कहा तुम मुझसे इतने दूर क्यों हो जल्दी लौट आओ मेरा दम घुट जाएगा तुम्हारे बिना तो एसा लगा जैसे जिंदगी ख़तम ही हो गई,विश्वास ही नहीं हुआ वो मुझे असे टूट टूटकर प्यार करती होगी, उस दिन के बाद उसकी लिखी हर कविता का नायक में हो गया खुद को हर बार उसके शब्दों से तोलकर देखता और हर बार अपने आपको,उसके प्रेम की लायकी से कुछ कमतर ही महसूस करता ...लोग सच कहते थे उसने मेरे दिल पर लिख दिया....
मैं कभी लौट कर न जा सका उसके पास बस उसके लिखे कुछ दर्द के हर्फ़ पहुँचते रहे मुझतक हर बार .....हर बार इन हर्फों में उसके दिल का खून बढ़ता रहा ,जेसे बूँद बूँद इकठ्ठा करके कलम में डाल देती हो कई दीवानों की की कल्पना का साकार रूप वो जाफरानी लड़की मेरा प्यार लिखती रही....कहते हैं वो मेरा प्यार लिखते लिखते ही वादियों में कही खो गई मेरे न मिल पाने के बाद वो बस मेरे गम में लिखती रही ...अब वादियों में बस उसके लिखे शब्द तैरतें है और उसकी बांसुरी की सी आवाज़ की गूँज आज भी जाने कितनी प्रेमिकाओं की रातों की नींद हराम किए देती है .......


और मै? मैं  यहाँ सात आकाश पार सपनो की दहलीज़ के परे बैठकर उसके प्यार, उसके मिलन का इंतज़ार कर रहा हूँ...बस अब उसका अभिशाप ख़तम हुआ खुदा ने उसका दर्द कागज़ पर उतरवा दिया और उसे मुझसे मिलाने का इंतज़ाम कर दिया उसे मुक्ति मिल गई.......पर उसकी रूह प्यार का दर्द न छोड़ सकी और कही बीच रस्ते मे सारे दर्द के साथ भटक गई शायद इस उम्मीद के साथ की  शायद वो वहा से मुझे धरती पर देख पाए कहीं....शायद जल्दी ही वो जान जाए की मे यहाँ सात आकाश पार उसका इंतज़ार कर रहा हू.......... शायद कोई अगली लड़की उसका दर्द ले सके और वो छूट जाए इस अभीशाप से ..........


आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

14 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रेम की पीड़ा अजब होती है, समझने के लिये उतरना पड़ता है..

vidya said...

आह!!!

वाह!!!

बहुत खूब..

रश्मि प्रभा... said...

yah ladki jane kahan kahan rahti hai ...

Smart Indian said...

दर्द भी सहारा भी, सुन्दर!

sumant said...

Atyant sunder vyangya kanu ji

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

वाह!!!!!!!!!सुंदर अभिव्यक्ति ,

MY NEW POST...मेरे छोटे से आँगन में...

दिगम्बर नासवा said...

इतनी पीड़ा और दर्द को इन शब्दों में कैसे बाँधा है आपने ... उफ़ ... पढ़ने के बाद कुछ कहना आसान नहीं है ...

Pallavi saxena said...

बहुत ही सुंदर भाव सँजोये हैं कनू .... बहुत सुंदर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति

स्वाति said...

padhne ke baad sirf ek thandi aah nikali..aur kya kahu...janlewa abhiwyakti...bahut hi lazwaab...badhaai...

Atul Shrivastava said...

गहरे भावों को शब्‍दों की शक्‍ल दे दी आपने।
प्‍यार के अहसास पर बेहतरीन पोस्‍ट।

Nidhi said...

अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर

सदा said...

बहुत ही बढि़या ।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति,
MY NEW POST ...कामयाबी...

संजय भास्‍कर said...

पीड़ा और दर्द को शब्दों में कैसे बाँधा है आपने.....बहुत सुंदर