दिन रात की हकीकत दिन रात का फ़साना,
क्या क्या अभी है खोना क्या क्या अभी है पाना।
बेसबब सी जिंदगी है या बेसबब हुए हम,
तुमको खबर लगे तो हमको भी ये बताना।
रफ़्तार के शहर मैं दौडती सी जिंदगी है,
या अपनी है चाल धीमि ये मुश्किल है समझ पाना ।
खुद से करें शिकायत या तुमसे गिला करें अब,
आसां नहीं होता है सबको राज़ ए दिल बताना ।
धरती का छौर ढूंढे या अम्बर को कर ले हासिल,
कितनी ही कर ले कोशिश पर छितिज का नहीं कोई ठिकाना।
क्या क्या अभी है खोना क्या क्या अभी है पाना।
बेसबब सी जिंदगी है या बेसबब हुए हम,
तुमको खबर लगे तो हमको भी ये बताना।
रफ़्तार के शहर मैं दौडती सी जिंदगी है,
या अपनी है चाल धीमि ये मुश्किल है समझ पाना ।
खुद से करें शिकायत या तुमसे गिला करें अब,
आसां नहीं होता है सबको राज़ ए दिल बताना ।
धरती का छौर ढूंढे या अम्बर को कर ले हासिल,
कितनी ही कर ले कोशिश पर छितिज का नहीं कोई ठिकाना।
5 comments:
kanu... jz awesome.. you rock.. so small but so sweet and the way you have presented it is really fantabulous
कल 06/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
गजब.. ढेर सारी शुभकामनायें.
... है अपनी चाल धीमी मुश्किल है समझ पाना....
बहुत सुन्दर....
सादर बधाई...
लाजवाब.....
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