Monday, November 14, 2011

कुछ बिखरे मोती kuch bikhre moti.....

आज फिर कुछ छोटे छोटे मुक्तक  इकट्ठे किए है जो फसबूक के पेज पर डाले है कुछ दिनों में .

साथ हुए तो हाथ पकड़कर चलना होगा
तुमको मुझमे, मुझको तुममे ढलना होगा
एक दूजे का अक्स (परछाई) बने हम आज तक पल पल
 अब ,मुझे तुम्हारा, तुमको मेरा " दर्पण"  बनना होगा ((१))

कई दिन हो  गए हमने खुलकर नहीं सोचा
जब से तुमसे मिले बरबादियों का मंज़र नहीं सोचा
बस एक दुसरे को सोचकर  मध्य में आ गए है हम
तुमने धरती नहीं नहीं सोची मैंने अम्बर नहीं सोचा  ((२))

बहुत दिन से उदासी की चादर ओढ़ रखी है
चलो एक बार तनहाइयों का पर्दा हटा दे हम
वजह ना और कोई मिल सके तो छोड़ दे सब कुछ
अपने आंसुओं  के संग  ही थोडा मुस्कुरा दे हम  ((३))

अब कुछ ऐसे  मुक्तक जो कुमार विश्वास के लिखे मुक्तकों के कमेन्ट में डाले थे आज इकट्ठे कर के एक जगह प्रस्तुत कर रही हु...इन्हें मैं पूरी कविता के रूप में नहीं डाल रही क्यूंकि इनकी शुरुआत की प्रेरणा  कुमार विश्वास हैं...
तिमिर जो बढ़ रहा था कम हुआ है ,तुमको सूचित हो
पाप का वेग ,मद्धम हुआ है तुमको सूचित हो
जो नर्तन ,तांडव रूप में विध्वंसकारी हो रहा  था
वही लयबद्ध जीवन बन रहा है तुमको सूचित हो

कलम - क्रांति का संगम हो रहा है तुमको सूचित हो
चिंगारियों का उद्गम हो रहा है तुमको सूचित हो
वो पंछी जो कभी  सियासी कलहों में उलझे थे
उनका रण में पदार्पण हो रहा है तुमको सूचित हो

भट्टियों में स्वर्ण तपता जा रहा है तुमको  सूचित हो
दिखावे का पीतल सिमटता जा रहा है तुमको सूचित हो
निर्दिष्ट की चाह में जो मंदिरों में निष्कर्म बेठे थे
उन्हें भी क्रांति गीत, जगा रहा है तुमको सूचित हो

विप्लव (विद्रोह)का बीज बोया जा रहा है तुमको सूचित हो
त्रिदिव (स्वर्ग) धरती  पर लाया  जा रहा है तुमको सूचित हो
समय की जंग लगने लग गई थी जिन कलमों को
उन्हें रक्त  से भिगोया जा रहा है तुमको सूचित हो


आपका एक कमेन्ट मुझे बेहतर लिखने की प्रेरणा देगा और भूल सुधार का अवसर भी

16 comments:

Nirantar said...

aap achhaa likhte ho
aapko soochit ho

achhee rachnaa

vandana gupta said...

मन के भावो को खूबसूरती से कलमबद्ध किया है।

अनुपमा पाठक said...

इकट्ठे किये गए मुक्तकों ने पोस्ट को सुन्दर बना दिया है!

Hema Nimbekar said...

बहुत खूब लिखा है...मुझ पहले दो बहुत ज्यादा अच्छे लगे....लिखते रहिये...

Atul Shrivastava said...

सभी मुक्‍तक जानदार।
पर दूसरे नम्‍बर का जवाब नहीं।
बेहतरीन लेखन।

सदा said...

वाह ...बहुत खूब लिखा है आपने ..।

Pallavi saxena said...

तुम बहुत अच्छा लिखती हो तुम को सूचित हो, ;-)
मगर मुझे सब से ज्यादा पसंद आया था वो था यह
कई दिन होगाए हमने खुलकर नहीं सोचा
जबसे तुमसे मिले बरबड़ियों का मंज़र नहीं सोचा
बस एक दूसरे को सोच कर मध्य में आ गए हैंहम
तुमने धरती नहीं सोची मैंने अंभर नहीं सोचा ....
बेदाह उम्दा लिखा है कई बार पढ़ने पर भी मन नहीं भरता...
समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

अच्छी रचनाएं...
सादर...

Rajesh Kumari said...

सब एक से बढ़कर एक मुक्तक है बहुत लाजबाब रचना !

प्रवीण पाण्डेय said...

टिप्पणियों की रचना, रचना से अधिक रचनाशील..

kumar zahid said...

कई दिन हो गए हमने खुलकर नहीं सोचा


यह कतआ / मुक्तक बहुत अच्छा लगा।
आपको आगे जाना है।

abhi said...

सभी मुक्तक काफी खूबसूरत हैं...

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन।

सादर

Anonymous said...

शानदार हैं सभी मुक्तक |

Arunesh c dave said...

मन के भावो को खूबसूरती से उकेरा है आपने

अच्छी रचनाएं...

Indian Citizen Ranting said...

Very energetic poem. Reminds me of Rashmirathi :) Keep up the good work :) Aye Zindagi!