Sunday, December 4, 2011

Dirty Picture :Dignity and dirtiness Together...With Entertainment Entertainment and Entertainment....

Dirty Picture
उन सभी लोगो से शुरुआत में ही माफ़ी मांगती हू जो मुझसे बहुत ही सीरियेस  और बहुत ही गहराई भरी लेखनी की उम्मीद करते है हो सकता है वो लोग ये रीव्यू  पसंद ना करें....
तो कल मैंने यानि की हमने Dirty picture देख ही ली सच कहू तो इस फिल्म को देखने का मेरा ख़ास मन नहीं था अब कारण ठीक से बता नहीं सकती पर मुझे लगता है कारण इसके तन उघाडू टाइप के प्रोमो थे और सच कहू तो एकता कपूर की क्या कूल है हम जेसी फिल्में टी वी पर आधी अधूरी देखने के बाद मन में ये बात थी की इसमें भी द्विअर्थी संवाद और फूहड़पन होगा...तो फिर देखी क्यों ?ये भी ठीक से बता नहीं सकती पर शनिवार का दिन बहुत टेनशन  भरा था .आफिस  में भयंकर तरीके से समस्याएं  थी दोपहर में लोकेश का फ़ोन आया मूवी देखने चलना है क्या? चलना हो तो बोल dirty picture के टिकिट  बुक करवा लेता हू पर तेरा मन ना हो तो हाँ मत करना ( उन्हें भी शायद ये बात पता थी की में इस मूवी को देखने के लिए थोड़ी भी उत्साहित नहीं थी) मैंने बोला हाँ ठीक है चलते हैं (रजत अरोरा के diolouges की तारीफ सुन ली थी किसी के मुह से) ,पर लोकेश भी जानते थे की ये आधे मन से की हुई हाँ है शायद उनने थोड़ी देर बाद फिर एक बार फ़ोन किया और पुछा तू पक्का चलना चाहती है ना?करवा लू ना टिकिट ? मैंने  फिर कहा हाँ करवा लो देख लेते हैं (बोलते बोलते मुझे भी लगा जेसे में अहसान कर रही हू किसी पर ये फिल्म देखकर शायद ये लोकेश को भी लगा हो मैंने पूछा नहीं ये )

अब बात करेंगे फिल्म की सच कहू तो ये फिल्म देखना मेरे लिए अलग अनुभव इसलिए रहा क्यूंकि ऐसा मेरी लाइफ में पहली बार हुआ जब पूरी फिल्म में थिएटर मैं बेठे लोग हर संवाद के बाद हँस रहे हो या ताली बजा रहे हो या फिल्म देखते देखते कुछ सीन एसे हो जिन्हें देखने की बजाए मैं थिएटर की छत  या अगल बगल के लोगो के चहरे देखना ज्यादा पसंद कर रही थी.....
बोल्ड कहानी,द्विअर्थी संवाद ,एक्सपोज़ देखा जाए तो यही सब है फिल्म में पर फिर भी कांसेप्ट दिल को छु लेता है और उससे ज्यादा गहरे तक उतरती है विद्या बालन ....गज़ब का काम किया है.... इस हद तक तन उघाडू रोल में भी इस हद तक की डिग्निटी !!! शायद विद्या बालन ही कर सकती थी....पूरी फिल्म में आपको द्विअर्थी और फूहड़ कहे जा सकने वाले संवाद मिलेंगे पर कसम से कहती हू इस हद तक द्विअर्थी लिखना और फिल्माना भी हर किसी के बस की बात नहीं कुछ तो बात है रजत अरोरा (लेखक) में.....

पूरी फिल्म एक हेन्गोवर  की तरह है फिल्म देखते देखते कभी कभी लगता है विद्या के हाथ से जाम लेकर दो घूंट ख़ुद भी लगा लिए जाए शायद फिल्म ज्यादा अच्छी लगे तब....ठीक वेसे ही जेसे इमरान हाश्मी एक सीन में विद्या से कहते हैं कुछ लड़कियां पीने के बाद अच्छी लगती है...शायद तुम भी अच्छी लगो पर जब ये हेन्गोवर उतरता है तो भी कहते है शराब उतर गई फिर भी तुम अच्छी लग रही हो तुमने मार दिया मुझे....कुछ संवाद तो सच में नक्काशी के जेसे बारीकी से तराशे से लगते हैं...जैसे एक संवाद में इमरान विद्या से पूछते हैं -आज तक कितनो ने touch  किया है तुम्हे ?और जवाब आता है touch तो बहुतों ने किया है पर छुआ किसी ने नहीं एक बरगी लगेगा संवाद कही सुना सा है पर फिर भी कहानी केसाथ बढ़ते हुए ये दिल को छु जाएगा.... .मन करता है लेखक का सजदा कर लिया जाए की एसा गज़ब कैसे  लिखा .....फिल्म कोई ख़ास सन्देश नहीं देती पर एक हल्का नशा छोड़  देती है दिलो दिमाग पर ......

देखा जाए तो तो पूरी फिल्म बाज़ारों और बिस्तरों के आस पास घूमती सी लगती है एक आम लड़की कभी कभी सुपर स्टार बनने के लिए क्या क्या कर सकती है, किस हद तक जा सकती है ये दिखाई देता है पर इस स्टारडम  को बनाए रखना कितना मुश्किल है ये झलक भी दिखाई देती है....सिल्क  यही तो नाम है विद्या बालन का और सच में जेसे सिल्क बनाने के लिए कई कीड़ों को मरना पड़ता है वेसी ही अनुभूति इस फिल्म को देखकर आती है पर यहाँ बारीक सा अंतर है यहाँ सिल्क बनने के लिए विद्या अपने अन्दर की रेशमा को मारती है ......और जब उसे ये अहसास होता है उसके अन्दर का खालीपन,मजबूरी,  दर्द सब मिलकर उसे मार देते है....

अस्सी के दशक की डांसर पर आधारित ये फिल्म आपको उस दशक में ले जाती है सिगरेट शराब ,इतने कम कपडे की उससे कम क्या होगा फिर भी आपको फिल्म देखकर शर्म महसूस नहीं होगी बस एक टीस सी महसूस होगी दिल में और शायद निर्देशक चाहता भी यही है ....फिल्म देखते हुए हर इंसान के मन में एक बार ये बात जरूर आई होगी की !@#$$ दुनिया जाए भाड़ में जीना तो बस ऐसे चाहिए और थोड़ी ही देर में वो हर इंसान अपनी इस सोच को भूल भी जाएगा...मतलब याद रखने को कुछ ऐसा नहीं जो गज़ब का हो पर फिर भी विद्या आप पर छाई  रहेगी लम्बे समय तक....और संवाद भी...फिल्म में कही भी गालियाँ नहीं है ना ऐसा कुछ कहा -बोला गया है जिसे हद दर्जे का घटिया कहाजाए  पर हाँ उसके घटिया मतलब निकले जा सकते है क्यूंकि द्विअर्थी संवादों से भरी है पूरी फिल्म...

गानों के मामले में मुझे सिर्फ दो ही गाने याद है ऊ- लाला  जो सबने हजारों बार सुना है और दूसरा "तेरे वास्ते मेरा इश्क सूफियाना" और सच कहू काफी टाइम के बाद इतना बेहतरीन गाना लिखा गया है (कल सेअभी तक गुनगुना रही हू....) और फिल्माया भी वेसा ही सुन्दर है और कोई निर्देशक होता तो एक गाने के लिए शायद विद्या को भी प्रेम की देवी टाइप या सूफियाना अंदाज़ में दिखाता पर मुझे यही बात अच्छी लगी फिल्म में जेसी बोल्ड वो है वेसा ही उन्हें दिखाया गया है और जेसे इमरान है अवार्ड विनिंग टाइप वेसा ही सूफी अंदाज़ में उनका प्यार दिखाया गया है....गहरा ,ठहरा हुआ, गंभीर .....

कुल मिलाकर फिल्म अच्छी है पर परिवार के साथ बैठकर देखने जेसी नहीं है .फिल्म में कई बुराइयां निकाली जा सकती है पर ये भी सच है जो लोग दिन में शराब की बुराई करते है उनमे से कई लोग रात के अँधेरे में जाम छलकाते मिल जाते  हैं....फिल्म आपको फिल्म इंडस्ट्री की बाहरी चमक से भरी दुनिया की  आंतरिक सडांध  की  dirty picture  दिखाती है ...फिल्म चल निकाली है और चलेगी क्यूंकि सच है कई बार  फिल्में सिर्फ तीन चीज़ों से चलती है entertainment,entertainment aur entertainment ...और वो इस फिल्म में है .....ऐसा entertainment जो फूहड़ होकर भी दिल को छु जाता है ,कोई ख़ास सन्देश नहीं देता पर फिर भी एक कहानी कह जाता है .... और सबसे बड़ी बात जितनी देर आप फिल्म देखते है कही और के बारे में आप सोचते नहीं और जब बाहर निकलते हैं तो चेहरे पर ३ घंटे अच्छे गुजरने की ख़ुशी होती है दूसरी बार देखने जाने जेसा कुछ नहीं पर एक बार देखना अच्छा है बाकि तोसबकी अपनी पसंद..... मुझे फिल्म देखकर मीना कुमारी याद आई वेसा ही कुछ शराब और सिगरेट के नशे में ,अकेलेपन से जूझता , डूबा हुआ ,अवसादग्रस्त अंत सिल्क का दिखता है एक क्ष्रण के लिए मर्लिन मुनरो याद आती है और याद आती है बशीर बद्र की वो शायरी "रात होने का इंतज़ार कौन करे आजकल दिन में क्या नहीं होता "..................



10 comments:

Atul Shrivastava said...

खूबसूरत अंदाज में आपने 'डर्टी पिक्‍चर' को पेश किया.......
अब तक देखा नहीं, वैसे विद्या बालन की मौजूदगी के कारण फिल्‍म को देखने की इच्‍छा थी पर अब इस पोस्‍ट को पढने के बाद जल्‍द से जल्‍द थियेटर का रूख करने का मन कर रहा है।

प्रवीण पाण्डेय said...

जैसी प्रचारित है, वैसी ही लग रही है।

Sunil Deepak said...

बढ़िया आलोचना, पढ़ कर फ़िल्म देखने का मन हो गया!

Pallavi saxena said...

मैं आपकी बातों से सहमत हूँ। मुझे इस फ़िल्म के संवादों ने ही छुआ हलाकी यह बात भी सच है कि ज्यादा तर संवाद बहुत ही ज्यादा double meaning है मगर उनको छोड़कर बाकी संवाद मुझे तो पसंद आए बाकी तो जैसा आपने बताया कि अपनी-अपनी पसंद है। जैसे वो संवाद ज़िंदगी एक बार मिली है तो दो बार क्या सोचना...या एक दो संवाद और भी हैं मागे अभी याद नहीं आ रहे है। मगर अच्छी समीक्षा ....

Arvind Mishra said...

इक अरसा हुआ इस लौ को जलते हुए देख अकस्मात कह बैठा था कि इस लौ को जलाए रहिएगा ..इस बीच न जाने कहाँ भटकता रहा और तेरा इश्क सूफियाना सुनने की बड़ी इच्छा हुयी तो गूगल पर सर्च मारा और आपकी ये पोस्ट सामने ..क्या इत्तेफाक है इस गाने की तारीफ यहाँ भी है ..आनंद आया और हाँ फिल्म बहुत अच्छी समीक्षा किया है आपने ...प्रेम जैसे उदात्त मानवीय मूल्य की पुनरस्थापना का इतना सुन्दर प्रयास है किर मन प्रफुल्लित हो गया और थोडा संजीदा भी...और हाँ यह दिया जलाये रखियेगा ..मैं फिर आऊंगा....कब जानता नहीं मगर यहाँ तो आना ही है ......

Arvind Mishra said...

इक अरसा हुआ इस लौ को जलते हुए देख अकस्मात कह बैठा था कि इस लौ को जलाए रहिएगा ..इस बीच न जाने कहाँ भटकता रहा और तेरा इश्क सूफियाना सुनने की बड़ी इच्छा हुयी तो गूगल पर सर्च मारा और आपकी ये पोस्ट सामने ..क्या इत्तेफाक है इस गाने की तारीफ यहाँ भी है ..आनंद आया और हाँ फिल्म बहुत अच्छी समीक्षा किया है आपने ...प्रेम जैसे उदात्त मानवीय मूल्य की पुनरस्थापना का इतना सुन्दर प्रयास है किर मन प्रफुल्लित हो गया और थोडा संजीदा भी...और हाँ यह दिया जलाये रखियेगा ..मैं फिर आऊंगा....कब जानता नहीं मगर यहाँ तो आना ही है ......

Arvind Mishra said...
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Arvind Mishra said...

इक अरसा हुआ इस लौ को जलते हुए देख अकस्मात कह बैठा था कि इस लौ को जलाए रहिएगा ..इस बीच न जाने कहाँ भटकता रहा और तेरा इश्क सूफियाना सुनने की बड़ी इच्छा हुयी तो गूगल पर सर्च मारा और आपकी ये पोस्ट सामने ..क्या इत्तेफाक है इस गाने की तारीफ यहाँ भी है ..आनंद आया और हाँ फिल्म बहुत अच्छी समीक्षा किया है आपने ...प्रेम जैसे उदात्त मानवीय मूल्य की पुनरस्थापना का इतना सुन्दर प्रयास है किर मन प्रफुल्लित हो गया और थोडा संजीदा भी...और हाँ यह दिया जलाये रखियेगा ..मैं फिर आऊंगा....कब जानता नहीं मगर यहाँ तो आना ही है ......

Rahul Singh said...

संतुलित आलोचना.

Anonymous said...

Today is ethical poorly, isn't it?